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अकबर कालीन प्रमुख घटनाएं।ट्रिक।।NTA UGC NET TGT PGT HISTORY EXAM
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आज के दिन ही, 10 मई 1857 को मेरठ छावनी से 1857 के इंकलाब की शुरुआत हुयी थी। दरअसल 1857 का इंकलाब लोगों में सालों से पल रहे गुस्से का नतीजा था, लोगों ने रातों-रात इंकलाबी झंडो को नहीं थमा था।
ये 1853 की बात है जब ब्रिटिश सैनिकों के लिए एनफील्ड रायफल आयी हुयी थी। जिसके बारे में कहा जाता है की उसकी कारतूस पर गाय व सूअर की चर्बी लगी हुयी थी जिसे की सैनिकों को मुँह से नोचना पड़ता था। ये काम हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही मजहब के लोगों को ठेस पहुंचा रहा था। लोगों में गुस्सा तो तबसे पनप रहा था लेकिन लोग उसे पीकर अपनी प्यास बुझा लेते थे।
समय बीतता जाता है अंग्रेजों की तानाशाही अपने ओरुज पर पहुंच जाती है तो 29 मार्च सन 1857 को बैरकपुर छावनी में बगावत की पहली आग भड़क उठती है, मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने अपने अफसरों के खिलाफ बगावत कर दी, लेकिन ब्रिटिश अफसरों ने इस बगावत को काबू कर लिया साथ ही उसकी बटालियन '34 एन.आई.' को भंग कर दिया और 8 अप्रैल को मंगल पांडे को फांसी दे दी।
इसके बाद 24 अप्रैल को 3 एल.सी. परेड मेरठ में 90 घुड़सवारों में से 85 सैनिकों ने नए कारतूस लेने से इंकार कर दिया। हुक्म की ख़िलाफ़वर्ज़ी के कारण इन 85 घुड़सवारों को मार्शल कोर्ट द्वारा 5 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गयी।
इसके बाद 9 मई को मेरठ में 85 सैनिकों ने नई राइफल इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया जिनको नौ साल जेल की सजा सुनाई गई।
'खुली बगावत' का आगाज़ 10 मई, को रविवार के दिन शाम को 5 से 6 बजे के बीच शुरू हुआ। सबसे पहले पैदल टुकड़ी '20 एन.आई.' में बगावत की शुरुआत हुई, उसके बाद '3 एल.सी.' में भी बगावत फैल गयी। इन बाग़ी/इंकलाबी सिपाहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाई।
9 मई को मेरठ की बगावत 1857 की जंग का आगाज़ था। इस वाक़ये के बाद मेरठ छावनी में बगावत की आग भड़क उठी 10 मई को भारतीय सिपाहियों ने मेरठ जेल पर धावा बोल कर कैदियों को आजाद करा लिया। उन्होंने वहां तैनात तमाम अंग्रेज अफसरों को मार डाला और वहां मौजूद सभी हथियार अपने कब्जे में ले लिए। सिपाही हिंदुस्तान को अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद करना चाहते थे। लिहाजा उन्होंने फिरंगियों के खिलाफ जंग का एलान कर दिया। लेकिन फिर सवाल ये पैदा हुआ की अंग्रेजों के जाने के बाद मुल्क की हुक्मरानी कौन चलाएगा। सिपाहियों ने इसका भी जवाब ढूंढ लिया। वह हिंदुस्तान का इक़्तेदार मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के हवाले करना चाहते थे। 10 मई को रात में ही घोड़े पर सवार हो कर मेरठ के सिपाहियों की टोली दिल्ली पहुंच गयी जैसे ही उनके आने की खबर हुयी दिल्ली में भी मौजूद फौजी दस्तों ने बगावत कर दी यहाँ भी कई सारे ब्रिटिश अफसर मारे गए।
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