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MPPSC Prelims MCQ

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मध्य प्रदेश विधान सभा बजट सत्र का सजीव प्रसारण 03.07.2024

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* शतपथ ब्राह्मण तथा काठक संहिता में गोविकर्तन (गवाध्यक्ष), तक्षा (बढ़ई) तथा रथकार (रथ बनाने वाला) का नाम भी रत्नियों की सूची में मिलता है। *शतपथ ब्राह्मण में राजसूय यज्ञ का विस्तृत वर्णन है। * राजसूय यज्ञ में राजा का अभिषेक 17 प्रकार के जल से किया जाता था। * पारिवारिक जीवन ऋग्वैदिक काल के समान था। * समाज पितृसत्तात्मक था। * ऐतरेय ब्राह्मण से पता चलता है कि अजीगर्त ने अपने पुत्र शुनःशेप को 100 गायें लेकर बलि के लिए बेच दिया था। * उत्तर वैदिक काल में समाज चार वर्णों में विभक्त था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। * ऐतरेय ब्राह्मण में चारों वर्णों के कर्तव्यों का वर्णन मिलता है। * क्षत्रिय या राजा भूमि का स्वामी होता था। * वैश्य दूसरे को कर देते थे (अन्यस्यबलिकृत)। * शूद्र को तीनों वर्णों का सेवक (अन्यस्य प्रेष्यः) कहा गया है। * ऐतरेय ब्राह्मण में कन्या को चिंता का कारण माना गया है। * मैत्रायणी संहिता में स्त्री को पासा तथा सुरा के साथ तीन प्रमुख बुराइयों में गिनाया गया है। * बृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य-गार्गी संवाद का उल्लेख है। * उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की दशा में गिरावट आई। * छांदोग्योपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख है, जबकि सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख जाबालोपनिषद में मिलता है। ये थे ब्रह्मचर्य (25 वर्ष), गृहस्थ (25-50 वर्ष), वानप्रस्थ (50-75 वर्ष) तथा संन्यास (75-100 वर्ष)। * मनुष्य की आयु 100 वर्ष मानकर प्रत्येक आश्रम के लिए 25-25 वर्ष आयु निर्धारित की गई। * बौधायन धर्मसूत्र के अनुसार, गायत्री मंत्र द्वारा ब्राह्मण बालक का उपनयन संस्कार, वसंत ऋतु में 8 वर्ष की अवस्था में किया जाता था। * त्रिष्टुप मंत्र द्वारा क्षत्रिय बालक का उपनयन संस्कार ग्रीष्म ऋतु में 11 वर्ष की अवस्था में होता था। * जगती मंत्र द्वारा वैश्य बालक का उपनयन संस्कार शरद ऋतु में 12 वर्ष की अवस्था में होता था। * वैदिक काल में जीविकोपार्जन हेतु वेद-वेदांग पढ़ाने वाला अध्यापक उपाध्याय कहलाता था। * ब्रह्मवादिनी वे कन्याएं थीं, जो जीवन भर आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करती थीं। * जबकि साद्योवधू विवाह पूर्व तक शिक्षा प्राप्त करने वाली कन्याएं थीं। * गृहस्थ आश्रम में मनुष्य को 5 महायज्ञ का अनुष्ठान करना पड़ता था। ये पंच महायज्ञ हैं- * ब्रह्म यज्ञ-प्राचीन ऋषियों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना। * देव यज्ञ-देवताओं का सम्मान। * भूत यज्ञ-सभी प्राणियों के कल्याणार्थ। को * पितृ यज्ञ-पितरों के तर्पण हेतु। * मनुष्य यज्ञ-मानव मात्र के कल्याण हेतु। * शतपथ ब्राह्मण में कृषि की चारों क्रियाओं का उल्लेख हुआ है। ये हैं-जुताई, बुवाई, कटाई तथा मड़ाई। काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हलों खींचने का उल्लेख मिलता है। * उत्तर वैदिक काल में उत्तर भारत में लोहे का प्रचार हुआ। * उत्तर वैदिक साहित्य में लोहे को 'कृष्ण अयस' कहा गया है। * तैत्तिरीय संहिता में ऋण के लिए 'कुसीद' तथा शतपथ ब्राह्मण में उधार देने वाले के लिए 'कुसीदिन' शब्द मिलता है। * माप की विभिन्न इकाइयां थीं-निष्क, शतमान, कृष्णल, पाद आदि। * कृष्णल' संभवतः बाट की मूलभूत इकाई थी। *गुंजा तथा रत्तिका भी उसी के समान थे। * रत्तिका को साहित्य में 'तुलाबीज' कहा गया है। * शतपथ ब्राह्मण में पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्रों का उल्लेख हुआ है। * वाजसनेयी संहिता एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण में विभिन्न व्यवसायों की लंबी सूची मिलती है। * इनमें प्रमुख हैं-रथकार, - स्वर्णकार, लुहार, सूत, कुंभकार, चर्मकार, रज्जुकार आदि। * स्त्रियां रंगाई, - सुईकारी आदि में निपुण थीं। * उत्तर वैदिक काल में व्यापार वस्तु-विनिमय पर आधारित था। #history #virendra
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