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UPSC

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👉बहादुरशाह (1526-1537 ई.):👇 👉यह गुजरात का अन्तिम शासक था। उसके काल में गुजरात को शक्ति चरम पर पहुंच गई। उसने 1531 ई. में मालवा को गुजरात में मिला लिया। बहादुरशाह ने 1528 ई में अहमदनगर को जीतकर अपना खुतबा पढ़वाया। उसने दो रूमी उस्ताद तोपची मुस्तफा (रूमी खाँ) एर्व ख्वाजा जफर (सालमनी) की सेवाएं प्राप्त की थी। बहादुरशाह से 1531 ई में तुर्की नौसेना की सहायता से पुर्तगालियों की नौसेना को दीव में पराजित किया। बहादुरशाह ने 1534 ई. में मेवाड़ (चित्तौड़) पर भी आक्रमण किया। मेवाड़ की महारानी कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता मांगी। 1535 ई. में बहादुरशाह हुमायूँ से पराजित हुआ। बहादुरशाह की हत्या 1537 ई. में पुर्तगालियों ने धोखे से उस समय कर दी जब वह पुर्तगाली जहाज पर संधि के लिये गया। वहाँ झगड़ा हो गया व बहादुर शाह पानी में कूद गया या फैंक दिया गया जिससे वह समुद्र में डूबकर मर गया। इस समय पुर्तगाली गवर्नर नुन्हो डी कुन्हा था।अन्त में 1572-73 ई. में अकबर ने गुजरात को मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।✅ 👉Contact paid promotion @Helpersoyalhelper Share support our group link👉 https://t.me/rasreetgs
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👉आज बात करते हैं गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त की जिसके शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बर्बर हूणों की पराजय थी। हूण मध्य एशिया में निवास करने वाली एक खानाबदोश बर्बर जाति थी । हूणों के आक्रमणों का ही परिणाम था कि शक और यू-ची लोग भारत में प्रविष्ट हुए थे। कालांतर में हूणों की दो शाखाएँ हो गईं- पश्चिमी शाखा और पूर्वी शाखा | पश्चिमी शाखा के हूणों ने सुदूर पश्चिम में आक्रमण कर रोमन साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। हूण राजा एट्टिला के अत्याचार और बर्बरता के कारण समस्त पाश्चात्य विश्व में त्राहि-त्राहि मच गई थी । पूर्वी शाखा के श्वेत हूणों ने हिंदुकुश पर्वत को पार करके पहले गांधार पर कब्जा किया और फिर गुप्त साम्राज्य को चुनौती देने लगे। हूणों का प्रथम आक्रमण स्कंदगुप्त के समय में हुआ जिसका नेता संभवतः खुशनेवाज था । हूण आक्रमण का सफल प्रतिरोध कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा कटना स्कंदगुप्त के राज्यकाल की सबसे बड़ी घटना है। भितरी स्तंभ लेख के अनुसार स्कंदगुप्त की हूणों से इतनी भयंकर मुठभेड़ हुई कि संपूर्ण पृथ्वी काँप उठी। किंतु अंत में स्कंदगुप्त की विजय हुई और उसकी इस विजय के कारण उसकी अमल शुभ - कीर्ति कुमारी अंतरीप तक सारे भारत में गाई जाने लगी। बौद्ध ग्रंथ 'चंद्रगर्भ-परिपृच्छा' के अनुसार हूणों के साथ हुए इस युद्ध में गुप्त सेना में सैनिकों की संख्या दो लाख थी और हूणों की सेना तीन लाख थी। तब भी विकट और बर्बर हूणों के मुकाबले में गुप्त सेना की विजय हुई। चंद्रगोमिन् के व्याकरण में भी एक सूत्र मिलता है कि गुप्तों ने हूणों को पराजित किया जो स्कंदगुप्त के हूण विजय की ओर संकेत करता है। सोमदेव के 'कथासरित्सागर से भी पता चलता है कि उज्जयिनी के राजा महेंद्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य ने म्लेच्छों को पराजित किया था। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्कंदगुप्त के समय में बुरी तरह पराजित हुए और गांधार से आगे नहीं बढ़ सके। गुप्त साम्राज्य का वैभव स्कंदगुप्त के शासनकाल में प्रायः अक्षुण्ण रहा। स्कंदगुप्त का हूणों से युद्ध किस स्थान पर हुआ था, स्पष्ट नहीं है। कुछ इतिहासकार भितरी लेख में उल्लिखित श्रोत्रेषु गांगध्वनिः' के आधार पर अनुमान लगाते हैं कि यह युद्ध गंगाघाटी में कहीं लड़ा गया था, किंतु यह शब्द युद्धस्थल का सूचक नहीं माना जा सकता है | कुछ इतिहासकारों के अनुसार स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य युद्ध गुप्त साम्राज्य की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर हुआ होगा। जबकि कुछ इतिहासकारों का विचार है कि हूण युद्ध या तो सतलज नदी के तट पर या पश्चिमी भारत के मैदानों में लड़ा गया था। जूनागढ़ लेख से पता चलता है कि स्कंदगुप्त पश्चिमी प्रदेश की सीमा को लेकर चिंतित था और गहन विचार-विमर्श के बाद ही योग्य पर्णदत्त को इस प्रदेश का रक्षक नियुक्त किया था। इस प्रकार पश्चिमी भारत के किसी भाग को ही युद्ध- स्थल मानना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। युद्ध कहीं भी हुआ रहा हो, इतना निश्चित है कि स्कंदगुप्त हूणों को पराजित कर गुप्त साम्राज्य को एक भीषण संकट से बचा लिया। इस वीर - कृत्य के कारण वह समुद्रगुप्त एवं चंद्रगुप्त द्वितीय की भाँति 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण करने का अधिकारी हो गया। स्कंदगुप्त ने हूणों को 460 ई. के पूर्व पराजित किया होगा क्योंकि इस तिथि के कहोम लेख से ज्ञात होता है कि उसके राज्य में शांति थी। बाद के इंदौर और गढ़वा लेखों से भी उसके साम्राज्य में शांति और समृद्धि की सूचना मिलती है। इस प्रकार हूण आक्रमण उसके शासन के प्रारंभिक वर्षों में हुआ होगा। परन्तु इस महान‌ सम्राट के साथ‌‌ इतिहासकारों ने न्याय नहीं किया और देश‌ के अधिकांश लोग‌ इस महान शासक की उपलब्धियो के बारे में कुछ नहीं जानते। चित्र - स्कंदगुप्त के पश्चिमी क्षत्रप मॉडल में चांदी के सिक्क✅ 👉Contact paid promotion @Helpersoyalhelper Share support our group link👉 https://t.me/rasreetgs
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पानीपत का तृतीय युद्ध 👇👇👇👇👇👇👇   यह युद्ध 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया था उस समय मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव था तथा युद्ध का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ के द्वारा किया गया इस युद्ध में मराठा तोपखाने का नेतृत्व इब्राहिम गार्दी ने किया वही इमादुमुल्क जो मुगल वजीर था इन्होंने भी मराठों का समर्थन किया था " दो मोती विलीन हो गए 22 सोने की मुहरे लुप्त  हो गई और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती" इन्हीं पंक्तियों के माध्यम से एक व्यापारी ने बालाजी बाजीराव को पानीपत के युद्ध के परिणाम के बारे में बताया था जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि महाराष्ट्र में संभवत कोई ऐसा परिवार न था जिसने कोई न कोई संबंध नहीं खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश हो गया काशीराज पंडित  ने इस युद्ध का आंखों देखा हाल लिखा है इस युद्ध हार का कारण मराठों की  सुझबुझ का अभाव था जैसे  मराठे ठंड मे लडने के लिए आदी नहीं थे वही अहमद शाह अब्दाली की सेना इसके लिए अभयस्त थी तत्कालीन जाट शासक सूरजमल ने उन्हें इसका इतजार करने के लिए कहा था सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को परामर्श दिया कि वह स्त्रियां तथा बच्चों जो सैनिकों के साथ थे तथा भारी तोपों और अन्य ऐश्वर्य की सामग्री झांसी अथवा ग्वालियर में ही छोड़ जाए परंतु उन्होंने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया सूरजमल ने मराठों को परंपरागत युद्ध पद्धति में ही लड़ने के लिए कहा लेकिन मराठा सरदारों के परस्पर द्वेष के कारण उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया जैसा कि सदाशिव राव भाऊ मल्हार राव होलकर को एक व्यर्थ वृद्ध पुरुष समझता था और मल्हार राव होलकर ने भी क्रुद्ध होकर युद्ध से पूर्व कहा था कि यदि शत्रु इस पुणे के ब्राह्मण को नीचा नहीं दिखाएगा तो हम से तथा अन्य मराठा सरदारों से ये लोग कपड़े धुल जाएंगे इसी प्रकार मराठों की लूटमार निती  ने उत्तरी भारत में उनके लिए दुशमन खडे कर दिए जिसका उदाहरण 17 जुलाई 1734 को हुरडा सम्मेलन में देख सकते हैं कि किस प्रकार समस्त राजपूतों ने एकत्र होकर मराठों के आक्रमणों को रोकने के लिए सम्मेलन का आयोजन किया हालांकि यह असफल रहा था इस प्रकार कहा जा सकता है कि मराठों ने सूरजमल की सलाह को न मानकर पराजय अपनी झोली में डाल ली  जिसका प्रत्यक्ष फायदा अंग्रेजों को मिला और भारत में उनका मुकाबला करने वाली कोई शक्ति नहीं रही... 👉Contact paid promotion @Helpersoyalhelper Share support our group link👉 https://t.me/rasreetgs
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👉📚राजस्थान -एक परिचय राजस्थान हमारे देश का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य हैं, जो हमारे देश के उत्तर-पश्चिम मे स्थित है। यह भू-भाग प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक कई मानव सभ्यताओ के विकास एवं पतन की स्थली रहा है। यहाँ पूरा-पाषाण युग, कांस्य युगीन सिंधु सभ्यता की प्राचीन बस्तियाँ, वैदिक सभ्यता एवं ताम्रयुगीन सभ्यताएँ खूब फली फूली थी। छठी शताब्दी के बाद राजस्थानी भू-भाग मे राजपुत राज्यो का उदय प्रारम्भ हुआ। जो धीरे धीरे सम्पूर्ण क्षेत्र मे अलग-अलग रियासतो के रूपमे विस्तृत हो गयी। ये रियासते राजपूत राजाओ के अधीन थी। राजपूत राजाओ की प्रधानता के कारण कालांतर मे इस सम्पूर्ण क्षेत्र को 'राजपूताना' कहा जाने लगा। वाल्मीकि ने राजस्थान प्रदेश को 'मरुकांतार' कहा है। राजस्थान शब्द का प्राचीनतम प्रयोग 'राजस्थानीयादित्य' वी.स. 682 मे उत्कीर्ण वसंतगढ़ (सिरोही) के शिलालेख मे उपलब्ध हुआ है। उसके बाद मुहणौत नैन्सी के ख्यात व रजरूपक में राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ है। परंतु इस भू-भाग के लिए राजपूताना शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1800 ई. मे जॉर्ज थॉमस द्वारा किया गया था। कर्नल जेम्स टोड (पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यो के पॉलिटिकल एजेंट) ने इस राज्य को 'रायथान' कहा, क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल मे राजाओ के निवास को रायथान कहते थे। उन्होने 1829 ई. मे लिखित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक 'Annals & Antiquities of Rajas'than' or Central and Western Rajpoot States of India) मे सर्वप्रथम इस भौगोलिक प्रदेश के लिए 'Rajas'than' शब्द प्रयुक्त किया। स्वतन्त्रता के पश्चात 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से इस प्रदेश का नाम 'राजस्थान' स्वीकार किया गया। स्वतन्त्रता के समय राजस्थान 19 देसी रियासतो, 3 ठिकाने- कुशलगढ़, लावा व नीमराना तथा चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशाषित अजमेर-मेरवाड़ा प्रदेश मे विभक्त था। स्वतंत्रता के बाद अजमेर-मेरवाड़ा के प्रथम एवं एकमात्र मुख्यमंत्री श्री हरिभाऊ उपाध्याय थे। राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप मे 1 नवम्बर, 1956को आया 👉Contact paid promotion @Helpersoyalhelper Share support our group link👉 https://t.me/rasreetgs
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सूफीवाद 1.सुल्तान उत तारकीन अर्थात सन्यासियों का सुल्तान किसे कहा जाता है उतर-  हमीदुद्दीन नागौरी नोट-  इसने अपना खानकाह  नागौर बनाया था और यह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का शिष्य था 2. चिश्ती संप्रदाय के किस संत ने आठ सुल्तानों का शासन देखा था लेकिन वह कभी किसी के दरबार में ले गया उतर- निजामुद्दीन औलिया नोट-  यह बाबा फरीद का शिष्य था इसे महबुब ए इलाही  भी कहा जाता है इसने  अपने ग्रंथ रहतुल कुलूह मे गुरु फरीद के साथ धार्मिक वार्तालाप का वर्णन किया है 3.हनुज दिल्ली दूरस्ते  कथन किसका है उतर- यह कथन निजामुद्दीन औलिया का है जो उन्होंने गयासुद्दीन तुगलक को कहा था और बीच रास्ते में ही अफखानपुर में लकड़ी के महल के ढह जाने के कारण इनकी मृत्यु हो गई थी इसे नसिरुदीन खुशरव शाह जो सल्तनत काल में बनने वाला एकमात्र भारतीय मुसलमान शासक था ने 500000 टकां दान में दिया था यहां इस तथ्य को उल्लेखित करना प्रासंगिक होगा कि इस शासक के शासनकाल में ही इमामुद्दीन रेहान वजीर के पद पर पहुंचने वाला एकमात्र भारतीय मुसलमान था 4.खेरुल मजलिस किसकी रचना है उतर- शेख नसीरुद्दीन चिराग देहलवी जो निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था 5. राजकीय भेटं स्वीकार करने वाला चिश्ती संप्रदाय का प्रथम संत कौन था उतर-गेसुदराज नोट यह उत्तर भारत से दक्षिण भारत गया था तथा अपने लंबे बालों के कारण  प्रसिद्ध था इसने गुलबर्गा मैं अपना खानकाह स्थापित किया 6. सुहारावर्दी सिलसिले के किस संत को इल्तुतमिश ने शेख उल इस्लाम का पद प्रदान किया था उतर-बहाउद्दीन जकारिया नोट- इसने इल्तुतमिश को कुबाचा के खिलाफ मुल्तान विजय में सहयोग किया था 7. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नींव किस सूफी संत के द्वारा रखी गई थी उतर- मीया मीर नोट- यह कादिरी सिलसिले का संस्था इसके दो हिंदु सतं  पंडित मियां माधव तथा नत्थू तेली थे 8.सिर्र ए अकबर के नाम से 52 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किसके द्वारा करवाया गया था उतर- दारा शिकोह नोट-यह मुल्लाहाह बदख्शी  का शिष्य था इसने मज्म उल बहरीन की भी रचना की थी जो हिंदू और मुसलमानों के बीच समन्वय की बात करता है 9. नक्शबंदी सिलसिला के किस संत को जहांगीर ने जेल में डाल दिया था उतर- शेख अहमद सर हिंदी जिसने नूरजहां की आलोचना की थी 10. औरंगजेब ने किसके कहने पर जजिया कर लगाया था उत्तर-शेख मासुम  जो औरंगजेब का गुरु था 👉Contact paid promotion @Helpersoyalhelper Share support our group link👉 https://t.me/rasreetgs
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🏪 राजस्थान के नये मुख्यमंत्री कौन बन गये हैं? ✅✅⚡ A. भजनलाल शर्मा  B. डॉ. मोहन यादव C. अशोक गहलोत D. वसुंधरा राजे सिंधिया 💠सही उत्तर पर क्लिक करें 👆👆
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