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Shiv Talent Hub

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ਅਖੀਰੀ ਵਕਤ ਇਹ ਮੰਜ਼ਰ ਹੈ ਕੈਸਾ ਕਿ ਤੂੰ ਪਰਵਾਜ਼ ਭਰਨੀ ਅੰਬਰਾਂ ਦੀ ਤੇ ਮੈਂ ਏਥੇ ਹੀ ਟੁੱਟ ਕੇ ਡਿੱਗਣਾ ਹੈ। - ਸੁਰਜੀਤ ਪਾਤਰ
ਪਦਮਸ਼੍ਰੀ ਸੁਰਜੀਤ ਪਾਤਰ ਦਾ ਹੋਇਆ ਦੇਹਾਂਤ।
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Due to personal reasons Details will be updated tomorrow
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Today we will share details about our new batch Super 20
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भारत की पहली बहुउद्देश्यीय हरित हाइड्रोजन पायलट परियोजना का उद्घाटन हिमाचल प्रदेश के झाकड़ी में 1,500 मेगावाट के नाथपा झाकड़ी हाइड्रो पावर स्टेशन में किया गया. India's first multi-purpose green hydrogen pilot project was inaugurated at the 1,500 MW Nathpa Jhakri Hydro Power Station in Jhakri, Himachal Pradesh.
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Dubai Begins Construction Of 'World's Largest' Airport With 400 Gates Al Maktoum International Airport Passenger capacity will be 260 million that will be world largest capacity It will cost approximately $34.85 billion or nearly Rs 2.9 lakh crore ਦੁਬਈ 'ਚ 400 ਗੇਟਾਂ ਵਾਲੇ 'ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ' ਹਵਾਈ ਅੱਡੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸ਼ੁਰੂ ਅਲ ਮਕਤੂਮ ਅੰਤਰਰਾਸ਼ਟਰੀ ਹਵਾਈ ਅੱਡਾ ਯਾਤਰੀ ਸਮਰੱਥਾ 260 ਮਿਲੀਅਨ ਹੋਵੇਗੀ ਜੋ ਵਿਸ਼ਵ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੋਵੇਗੀ ਇਸ 'ਤੇ ਲਗਭਗ 34.85 ਅਰਬ ਡਾਲਰ ਜਾਂ ਲਗਭਗ 2.9 ਲੱਖ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਲਾਗਤ ਆਵੇਗੀ
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ਜਿੱਥੇ ਤੰਗ ਨਾ ਸਮਝਣ ਤੰਗੀਆਂ ਨੂੰ ਜਿੱਥੇ ਮਿਲਣ ਅੰਗੂਠੇ ਸੰਘੀਆਂ ਨੂੰ ਜਿੱਥੇ ਵਾਲ ਤਰਸਦੇ ਕੰਘੀਆਂ ਨੂੰ ਨੱਕ ਵਗਦੇ ਅੱਖਾ ਚੁੰਨੀਆਂ ਤੇ ਦੰਦ ਕਰੇੜੇ ਤੂੰ ਮਘਦਾ ਰਹੀਂ ਵੇ ਸੂਰਜਾ ਕੰਮੀਆਂ ਦੇ ਵਿਹੜੇ। ਮਜ਼ਦੂਰ ਦਿਵਸ (Labour Day) ਦੀਆਂ ਸਾਰੇ ਮਿਹਨਤੀ ਦੋਸਤਾਂ ਨੂੰ ਵਧਾਈਆਂ।
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Must Read जरूरी नहीं है प्रतिक्रिया देना। प्राकृतिक न्याय भी कोई चीज होती है। भगवान महावीर के कानों में लकड़ी की कीलें डाल दी गई थी। वो प्रतिमा ध्यान में थे, मौन में। एक ग्वाले ने उन्हें अपने जानवरों का ध्यान रखने को कहा, महावीर ध्यान में लीन रहे, जानवर खो गए। ग्वाला क्रोधित हुआ, लकड़ी को नुकीला करके कीलें बनाई और भगवान महावीर के कानों में ठूस दिया। भगवान क्रोधित हो सकते थे, बदला ले सकते थे, कुंठित हो सकते थे, निंदा कर सकते थे। पर नहीं, भगवान शांत रहे। क्योंकि ये कर्मों का, प्रकृति का न्याय था। वो यूं कि भगवान महावीर इससे पहले जब अपने 18 वें अवतार वासुदेव में थे, तो उन्होंने गद्दी बनाने वाले सेवक के कानों में गर्म शीशा डलवा दिया था। भगवान महावीर ने इस नियति के न्याय को शांत चित्त से स्वीकार किया। इस acceptance को या स्वीकृति को ही आज The art of letting go कहते हैं। पिछले 2 सालों से The art of letting go पर काम कर रहा हूं। यानि अपनी शांति और सुकून पर ध्यान। किसी ने कुछ बुरा कहा तो इग्नोर कर दिया। किसी ने कोई आरोप या लांछन लगाया तो सुन कर बस मुस्कुरा दिया। क्या स्पष्ट करना है, किसे स्पष्ट करना है, और आखिर क्यों स्पष्ट करना है ? किसी ने अतीत में कुछ बिगाड़ा था तो माफ कर दिया। कोई आज भी गलत समझ रहा है तो उसे मुस्कुरा कर कह दिया, समझते रहो। इस प्रक्रिया में संयम और संभवतः सामने से गलत बोलने वाले की मनोस्थिति समझना आ गया है। आपके पीछे कोई बात करता है, तो शायद कोई तो बात आपमें होती ही है। हालांकि प्रतिक्रिया ना देना कई बार सामने वाले को दोषी दिखा देता है पर अंतोतगत्वा जीत संयम की ही होती है। मेरे जीवन की पहली नौकरी में एक सज्जन पुरुष मेरे से बहुत कुंठित थे। मेरी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते थे। उनके स्नेह के चलते 1.5 करोड़ के गबन का मुकदमा तक हुआ मुझ पे, जिसमे वो गवाह थे। तब मैं भी युवा था, अल्प बुद्धि में था, सो उनसे खफा था। समय बीता, उनमें पता नही आई या नहीं, पर मेरे में परिपक्वता आई। उस वक्त उनका मुझे गिराने का हर प्रयास मुझे अब प्राकृतिक लगने लगा। क्योंकि वो जिस पद पर सालों से आना चाहते थे, वहां एक कल का छोकरा बिठा दिया गया था। क्या करते वो, सो उनकी मनोस्थिति समझ मैने उन्हे माफ कर दिया। कुछ समय पहले एक महत्वपूर्ण पद पर किसी को एक रिटायर्ड व्यक्ति की आवश्यकता थी। मैने हर कड़वाहट भूल कर सालों बाद उन्हीं सज्जन पुरुष को कॉल की और नियुक्ति ऑफर की। वो परेशान भी थे, आशंकित भी और भावुक भी। आज वो स्थापित हैं अच्छे से। फेसबुक पर नहीं है इसलिए ये वाकया लिख दिया। ये प्रसंग इसलिए लिखा क्योंकि प्रकृति इस कुंठा को छोड़ने का भी किसी न किसी जन्म में न्याय जरूर करेगी। वर्तमान से पूर्व सेवा काल के भी कई आरोप प्रत्यारोप मित्रों के माध्यम से पहुंचते हैं। पर अब क्रोध नहीं आता। सामने वाले की कुंठित मनोस्थिति समझ आती है। जो जिस स्तर का होता है, वहीं तक सोच सकता है बेचारा। उसके बस में नहीं है। यह उसकी नियति है। आप जब बिंदु 1 से ऊंचा उठकर बिंदु 2 पर पहुंचते हैं, तो बिंदु एक पर खड़े लोग कुछ भी कहें, प्रकृति और कर्मों ने आपको उनसे ऊंचा कर ही दिया है। इसलिए कार्मिक और प्राकृतिक न्याय पर बहुत आस्था हो गई है। आपका कर्म आपके जमीर और हालात के हिसाब से अगर सही है, बेशक वो सामने वाले को समझ न आए, तो आप सुकून से जीते रहिए, प्रकृति अपने आप न्याय करेगी। मेरे एक मित्र/भूतकाल में रहे सहकर्मी द्वारा लिखी गई । Join @ShivTalentHub
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