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फटी जीन्स
गुरु चेला सम्वाद...
चेला-- हे बाबा! क्या फ़टी जीन्स को संस्कारो से जोड़ना उचित है? क्या संस्कारों का वस्त्रों से कोई सम्बन्ध है?
बाबा-- हे बालक! तुम पहले यह बताओ कि जीन्स को जांघो के पास फाड़ा ही क्यों जाता है? सोच कर देखो, क्या लक्ष्य है इस सुकृत्य का?
चेला-- हें हें हें हें... आप वल्गर हो रहे हैं बाबा!
बाबा- नहीं बालक! तुम जांघों पर जीन्स फाड़ने के पक्ष में एक भी सभ्य तर्क दे दो, हम तुम्हारी बात मान जाएंगे।
चेला- बाबा व्यक्ति की मर्जी भी तो कोई चीज होती है। पहनने वाले की जो मर्जी हो वह पहने, लोग कौन होते हैं कुछ कहने वाले?
बाबा- बेटा, यह तर्क नहीं जिद्द है। अपनी मर्जी के नाम पर तुम नग्न घूमों, कोई दिक्कत नहीं। पर लोग भी तुम्हे नंगा कहेंगे, तुम उन्हें नहीं रोक सकते... यदि तुम्हे नङ्गे घूमने का अधिकार है, तो जनता भी तुम्हे नंगा कहने को स्वतंत्र है।
चेला- किंतु बाबा! वासना किसी के पहनावे में नहीं, देखने वालों की दृष्टि में होती है।
बाबा-- हे बालक! अपने परिवार से बाहर के किसी अर्धनग्न व्यक्ति को देख कर भी यदि तुम्हारे अंदर वासना उत्पन्न नहीं होती, तो तुम सज्जन नहीं गे हो साले... वासना हर सजीव के मूल लक्षणों में से है। मनुष्य इसी वासना को दबाने के लिए सभ्य वस्त्र पहनता है। वस्त्र असभ्य हुआ तो वासना को किसी का बाप भी नहीं रोक सकता।
चेला- किन्तु बाबा! संस्कारों का वस्त्रों से क्या लेना देना?
बाबा- क्यों नहीं है बालक? एक संस्कारी व्यक्ति अपनी जांघों पर जीन्स क्यों फाड़ेगा भला? तुम कितने भी तर्क गढ़ लो, पर सत्य यही है कि कोई भी व्यक्ति यदि सम्पन्न होने के बाद भी अर्धनग्न है तो इसका एक ही अर्थ है कि वह अपनी नग्नता से लोगों को आकर्षित करना चाहता है। इसके अतिरिक्त अर्धनग्न होने का अन्य कोई कारण तुम्हे समझ में आ रहा हो तो कहो...
भक्त-- तो क्या आप मुख्यमंत्री जी की बातों से पूरी तरह सहमत हैं कि फ़टी जीन्स वाली मां अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पाएगी?
बाबा-- नहीं! मुख्यमंत्री जी से एक गलती हुई। उन्होंने जो बात माँ के लिए कही, वही बात बाप के लिए भी कहना चाहिए था। बच्चों को क्षमा कर दिया जाय, पर यदि किसी परिवार के बड़े लोग भी असभ्य वस्त्र पहनें तो गलत ही है।
भक्त-- बाबा! किसी अभिनेत्री ने कहा है कि मुख्यमंत्री उन्हें कोई ज्ञान न दे।
बाबा- देखो बालक! संस्कार सबके लिए एक से नहीं होते। एक विद्यार्थी का संस्कार अलग होता है और चरवाहे का अलग। किसी कुलवधू का संस्कार अलग होता है और एक नर्तकी का अलग। अभिनेत्री हीरोइन हैं, उन्हें अपनी अश्लील फिल्मों के लिए दर्शक भी ढूंढने हैं जो 500 रुपये की टिकट खरीद कर उनके कर्म देखें। सो उनके अभिभावको ने उन्हें इसके लायक संस्कार दिए होंगे। वह बिल्कुल भी गलत नहीं हैं। पर उनकी तुलना किसी सभ्य परिवार की बेटी-बहु से नहीं हो सकती न! क्या समझे?
चेला- बाबा! आप सनक गए हैं। आप पर फागुन चढ़ गया है...
बाबा- तनिक कोई मेरा खड़ाऊ लाओ तो रे... ई ससुर ऐसे नहीं मानेगा।
चेला- बाबा त्राहिमाम! हम चले...
आजकल जैसे-जैसे 14 फरवरी नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे इस सोशल मीडिया पर तथाकथित "वैलेंटाइन_डे" की खुमारी छाती जा रही है.
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर ये "वेलेंटाइन डे" है क्या....
और, ये मनाया क्यों जाता है ???
असल में इसकी जड़ पश्चिमी देशों से जुड़ी हुई है और लगभग 400 AD की है.
उस समय यूरोप और अमेरिका का समाज ... शादी से ज्यादा “Live in Relationship” (बिना शादी के पती-पत्नी की तरह से रहना) पर भरोसा करता था.
खुद प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) ने लिखा है कि “मेरा 20-22 स्त्रियों से सम्बन्ध रहा है”
कमोबेश यही बात अरस्तु और देकातेर ने भी कहा है.
रूसो ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा है कि “एक
स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, It’s Highly Impossible”.
मतलब कि.... वहाँ, एक पत्नी जैसा कुछ नहीं होता था.
लेकिन , बीच-बीच
में यूरोप में कुछ ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने इन बातों का विरोध किया और इस तरह के रहन-सहन की व्यवस्थाओं पर कड़ी टिप्पणी की.
ऐसा ही एक व्यक्ति वैलेंटाइन था जिसका जन्म 478 AD (after death) हुआ था.
उस वैलेंटाइन का कहना था कि “हम लोग (यूरोप के लोग) जो जानवरों की तरह कई लोगों से शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं वो उचित नहीं है क्योंकि इससे सेक्स-जनित रोग (venereal disease) होते हैं.
इसीलिए, हमें भी भारतीयों की तरह शादी करके किसी एक के साथ रहना चाहिए..
उसी बीच वो चर्च के पादरी हो गए तो चर्च में आने वाले हर व्यक्ति को वो ये सब बताने लगे.
और, जो लोग उनकी बात से सहमत हो जाते थे, वैलेंटाइन उनकी शादियाँ चर्च में कराते थे.
इस तरह से उन्होंने सैकड़ों शादियाँ करवाई थी.
उस समय रोम का राजा था.... क्लौड़ीयस.
क्लौड़ीयस ने कहा
कि “ ये वैलेंटाइन, हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है और यहाँ अपसंस्कृति फैला रहा है.
इसीलिए... वैलेंटाइन को पकड़ के लाओ “, तो उसके सैनिक वैलेंटाइन को पकड़ के ले आये.
फिर, वैलेंटाइन को शादी करवाने के जुर्म में फाँसी की सजा सुनाई गई.
और, जिनलोगों की शादी वैलेंटाइन ने करवाई थी.... उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईस्वी को फाँसी दे गई.
इससे, जिन बच्चों ने वैलेंटाइन के कहने पर शादी की थी... वे बहुत दुखी हुए और उन सब ने उस वैलेंटाइन की दुखद याद में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया.
और, उसी दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है.
कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि.... वैलेंटाइन, जो कि यूरोप में शादियाँ करवाते फ़िरते थे... और, चूंकि, राजा ने उनको फाँसी की सजा दे दी....
तो, उनकी याद में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है.
अब यही "वैलेंटाइन डे" हमारे हिंदुस्तान के स्कूल- कॉलजों
में आ गया है और बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है जहाँ लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे एक दूसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं.
जो कार्ड होता है उसमे लिखा होता है ” Would You Be My Valentine”
जिसका मतलब होता है .... “क्या आप मुझसे शादी करेंगे” ???
अब ये मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है...
और, वो समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं... उन्हें ये कार्ड देना चाहिए तो वो ये कार्ड अपने मम्मी-पापा और दादा-दादी को भी दे देते हैं.
इसका पूरा संदर्भ समझने के बाद सिर्फ एक ही बात कहा जा सकती है कि....
नकल के लिए अकल चाहिए होती है...!
नहीं तो सकल भी चला जाता है.
नोट : लेख पर अगर किसी सज्जन अथवा दुर्जन को आपत्ति हो तो वे कमेंट में लिखने के लिए स्वतन्त्र है.
मैंने , इसके पीछे की पूरी कहानी बता दी है और इसके बाद उम्मीद है कि आशिक मिजाज मित्रगण समझ जाएँगे.
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