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--अद्भुत चरित्र ----
"मुकदमे हजार लड़ना मेरी बेगुनाही के.... पर मेरे कर्म ऐसे है
कि तुम्हारी कलमो की स्याही सुख जाएगी मुकदमो का हिसाब करते- करते"
Dinesh k Prajapat
Repost from Ravi Fageria(VR Educators)
पॉलिटिकल की पोल से हिस्ट्री में होल और ज्योग्राफी में झोल ना करदिज्यो!
हर पेपर अलग होता है और एग्जाम पैटर्न हार्ड और ईजी सबके लिए एक जैसा होता है तो संयम से अटेम्प्ट करें ,मेहनती हमेशा आगे रहता है 👍
डरना मना है 😍 चेपड्यो
सूरजमल को भरतपुर नगर का संस्थापक माना जाता है यह क्षेत्र इन्होंने खेमकरण से छीना था तथा भरतपुर को सर्वप्रथम राजधानी भी सूरजमल ने बनाई थी
उस समय दिल्ली में आलमगिर द्वितीय का शासन था तथा प्रशासन की वास्तविक शक्तियों का उपभोग इमाद खां कर रहा था इसी समय अहमद शाह अब्दाली का भारत की ओर रुख होता है उसे समय मराठों का पेशवा बाजीराव द्वितीय था जिसने सदाशिवराव भाऊ किस नेतृत्व में अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला करने के लिए सेना भेजी ... शुरुआत में सूरजमल मराठों का सहयोग करने में सहमत हो गया था लेकिन बाद में इमाद खां को वजीर न बनाने तथा भाऊ के दंभपूर्ण व्यवहार के कारण सूरजमल ने अपने आप को युद्ध से अलग कर लिया जिसका परिणाम यह हुआ कि मराठे पानीपत की तृतीय युद्ध में 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली किया तो पराजित हो गए और इस युद्ध ने यह तो निर्णय नहीं किया कि भारत में आगामी समय में कौन शासन करेगा लेकिन यह निर्णय कर दिया कि मराठे अब मुगलों के उत्तराधिकार नहीं बनेंगे
सूरजमल ने अंतिम समय में आगरा के किले पर अधिकार किया था जो उस समय मुगलों की दूसरी राजधानी हुआ करती थी
1763 रूहेलो के विरोध संघर्ष में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हो गया तब इनके प्रतिद्वंदी नजीब खान ने कहा था" जाट मरा तब जानिए जब तेरहवां हो जाएं"
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इतिहास की उपयोगी पुस्तकें ( UGC NET/ PGT/TGT/ 💐प्राचीन भारत– के सी श्रीवास्तव, पप्पू सिंह प्रजापत, सौरभ चौबे 💐मध्यकालीन भारत– सौरभ चौबे, पप्पू सिंह प्रजापत। 💐आधुनिक भारत– परीक्षा वाणी
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Repost from इतिहास संग्रहालय
रामचरित मानस और पंचतंत्र को UNESCO की मान्यता मिली:मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर में शामिल किया गया
नई दिल्ली1 दिन पहले
मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर में शामिल किया गया|देश,National - Dainik Bhaskar
उलानबटार में भारत की तीन साहित्यिक रचनाओं को यूनेस्को से मान्यता मिली।
यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन (UNESCO) ने रामचरित मानस, पंचतंत्र और सह्रदयलोक-लोकन को वैश्विक मान्यता दी है। इन साहित्यिक रचनाओं को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर (MOWCAP) में शामिल किया गया है।
द मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड (MoW) इंटरनेशनल एडवाइजरी और एग्जीक्यूटिव बोर्ड की तरफ से रिकमेंड किए गए दस्तावेजों को वैश्विक महत्व और यूनिवर्सल वैल्यू के आधार पर इस लिस्ट में शामिल करता है।
रीजनल रजिस्टर में शामिल दस्तावेजों को विश्व स्तर पर पहचान बनाने में मदद मिलती है। साथ ही एक देश की संस्कृति दुनिया के कई देशों तक पहुंचती है।
38 देशों ने दी इन रचनाओं को मान्यता
इन रचनाओं को दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स (IGNCA) की तरफ से रीजनल रजिस्टर के लिए नामांकित किया गया था।
उलनाबटार में MOWCAP की बैठक में इन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने वाले IGNCA कला विभाग के HOD प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ ने बताया कि UNESCO के 38 सदस्य और 40 ऑब्जर्वर देशों ने इन साहित्यिक रचनाओं के वैश्विक महत्व को पहचान कर इन्हें मान्यता दी है। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि भारतीय संस्कृति के प्रसार और संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
IGNCA की तरफ से पहली बार रीजनल रजिस्टर के लिए आवेदन भेजा गया था। जो दस बैठकों के बाद स्वीकार कर लिया गया।
UNESCO 38 सदस्य और 40 ऑब्जर्वर देशों ने तीन रचनाओं को मान्यता दी है। - Dainik Bhaskar
UNESCO 38 सदस्य और 40 ऑब्जर्वर देशों ने तीन रचनाओं को मान्यता दी है।
दो संस्कृत और एक अवधी भाषा की रचना
संस्कृति मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया कि रामचरितमानस, पंचतंत्र और सह्रदयलोक-लोकन जैसी रचनाओं ने भारतीय संस्कृति और साहित्य को गहराई से प्रभावित किया है। इन साहित्यिक रचनाओं सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर के लोगों पर भी गहरा असर छोड़ा है।
यूनेस्को की तरफ से इन रचनाओं को मान्यता मिलना भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत के लिए गौरव की बात है। साथ ही यह सम्मान भारतीय संस्कृति के संरक्षण की तरफ नई कदम बढ़ाने में मदद करेगा।
रामचरितमानस भगवान राम के चरित्र पर आधारित धार्मिक ग्रंथ है जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा। पंचतंत्र मूल रूप से संस्कृत भाषा की रचना जिसमें दंत और लोक कथाएं शामिल हैं,इस विष्णु शर्मा ने लिखा है। वहीं सहृदयलोक-लोकन की रचना आचार्य आनन्दवर्धन ने संस्कृत में की थी।
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राजा बीरबल(महेसदास) अकबर की सेवा से पूर्व कच्छवाहा राजा भगवंतदास की सेवा में👍
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Показати все...अशोक के लघु शिलालेख,वृहद एवम लघु स्तंभलेख। बिलकुल आसन भाषा में।NTA UGC NET TGT PGT EXAM
#netjrf2022 #history #ugc_net_history #tgtpgtexam #hisroyalhunkness #itihaasthehistory #itihasa #history #ugc_net_history #tgtpgtexam #hisroyalhunkness #iti...
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UGC NET application forms date extend
15th to 19th may
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चलिए थोड़ा जानते है मध्यकाल के बारे में
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राजपरिवार में दास खरीदे, दहेज में, वंश परम्परागत में मिलते थे, जिनका अपना कोई स्वतन्त्र सामाजिक स्तर नहीं होता था । उन्हें जीवन भर दासत्व से छुटकारा नहीं मिलता था। इन दासों का प्रमुख कार्य राजा-रानियों की सेवा, सुश्रूषा और आवभगत करना आदि था।
जनानी ड्योढ़ी में जो सेविकाएँ होती थी, उनमें सर्वप्रथम 'नादर' आता था जो वहाँ का संदेश लेकर अंदर से बाहर आ जा सकता था। इनके बाद 'महरयां' आती थी, जो संदेश के साथ अन्दर बाहर आ जा सकती थी। फिर 'बाई' और इनके पश्चात् 'पातर' जो गाने बजाने का कार्य भी करती थी। इन दासियों की प्रमुख को 'बडारण' कहा जाता था । बडारणों में से ही 'पड़दायत' चुनी जाती थी, जो पर्दे में ही रहती थी और इनके ऊपर 'पासवान' होती थी। जनानी ड्योढ़ी में रानियों के बाद स्तर में पासवानों का स्थान होता था। एक से अधिक रानियाँ होने पर उनमें एक प्रमुख पटरानी जो राजा की सर्वाधिक प्रिय होती थी । जनानी ड्योढ़ी में सबसे प्रमुख 'माजी साहिबा' होती थी। 'सहणा' जागीर में नौकर होता था व 'हलकारा ' संदेश वाहक का कार्य करता था | महारानियाँ, रानियाँ अपनी जागीर की आय में से स्वयं के खर्च तथा अपनी सेविकाओं के खर्च उठाती थी, किन्तु जनानी ड्योढ़ी की सुरक्षा व्यवस्था एवं अनेक अवसरों पर खर्च राजकोष द्वारा पूरे किये जाते थे ।
Dinesh K Prajapat
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