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UPSC GS & ECONOMICS™©

🌏This Channel Is Created With An Aim To Provide Top Notes & Mcq Of GS & ECONOMIC For UPSC PRELIMS AND MAINS ©️2022 Official Channel All Rights Reserved By Sk Regar. ❌Dont Copy & Share ANY POST Without 😊FOR ANY QUERY Contact Owner - @Sk_Regar

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🎁राजकोषीय नीति की सीमाएँ 🎉करारापेण की प्रक्रिया में यकायक परिवर्तन करना आसान काम नही होता है। करों में वृद्धि करने से जनआक्रोश भड़क सकता है और सरकार करों को कम नहीं करना चाहती है। 🎉समयानसु ार सरकारी व्यया ें में परिवतर्न करना कठिन काम है क्याेिं क सावर्ज निक योजनाओं को जल्दी-जल्दी बदला नहीं जा सकता है। 🎉सरकारी व्यय प्राय: निजी व्यय का ही स्थान ले पाता है, सार्वजनिक व्यय का जितना अधिक विस्तार होता जाता हैं, निजी व्यय कम होता जाता है। 🎉उदाहरण के लिए, यदि सरकार स्वयं उद्योग-धन्धों का संचालन करने लगे, तो निजी विनियोग कम हो जायेगा। 🎉अत: यह कहना कि सार्वजनिक व निजी व्यय में वृद्धि करके राजकोषीय नीति को प्रभावी किया जा सकता है, गलत होगा। 🎉राजकोषीय नीति स्फीति की स्थिति को नियन्त्रित करने में सफल नहीं हो पाती है, मंदी-काल में भी राजकोषीय नीति द्वारा रोजगार बढ़ाने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं। 🎉राजकोषीय नीति पर राजनीतिक दबाव होता है, क्याेिं क राजस्व तथा व्यय से सम्बन्धित सभी परिवर्तनों के लिए संसद की स्वीकृत लेनी होती है। 🎉उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति के सम्मिलित प्रयासों से अर्थव्यवस्था सही दिशा दी जा सकती है।
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03
🎁मुद्रा स्फीति काल में राजकोषीय नीति - 😍स्फीति काल में मुद्रा का चलन अधिक होता है, परन्तु मुद्रा की क्रय-शक्ति में कमी हो जाती है। इस स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए व्यय को नियन्त्रित करना आवश्यक है। 😍यदि मुद्रा स्फीति युद्ध अथवा प्राकृतिक प्रकोपों अथवा आर्थिक विकास के कारण हो रही है, तो व्ययों में कमी करना कठिन हो जाता है। 😍सरकारी व्ययों में कमी न होने से करों में वृद्धि करके मुद्रा स्फीति को रोका जा सकता है। करों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाये कि लोगों की उपभोग प्रवृित्त्ा में कमी की जा सके। 😍दूसरी ओर बचतों को प्रोत्साहित करने की योजना भी बनायी जानी चाहिए। लोगों के आय प्रवाह को रोका जाना चाहिए। 😍सरकार को आकर्षक ब्याज-दरों की सहायता से लोगो की तरलता पसन्दी को कम करना चाहिए।
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04
🎁मन्दी काल में राजकोषीय नीति - 😍मन्दी काल में राजकोषीय नीति का उद्देश्य उपभोग-प्रवृित्त में वृद्धि करने के उपाय करना तथा सार्वजनिक व्यय अथवा निवेशों में वृद्धि करना होगा, यदि सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय बढ़ा दिया गया, तो निजी उद्योगों तथा व्यापार-वाणिज्य में स्फूर्ति आ जायेगी, जब निजी विनियोग में विस्तार होता है, तो सरकारी व्यय में कमी कर दी जाती है जिससे आर्थिक क्रिया में कोई शिथिलता नहीं आती है। 😍इस प्रकार रोजगार में वृद्धि होगी तथा आय बढ़ेगी तो उपभोग स्वत: ही बढ़ जायेगा। 😍मन्दी के समय कर की दरों में कमी करना लाभदायक होता है, परन्तु व्यावहारिक रूप से कर की दरों में कमी करना आसान काम नहीं है। 😍अत: उचित यह है कि सरकार अपना व्यय बढ़ाये, परन्तु कर न बढ़ाये जायें। जब सरकार द्वारा किया गया व्यय करों से प्राप्त होने वाली आय से अधिक होता है, तो घाटे का बजट बनाया जाता है। 😍घाटे की पूर्ति जनता से ऋण लेकर की जाती है। इससे निष्क्रिय नकद कोषों का उपयोग होता है और निजी खर्चों में कोई कमी नहीं आती है। 😍यदि ऋण बैंको से लिया जाता है, तो अधिक साख का सृजन होता है। इसका भार किसी पर नहीं पड़ता है और अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। 😍सड़कों, रेलों, स्कूलों, नदी-घाटी योजनाओं आदि पर व्यय करके दीर्घकालीन लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। घाटे की वित्त व्यवस्था 😍मन्दी काल में रोजगार बढ़ाने का प्रभावपूर्ण तरीका है। ध्यान रहे कि हीनार्थ प्रबन्ध का उपयोग आवश्यकता से अधिक न हो।
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Join BATTLE OF TITANS RAS MAINS FULL LENGTH TEST SERIES 2023 Click Here 👇️️️️️️ Total Test ….Jitna mann kare utne lagao 1. Link for 4 FLT 2. Link for 8 FLT 3. Link for 12 FLT 4. Link for 16 FLT
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1 & 3 June Daily Current Affairs Quiz for RAS / PSI 1. Hindi 2. English
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07
🎁राजकोषीय नीति का महत्व 😍राजकोषीय नीति में समय-समय पर परिवर्तन होते आये हैं। प्राचीन काल में यह माना जाता था कि राजकोषीय नीति केवल संकट काल में ही सहायक हो सकती है। 😍सामान्य परिस्थितियों में इसका कोई महत्व नहीं है। समय के बीतने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का स्वरूप परिवर्तित होने लगा। 😍मुद्रा का अविष्कार, औद्योगिकीकरण, आर्थिक प्रणालियों का जन्म, जनसंख्या की वृद्धि, व्यापार-चक्रों का आना, बेरोजगारी का बढ़ना, विकास व्यय व युद्ध व्ययें में वृद्धि, मंदीकाल आदि अनेक समस्याओं ने विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर दिया था। 😍इन सब समस्याओं के समाधान के लिए यह आवश्यक हो गया था कि राज्य की आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि की जाय। 😍अब राज्य की आर्थिक क्रियाओं में निरन्तर वृद्धि होने लगी है। अत: इन समस्याओं के समाधान के लिए राजकोषीय नीति की आवश्यकता होने लगी। 😍1930 की विश्वव्यापी मन्दी को दूर करने की समस्या के लिए प्रो. कीन्स ने राजकोषीय नीति की सहायता लेकर इस बात को प्रामाणिकता के साथ सिद्ध कर दिया था कि बेरोजगारी और मंदी जैसी समस्याओं को हल किया जा सकता है। 😍इस प्रकार हम कह सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था के संचालन में राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण स्थान है। 😍वर्तमान समय में तो बिना इसके काम नहीं चल सकता है। कार्यात्मक वित्त के रूप में राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण स्थान है।
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Good morning Tejians FREE RAS PRELIMS MOCK TEST DETAILED SOLUTION
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09
🎁मुद्रा स्फीतिक दशाओं पर नियंत्रण लगाना - अल्प-विकसित देशों में विकास की आवश्यकताओं को देखते हुए पूंजी का सर्वथा अभाव होता है। प्राय: देखने में आता है कि धन की इस कमी को सम्बन्धित सरकारें हीनार्थ प्रबन्ध् ान के अन्तर्गत नोट छाप कर पूरा करती है। जिससे मुद्रा स्फीतिक दशाएँ उत्पन्न होने लगती हैं। बढ़ती हुई कीमतें, न केवल समाज के लिए कष्टप्रद हैं बल्कि विकास की लागत में भी अनावश्यक वृद्धि कर देती हैं। इस दृष्टि से राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण कार्य ‘प्रभावपूर्ण माँग’ (Effective Demand) को कम करके मुद्रा प्रसार पर रोक लगाना है। मुद्रा प्रसारिक दबावों को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है कि- जनता की अतिरिक्त क्रय शक्ति को करो अनिवार्य बचतों एवं सार्वजनिक ऋणों आदि को द्वारा कम किया जाए। कुछ विशष प्रकार के मुद्रा स्फीति विरोधी कर (Anti Inflationary Taxes) जैसे अधिलाभ कर (Super Tax) उपहार कर, व्यय कर, विशेष उत्पादन कर तथा विलासिता की वस्तुओं पर कर आदि लगाए जाने चाहिए। प्रत्यक्ष करो के अतिरिक्त तरल सम्पतियों कैश बैलेन्सेज व पूंजीगत सम्पतियों पर भी कर लगाये लाने चाहिए। करारोपण नीति का आधार प्रगतिशील होना चाहिए। कर नीति ऐसी होनी चाहिए कि एेि च्छक बचतो को प्रोत्साहित कर सके और अतिरिक्त क्रय शक्ति को नियन्त्रित कर सके। कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यदि राजकोषीय नीति द्वारा प्रभाव पूर्ण माँग को कम करके, मुद्रा प्रसार पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयत्न किया गया तो इससे उत्पादन व विनियोग की प्रेरणाएँ समाप्त हो जायेंगी । जिसके फलस्वरूप आर्थिक विकास का कार्य अवरुद्ध होने लगेगा। वास्तव में ऐसा सोचना भ्रमपूर्ण होगा क्योंकि प्रभावपूर्ण माँग को कम करने का अभिप्राय अनावश्यक उपभोग को कम करना है।
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🎁आय व धन वितरण की विषमताओं को कम करना - 🎉आय व धन के वितरण की समानता बनाए रखना आर्थिक विकास का केवल लक्ष्य ही नहीं वरन् एक पूर्व आवश्यकता भी है। 🎉अत: सरकार को चाहिए कि अपनी राजकोषीय नीति का निर्माण इस प्रकार से करे कि धन वितरण की विषमताएँ देश में कम से कम हो सकें। 🎉इस दृष्टि से राजकोषीय नीति के अन्तर्गत निम्न उपायों को समिलित किया जा सकता है - 🖊धनी वर्ग पर प्रगतिशील कर (Progressvie Taxes) लगाए जाएँ जिससे कि सरकार को अतिरिक्त रूप से आय प्राप्त हो सके पर करों की मात्रा कम रखी जाए। 🖊निर्धन अथवा अल्प आय वर्ग कर करों की मात्रा कम रखी जाए। पपपद्ध विलासिता की वस्तुओं पर भारी मात्रा में कर लगाकर, उन पर किये जाने व्यय को विनियोगिक क्षेत्रों की ओर हस्तान्तरित किया जाए। 🖊सरकार को अपना अधिकांश व्यय सामाजिक सेवाओं अथवा विशेष रूप से उन मदों पर करना चाहिए जिनसे निर्धनों को अधिक लाभ पहुंचता हो। 🖊राजकोषीय नीति का ढाँचा इस प्रकार होना चाहिए कि अनुपार्जित आय पर यथाचित रोक लगायी जा सके और विकास के लिए आय (Economic Surplus) की उपलब्धि हो सके। 🎉अधिकांश प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का मत था कि धन वितरण की विषमताएँ पूंजी निर्माण व आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। 🎉इसका कारण इन लोगों की दृष्टि में बचत सदैव धनी वर्ग द्वारा की जाती है। 🎉आज इस मान्यता के विपरीत प्रो. ड्यूनबरी के विचारों के आधार पर अब यह सिद्ध किया जा चुका है कि धन की असमानताओं की अपेक्षा, धन के समान वितरण होने पर, बचतों के प्राप्त होने की सम्भावना अधिक होती है। 🎉इसी प्रकार के कुछ अन्य लोगों द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया जाता है कि अल्प विकसित देशों में राजकोषीय नीति का उद्देश्य आर्थिक विषमताओं को कम करने के स्थान पर उत्पादन में वृद्धि करना होना चाहिए। यह धारणा भी निर्मूल व निराधार है। 🎉देश के आर्थिक विकास हेतु धन वितरण की विषमताओं का कम किया जाना अत्यावश्यक है।
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🎁राष्ट्रीय आय में वृद्धि - 🎉पूंजी निर्माण के अलावा राजकोषीय नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है। 🎉यद्यपि राष्ट्रीय आय वृद्धि और राजकोषीय नीति का केाई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है तथा राजकोषीय नीति परोक्ष रूप से, राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए सहायक सिद्ध हो सकती है। 🎉इस दृष्टि से राजकोषीय नीति के अन्तर्गत सदैव इस बात का प्रयत्न किया जाना चाहिए कि- 🖊करारापेण द्वारा प्राप्त बचतो का तत्काल विनियागे किया जाएगा 🖊सावर्ज निक व्यय आरै सावर्ज निक ऋणों की अधिकांश मात्रा नव-निमार्ण व विकास कायोर्ं की ओर गतिशील की जाए, 🖊देश में निजी उद्यमकर्ताओं को कर छूट द्वारा अथवा वित्त्ाीय सहायता प्रदान करके, विनियोग करने के लिए प्रेरित किया जाए। 🖊यह ठीक है कि अल्प-विकसित देशों में नव-प्रवर्तन और उद्यमियों का अभाव होता है। 🖊परन्तु प्रो. स्पैंगलर का मत है कि- यह नीति ‘‘ऐसे बहुत से साहसियों की कमी को पूरा कर सकती है।’’ यदि राजकोषीय नीति का निर्धारण उपर्युक्त उपायों की दृष्टि में रखकर किया जाए तो निश्चित है कि, 🖊इसमें विनियोजन कार्य को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
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🎁पूंजी निर्माण - 🎉अल्प विकसित देशों में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय के कम होने के कारण बचतें बहुत कम होती हैं जिसके फलस्वरूप विनियोग हेतु आवश्यक पूंजी का अभाव बना रहता है। 🎉निम्न आय, अल्प बचतें, कम विनियोग और निम्न उत्पादकता के कारण निध्र्मानता के दुष्चक्र (Vicious Circle of Poverty) जन्म लेने लगते है, जिनको तोड़ना राजकोषीय नीति का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। 🎉चूंकि इन देशों में आय के स्तर को देखते हुए, उपभोग की प्रवृित्त (Propensity to Consume) अधिक होती है. 🎉इसलिए राजकोषीय नीति के अन्तर्गत करारोपण द्वारा चालू उपभोग को कम करके, बचत में वृद्धि करने के प्रयत्न किए जाते हैं, ताकि पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक धनराशि प्राप्त हो सके। 🎉प्रो. रागनर नर्कसे का मत है कि-’’अल्प-विकसित देशों मे करारोपण नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में उसी अनुपात में वृद्धि करना है जो पूंजी निर्माण में लगाया जाता है।’’ 🎉यदि अल्प-विकसित देशों में अनावश्यक उपभोग पर करारोपण द्वारा वांछित रोक न लगायी जाए तो इसके कुछ घातक परिणाम हो सकते है. 🎉जैसे- देश में पूंजी निर्माण का कार्य या तो अवरुद्ध बना रहेगा अथवा अत्यन्त मन्द गति से होगा 🎉आर्थिक विकास के फलस्वरूप होने वाली आय वृद्धि पूर्णतया उपभोग कर ली जायेगी 🎉देश की मुद्रा स्फीतिक दशाएँ उत्पन्न होने लगेंगी।
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🎁राजकोषीय नीति के उद्देश्य 🎉किसी भी देश की राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य सैद्धान्तिक रूप से, क्रियात्मक वित्त प्रबन्धन (Functional Finance Managemnat) तथा कार्यशील वित्त प्रबन्धन की व्यवस्था करना है। 🎉दूसरे शब्दों में आर्थिक विकास के लिए आवश्यक एवं पर्याप्त मात्रा में धन की व्यवस्था करना राजकोषीय नीति का मुख्य कार्य है। 🎉यद्यपि राजकोषीय नीति के उद्देश्य किसी राष्ट्र विकास के लिए उसकी परिस्थितियों, विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं और विकास की अवस्था के आधार पर निर्धारित किये जाते है. 🎉फिर भी सामान्य दृष्टि से अल्प-विकसित एवं विकासशील देशों की राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित कहे जा सकते हैं -
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🎁राजकोषीय नीति 🎉राजकोषीय नीति के अभिप्राय, साधारणतया, सरकार की आय, व्यय तथा ऋण से सम्बन्धित नीतियों से लगाया जाता है। 🎉प्रो0 आर्थर स्मिथीज ने राजकोषीय नीति को परिभाषित करते हुए लिखा है कि- ‘‘राजकोषीय नीति वह नीति है जिसमें सरकार अपने व्यय तथा आगम के कार्यक्रम को राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार पर वांछित प्रभाव डालने और अवांछित प्रभावों को रोकने के लिए प्रयुक्त करती है। 🎉इस सम्बन्ध में श्रीमती हिक्स (Mrs. Hicks) का कहना है कि ‘‘राजकोषीय नीति का सम्बन्ध उस पद्धति से है जिसमें लोक-वित्त के विभिन्न अंग अपने प्राथमिक कत्त्व्यों को पूरा करने के लिए सामूहिक रूप से आर्थिक नीति के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं।’’ 🎉उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार, अर्थव्यवस्था में सर्वोच्च उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राजकोषीय नीति व्यय, ऋण, कर, आय, हीनार्थ प्रबन्धन आदि की समुचित व्यवस्था बनाये रखती है, जैसे-आर्थिक विकास, कीमत में स्थिरता, रोजगार, करारोपण, सार्वजनिक आय-व्यय, सार्वजनिक ऋण आदि। इन सबकी व्यवस्था राजकोषीय नीति में की जाती है। 🎉राजकोषीय नीति के आधार पर सरकार करारोपण करती है। वह यह देखती है कि देश में लोगों की करदान क्षमता बढ़ रही है अथवा घट रही है। 🎉इन सब बातों का अनुमान लगाकर ही सरकार करों का निर्धारण करती है। व्यय नीति में भी वे निर्णय शामिल किये जाते हैं जिनका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। 🎉ऋण नीति का सम्बन्ध व्यक्तियों के ऋणों के माध्यम से क्रय शक्ति को प्राप्त करने से होता है। सरकारी ऋण-प्रबन्ध नीति का सम्बन्ध ब्याज चुकाने तथा ऋणों का भुगतान करने से होता है। 🎉राजकोषीय नीति आय, व्यय व ऋण के द्वारा सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करती है। स्मरण रहे, राजकोषीय नीति और वित्त्ाीय नीति में अन्तर होता है। 🎉राजकोषीय नीति के अन्तर्गत मुख्य रूप से चार बातों को सम्मिलित किया जाता है - 🔥सरकार की करारोपण नीति (Taxation Policy), 🔥सरकार की व्यय नीति (Expenditure Policy), 🔥सरकार की ऋण नीति (Public Debt Policy), 🔥सरकार की बजट नीति (Budgetary Policy),
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🎁बारहवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 तक चलनी थी। 🎉परन्तु 2014 में योजना आयोग को बंद करके 2015 से नीति आयोग शुरू किया गया। 🎉प्राथमिकता – तीव्रतम एवं समावेशी विकास।
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🎁ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 2007 से 31 मार्च 2012 तक चली। 🎉प्राथमिकता – तीव्रतम एवं समावेशी विकास। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 9% 💎प्राप्ति 7.9% 🎉सबसे उच्चतम विकास दर इसी पंचवर्षीय योजना में प्राप्त की गयी। 🎉प्रमुख कार्य – 💎आम आदमी बीमा योजना। 💎राजीव आवासीय योजना। 💎प्रधान मंत्री आदर्श ग्राम योजना।
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🎁दसवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 2002 से 31 मार्च 2007 तक चली। 🎉प्राथमिकता – गरीबी को समाप्त करना एवं अगले 2 वर्ष में प्रति व्यक्ति आय को दुगना करना। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 8% 💎प्राप्ति 7.7%
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🎁नौवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1997 से 31 मार्च 2002 तक चली। 🎉प्राथमिकता – मानव विकास के साथ न्यायपूर्ण 🎉वितरण एवं समानता पर बल दिया गया। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 6.5% 💎प्राप्ति 5.5% 🎉यह योजना अंतर्राष्ट्रीय मंदी के कारण असफल रही।
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🎁आठवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1992 से 31 मार्च 1997 तक चली थी। 🎉योजना आयोग के अध्यक्ष पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव थे। 🎉जॉन डब्ल्यू मिलर मॉडल पर आधारित थी। 🎉प्राथमिकता – रोजगार वृद्धि आधुनिकरण एवं आत्मनिर्भरता। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 5.6% 💎प्राप्ति 6.8% 🎉प्रधानमंत्री रोजगार योजना की शुरुआत इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान हुयी। 🎉आठवी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत ही LPG Reforms (Liberalisation, Privatisation and Globalisation) आये गये थे।
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🎁सातवी पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1985 से 31 मार्च 1990 तक चली। 🎉प्राथमिकता – रोजगार, शिक्षा और जन स्वास्थ्य पर बल दिया गया। 🎉“भोजन, काम और उत्पादन” का नारा इसी योजना में दिया गया। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 5% 💎प्राप्ति 6% 🎉“गरीबी की माप” सबसे पहले इसी योजना में लकड़वाल समिति द्वारा हुयी थी। 💎जवाहर रोजगार योजना भी इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू करी गयी। 💣योजना अवकाश (तृतीय) (1990-1992) 🎉वर्ष 1990 से 1992 तक भारत गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था। 🎉इस समय अवधि के दौरान पंचवर्षीय योजनाओं को नहीं बनाया गया था। 🎉इस समय काल को तृतीय योजना अवकाश के नाम से जाना जाता है।
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🎁छठी पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1980 से 31 मार्च 1985 तक चली। 🎉प्राथमिकता – गरीबी निवारण, आर्थिक विकास, आधुनिकरण एवं आत्मनिर्भरता मुख्य उद्देश्य रहें। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 5.2% 💎प्राप्ति 5.7% 🎉ग्रामीण बेरोजगारी, गरीबी निवारण से सम्बन्धित कई योजनाएँ चलाई गयी। 🎉ग्रामीण विकास बैंक NABARD की स्थापना की गयी।
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🎁पांचवी पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1974 से 31 मार्च 1978 तक चली। 🎉सामाजिक वानिकी(Forestry) शुरू की गयी। 🎉प्राथमिकता – गरीबी उन्मूलन तथा आत्मनिर्भरता। 🎉गरीबी हटाओ का नारा इसी योजना में दिया गया। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 4.4% 💎प्राप्ति 4.5% 🎉यह योजना समय से पहले ही समाप्त हो गयी थी। Re-election के कारण इंदिरा गाँधी की सरकार 4 वर्ष में ही गिर गयी। 🎉बाद में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार आयी। 🎉मिर्डल ने पिछड़े देशों के लिए एक प्लान दिया था जिसे रोलिंग प्लान के नाम से जाना जाता है। 1978 में जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में इसे स्वीकार किया था। 🎉1975 में TPP(Twenty Point Program) गरीबी हटाओं अभियान लाया गया था। 🎉ये पंचवर्षीय योजना केवल 4 वर्ष की थी। 💣योजना अवकाश (द्वितीय)-1979-1980 🎉मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार ने वर्ष 1978 से पंचवर्षीय योजनाओं को पुनः बंद कर दिया तथा उसके स्थान पर वार्षिक योजनाऐं बनायीं, इस काल को द्वितीय योजना अवकाश के नाम से भी जाना जाता है।
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🎁चौथी पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1969 से 31 मार्च 1974 तक चली। 🎉योजना आयोग की अध्यक्ष इंदिरा गाँधी। 🎉प्राथमिकता – स्थिरता के साथ आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया। 🎉कृषि तथा सिंचाई को भी महत्व दिया गया। 🎉इस योजना का प्रारूप योजना आयोग के उपाध्यक्ष डी पी गाडगिल ने तैयार किया था। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 5.7% 💎प्राप्ति 3.4% 🎉प्रमुख कार्य- 💎इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान 14 बैंको का राष्ट्रीय करण किया गया था। 💎ISRO की स्थापना एक अन्य मुख्य कार्य था। 💎विकास दर की लक्ष्य प्राप्ति न होने के बाद भी इस पंचवर्षीय योजना ने अब तक सर्वाधिक कृषि वृद्धि दर्ज की गयी।
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🎁तृतीय पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1961 से 31 मार्च 1966 तक चली। 🎉योजना आयोग के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे। 🎉प्राथमिकता – आत्मनिर्भरता एवं कृषि एवं उद्योग पर बल दिया गया। सबसे अधिक बल कृषि पर दिया गया था। 🎉विकास दर- 🔥लक्ष्य 5.6% 🔥प्राप्ति 2.8% 🎉विकास दर का लक्ष्य पूरा न होने के कारण- 🐒1962 का भारत चीन युद्ध। 🐒1965 भारत पाक युद्ध। 🐒1966 का सूखा। 🐒हरित क्रांति शुरू हुयी थी। 🎉योजना अवकाश (प्रथम) (1966-1969) - 🖊तृतीय पंचवर्षीय योजना के विफल होने के कारण पंचवर्षीय योजनाओं को रोक दिया गया, इसी काल को प्रथम योजना अवकाश के नाम से जाना जाता है। 🖊अगले तीन वर्षों तक वार्षिक योजना चलाई गयी।
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🎁द्वितीय पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1956 से 31 मार्च 1961 तक चली। पी सी महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी। 🎉योजना आयोग के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे। 🎉प्राथमिकता – औद्योगिक विकास एवं उद्योग जगत पर केंद्रित थी। 🎉विकास दर- 🔥लक्ष्य 4.5% 🔥प्राप्ति 4.2% 🎉प्रमुख कार्य – 🔥राऊरकेला, भिलाई, दुर्गापुर इस्पात संयंत्रों की स्थापना। 🔥भारत सहायता क्लब की स्थापना इसी के अन्तर्गत हुयी थी।
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🎁राजकोषीय नीति की सीमाएँ 🎉करारापेण की प्रक्रिया में यकायक परिवर्तन करना आसान काम नही होता है। करों में वृद्धि करने से जनआक्रोश भड़क सकता है और सरकार करों को कम नहीं करना चाहती है। 🎉समयानसु ार सरकारी व्यया ें में परिवतर्न करना कठिन काम है क्याेिं क सावर्ज निक योजनाओं को जल्दी-जल्दी बदला नहीं जा सकता है। 🎉सरकारी व्यय प्राय: निजी व्यय का ही स्थान ले पाता है, सार्वजनिक व्यय का जितना अधिक विस्तार होता जाता हैं, निजी व्यय कम होता जाता है। 🎉उदाहरण के लिए, यदि सरकार स्वयं उद्योग-धन्धों का संचालन करने लगे, तो निजी विनियोग कम हो जायेगा। 🎉अत: यह कहना कि सार्वजनिक व निजी व्यय में वृद्धि करके राजकोषीय नीति को प्रभावी किया जा सकता है, गलत होगा। 🎉राजकोषीय नीति स्फीति की स्थिति को नियन्त्रित करने में सफल नहीं हो पाती है, मंदी-काल में भी राजकोषीय नीति द्वारा रोजगार बढ़ाने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं। 🎉राजकोषीय नीति पर राजनीतिक दबाव होता है, क्याेिं क राजस्व तथा व्यय से सम्बन्धित सभी परिवर्तनों के लिए संसद की स्वीकृत लेनी होती है। 🎉उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति के सम्मिलित प्रयासों से अर्थव्यवस्था सही दिशा दी जा सकती है।
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🎁मुद्रा स्फीति काल में राजकोषीय नीति - 😍स्फीति काल में मुद्रा का चलन अधिक होता है, परन्तु मुद्रा की क्रय-शक्ति में कमी हो जाती है। इस स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए व्यय को नियन्त्रित करना आवश्यक है। 😍यदि मुद्रा स्फीति युद्ध अथवा प्राकृतिक प्रकोपों अथवा आर्थिक विकास के कारण हो रही है, तो व्ययों में कमी करना कठिन हो जाता है। 😍सरकारी व्ययों में कमी न होने से करों में वृद्धि करके मुद्रा स्फीति को रोका जा सकता है। करों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाये कि लोगों की उपभोग प्रवृित्त्ा में कमी की जा सके। 😍दूसरी ओर बचतों को प्रोत्साहित करने की योजना भी बनायी जानी चाहिए। लोगों के आय प्रवाह को रोका जाना चाहिए। 😍सरकार को आकर्षक ब्याज-दरों की सहायता से लोगो की तरलता पसन्दी को कम करना चाहिए।
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🎁मन्दी काल में राजकोषीय नीति - 😍मन्दी काल में राजकोषीय नीति का उद्देश्य उपभोग-प्रवृित्त में वृद्धि करने के उपाय करना तथा सार्वजनिक व्यय अथवा निवेशों में वृद्धि करना होगा, यदि सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय बढ़ा दिया गया, तो निजी उद्योगों तथा व्यापार-वाणिज्य में स्फूर्ति आ जायेगी, जब निजी विनियोग में विस्तार होता है, तो सरकारी व्यय में कमी कर दी जाती है जिससे आर्थिक क्रिया में कोई शिथिलता नहीं आती है। 😍इस प्रकार रोजगार में वृद्धि होगी तथा आय बढ़ेगी तो उपभोग स्वत: ही बढ़ जायेगा। 😍मन्दी के समय कर की दरों में कमी करना लाभदायक होता है, परन्तु व्यावहारिक रूप से कर की दरों में कमी करना आसान काम नहीं है। 😍अत: उचित यह है कि सरकार अपना व्यय बढ़ाये, परन्तु कर न बढ़ाये जायें। जब सरकार द्वारा किया गया व्यय करों से प्राप्त होने वाली आय से अधिक होता है, तो घाटे का बजट बनाया जाता है। 😍घाटे की पूर्ति जनता से ऋण लेकर की जाती है। इससे निष्क्रिय नकद कोषों का उपयोग होता है और निजी खर्चों में कोई कमी नहीं आती है। 😍यदि ऋण बैंको से लिया जाता है, तो अधिक साख का सृजन होता है। इसका भार किसी पर नहीं पड़ता है और अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। 😍सड़कों, रेलों, स्कूलों, नदी-घाटी योजनाओं आदि पर व्यय करके दीर्घकालीन लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। घाटे की वित्त व्यवस्था 😍मन्दी काल में रोजगार बढ़ाने का प्रभावपूर्ण तरीका है। ध्यान रहे कि हीनार्थ प्रबन्ध का उपयोग आवश्यकता से अधिक न हो।
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1 & 3 June Daily Current Affairs Quiz for RAS / PSI 1. Hindi 2. English
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🎁राजकोषीय नीति का महत्व 😍राजकोषीय नीति में समय-समय पर परिवर्तन होते आये हैं। प्राचीन काल में यह माना जाता था कि राजकोषीय नीति केवल संकट काल में ही सहायक हो सकती है। 😍सामान्य परिस्थितियों में इसका कोई महत्व नहीं है। समय के बीतने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का स्वरूप परिवर्तित होने लगा। 😍मुद्रा का अविष्कार, औद्योगिकीकरण, आर्थिक प्रणालियों का जन्म, जनसंख्या की वृद्धि, व्यापार-चक्रों का आना, बेरोजगारी का बढ़ना, विकास व्यय व युद्ध व्ययें में वृद्धि, मंदीकाल आदि अनेक समस्याओं ने विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर दिया था। 😍इन सब समस्याओं के समाधान के लिए यह आवश्यक हो गया था कि राज्य की आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि की जाय। 😍अब राज्य की आर्थिक क्रियाओं में निरन्तर वृद्धि होने लगी है। अत: इन समस्याओं के समाधान के लिए राजकोषीय नीति की आवश्यकता होने लगी। 😍1930 की विश्वव्यापी मन्दी को दूर करने की समस्या के लिए प्रो. कीन्स ने राजकोषीय नीति की सहायता लेकर इस बात को प्रामाणिकता के साथ सिद्ध कर दिया था कि बेरोजगारी और मंदी जैसी समस्याओं को हल किया जा सकता है। 😍इस प्रकार हम कह सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था के संचालन में राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण स्थान है। 😍वर्तमान समय में तो बिना इसके काम नहीं चल सकता है। कार्यात्मक वित्त के रूप में राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण स्थान है।
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Good morning Tejians FREE RAS PRELIMS MOCK TEST DETAILED SOLUTION
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RAS_Prelims_Rajasthan_History_&_Culture_Paper_1_Q_Google_Docs_1.pdf14.94 MB
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🎁मुद्रा स्फीतिक दशाओं पर नियंत्रण लगाना - अल्प-विकसित देशों में विकास की आवश्यकताओं को देखते हुए पूंजी का सर्वथा अभाव होता है। प्राय: देखने में आता है कि धन की इस कमी को सम्बन्धित सरकारें हीनार्थ प्रबन्ध् ान के अन्तर्गत नोट छाप कर पूरा करती है। जिससे मुद्रा स्फीतिक दशाएँ उत्पन्न होने लगती हैं। बढ़ती हुई कीमतें, न केवल समाज के लिए कष्टप्रद हैं बल्कि विकास की लागत में भी अनावश्यक वृद्धि कर देती हैं। इस दृष्टि से राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण कार्य ‘प्रभावपूर्ण माँग’ (Effective Demand) को कम करके मुद्रा प्रसार पर रोक लगाना है। मुद्रा प्रसारिक दबावों को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है कि- जनता की अतिरिक्त क्रय शक्ति को करो अनिवार्य बचतों एवं सार्वजनिक ऋणों आदि को द्वारा कम किया जाए। कुछ विशष प्रकार के मुद्रा स्फीति विरोधी कर (Anti Inflationary Taxes) जैसे अधिलाभ कर (Super Tax) उपहार कर, व्यय कर, विशेष उत्पादन कर तथा विलासिता की वस्तुओं पर कर आदि लगाए जाने चाहिए। प्रत्यक्ष करो के अतिरिक्त तरल सम्पतियों कैश बैलेन्सेज व पूंजीगत सम्पतियों पर भी कर लगाये लाने चाहिए। करारोपण नीति का आधार प्रगतिशील होना चाहिए। कर नीति ऐसी होनी चाहिए कि एेि च्छक बचतो को प्रोत्साहित कर सके और अतिरिक्त क्रय शक्ति को नियन्त्रित कर सके। कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यदि राजकोषीय नीति द्वारा प्रभाव पूर्ण माँग को कम करके, मुद्रा प्रसार पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयत्न किया गया तो इससे उत्पादन व विनियोग की प्रेरणाएँ समाप्त हो जायेंगी । जिसके फलस्वरूप आर्थिक विकास का कार्य अवरुद्ध होने लगेगा। वास्तव में ऐसा सोचना भ्रमपूर्ण होगा क्योंकि प्रभावपूर्ण माँग को कम करने का अभिप्राय अनावश्यक उपभोग को कम करना है।
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