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वैदिक संस्था 'विदथ' का महत्व बताइए (CGPSC PYQ 2016)
वैदिक संस्था 'विदथ' वैदिक काल में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक सभा थी। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है: 1. सामाजिक संगठन: विदथ एक महत्वपूर्ण सभा थी जहाँ समाज के विभिन्न वर्गों के लोग एकत्र होते थे। यह सभा समाज के संगठन और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। 2. राजनीतिक भूमिका: विदथ में राजा, प्रमुख, और अन्य प्रमुख व्यक्ति शामिल होते थे। यह सभा राजा की शक्तियों की निगरानी करती थी और आवश्यकतानुसार राजनीतिक निर्णय लेती थी। 3. न्यायिक कार्य: विदथ न्यायिक कार्यों में भी शामिल थी। यह सभा विवादों को सुलझाने और न्याय प्रदान करने का कार्य करती थी। 4. धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ: विदथ धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी थी। यहाँ पर धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। 5. आर्थिक और व्यापारिक महत्व: विदथ में आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों पर भी चर्चा की जाती थी। यहाँ पर व्यापारियों और कारीगरों के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे। 6. शिक्षा और ज्ञान का केंद्र: विदथ एक ऐसा मंच था जहाँ शिक्षा और ज्ञान का आदान-प्रदान होता था। यहाँ पर ऋषि, मुनि और विद्वान अपने ज्ञान को साझा करते थे और समाज के अन्य लोगों को शिक्षा प्रदान करते थे। इन बिंदुओं से यह स्पष्ट होता है कि विदथ वैदिक काल की एक महत्वपूर्ण संस्था थी, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित और संचालित करती थी। इसका महत्व समाज, राजनीति, न्याय, धर्म, और शिक्षा के क्षेत्रों में अत्यधिक था। #pyq_yuvaan_institute @mppscsynopsis
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जल प्रबंधन और स्वच्छता के संदर्भ में हड़प्पा नगर नियोजन का वर्णन कीजिए ?(MPPSC PYQ 2019)
हड़प्पा नगर नियोजन में जल प्रबंधन और स्वच्छता के उन्नत उपाय शामिल थे, जो इस सभ्यता की उत्कृष्ट तकनीकी और प्रबंधन क्षमताओं को दर्शाते हैं। इस संदर्भ में प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 1. जल निकासी प्रणाली: हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहरों में विकसित जल निकासी प्रणाली थी। मुख्य सड़कों के किनारे पक्की नालियाँ बनाई गई थीं, जो घरों से निकलने वाले गंदे पानी को दूर ले जाती थीं। ये नालियाँ ढकी हुई थीं, जिससे सफाई और मरम्मत के लिए इनका उपयोग किया जा सकता था। 2. कुआँ और स्नानागार: हड़प्पा के हर घर में कुआँ होता था, जो स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करता था। इसके अलावा, सार्वजनिक स्नानागार भी थे, जो धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार (ग्रेट बाथ) इसका प्रमुख उदाहरण है। 3. जल संग्रहण: हड़प्पा के लोग जल संग्रहण के लिए बड़े-बड़े जलाशयों का निर्माण करते थे। ये जलाशय वर्षा के पानी को संग्रहित करने के लिए थे, जिससे सूखे के समय में भी जल की उपलब्धता बनी रहती थी। 4. स्वच्छता के उपाय: घरों में शौचालय और स्नानघर होते थे, जो सीधे नालियों से जुड़े होते थे। यह सुनिश्चित करता था कि गंदगी आसानी से बाहर निकल जाए और नगर स्वच्छ रहे। 5. नालियों का रख-रखाव: नालियों के ढके होने से यह सुनिश्चित होता था कि गंदगी और कचरा नालियों में न जाए। नालियों को नियमित रूप से साफ करने के लिए मार्ग बनाए गए थे। इन सभी उपायों से यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पा सभ्यता में जल प्रबंधन और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया था, जो उस समय की अन्य सभ्यताओं की तुलना में बहुत उन्नत थे। #pyq_yuvaan_institute @mppscsynopsis
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PAPER-1,PART-A,UNIT-4 मध्यप्रदेश में विश्व धरोहर स्थल : 1.खजुराहो के मंदिर - स्थान: खजुराहो, छतरपुर जिला, मध्यप्रदेश - निर्माण काल: 950-1050 ई. - निर्माणकर्ता - चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित - यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित - 1986 - मुख्य विशेषताएं: - उत्कृष्ट वास्तुशिल्प और कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध। - हिंदू और जैन धर्म के मंदिरों का समूह। - नागर शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण। - प्रमुख मंदिर: कंदरिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर आदि। 2.सांची का स्तूप - स्थान: सांची,रायसेन जिला, मध्यप्रदेश - निर्माण काल: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व - निर्माणकर्ता - सम्राट अशोक द्वारा निर्मित - यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित - 1989 - मुख्य विशेषताएं: - बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल। - प्रमुख संरचना: सांची का महान स्तूप। - अन्य संरचनाएं: अशोक का स्तंभ, तोरण द्वार, छोटे स्तूप और मठ। - बौद्ध स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण। 3.भीमबेटका की गुफाएं - स्थान: भीमबेटका,रायसेन जिला, मध्यप्रदेश - प्राचीनता: लगभग 30,000 साल पुरानी - यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित - 2003 - मुख्य विशेषताएं: - प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला और शिल्पकला का अद्वितीय संग्रह। - गुफाओं में शैलचित्र जो प्राचीन मानव सभ्यता की जीवन शैली, शिकार, नृत्य, और अन्य गतिविधियों को दर्शाते हैं। - भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुराने मानव आवासों में से एक। - भीमबेटका की गुफाएं मानव इतिहास के प्रारंभिक चरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये स्थल मध्यप्रदेश की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाते हैं और स्थानीय स्तर पर पर्यटन और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हैं। https://t.me/mppsctlc
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हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए? (MPPSC PYQ 2019)
हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताओं में से एक थी और इसकी आर्थिक स्थिति उन्नत एवं समृद्ध थी। हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक स्थिति के कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं: 1. कृषि: - हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। वे गेहूँ, जौ, मटर, तिल, कपास और तिलहन जैसी फसलों की खेती करते थे। - सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों का उपयोग किया जाता था, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती थी। 2. व्यापार: - हड़प्पा सभ्यता के लोग व्यापार में अत्यधिक निपुण थे। उन्होंने आंतरिक और बाहरी व्यापार दोनों का विकास किया। - समुद्री और स्थल मार्गों के माध्यम से वे मेसोपोटामिया, फारस, अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार करते थे। - व्यापार के प्रमुख वस्त्रों में तांबा, कांसा, टिन, कीमती पत्थर, सीप, शंख और विभिन्न प्रकार के आभूषण शामिल थे। 3. कुटीर उद्योग: - हड़प्पा के लोग विभिन्न कुटीर उद्योगों में भी संलग्न थे। इनमें बुनाई, कुम्हारकला, मूर्तिकला, धातुकला और मनके निर्माण प्रमुख थे। - कपास की बुनाई और कपड़ा उत्पादन में हड़प्पा वासी विशेष कुशल थे। 4. धातुकला: - हड़प्पा सभ्यता के लोग धातुकला में प्रवीण थे। तांबा, कांसा, सोना और चाँदी जैसी धातुओं का उपयोग विभिन्न औजार, हथियार और आभूषण बनाने में होता था। - धातुओं के मिश्र धातु (alloy) बनाने की तकनीक भी विकसित थी, जैसे कि कांसा। 5. शहरीकरण और निर्माण कार्य: - हड़प्पा सभ्यता के शहरों का सुनियोजित निर्माण उनके आर्थिक समृद्धि का प्रमाण है। इसमें पक्की ईंटों से बने घर, स्नानागार, जल निकासी प्रणाली और विशाल गोदाम शामिल थे। - मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे शहरों में ग्रैनरी (अन्न भंडार) का होना, कृषि उत्पादन के अधिशेष और आर्थिक संपन्नता का संकेत है। 6. वस्त्र विनिमय प्रणाली: - हड़प्पा सभ्यता में मुद्रा का प्रचलन नहीं था, इसलिए वस्त्र विनिमय प्रणाली का उपयोग किया जाता था। विभिन्न वस्त्रों का आदान-प्रदान आर्थिक लेन-देन का मुख्य तरीका था। 7. कृषि उपकरण और तकनीक: - हड़प्पा वासियों ने कृषि के लिए उन्नत उपकरणों का विकास किया था, जिसमें हल और सिंचाई के साधन शामिल थे। इससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई थी। हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक स्थिति उनके व्यापारिक संबंधों, कृषि उत्पादन और कुटीर उद्योगों की प्रगति के आधार पर अत्यंत समृद्ध और उन्नत थी। यह सभ्यता उस समय की सबसे उन्नत और संगठित आर्थिक व्यवस्थाओं में से एक थी। #pyq_yuvaan_institute @mppscsynopsis
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राजपूत कालीन सामाजिक संरचना की विवेचना कीजिए? (MPPSC PYQ 2018)
राजपूत कालीन सामाजिक संरचना विशेष रूप से सामंती व्यवस्था पर आधारित थी। यह काल भारतीय इतिहास में लगभग 7वीं से 12वीं शताब्दी तक का समय है। इस काल में सामाजिक व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ थीं: 1. सामंतवाद (Feudalism): - राजपूत कालीन समाज सामंती व्यवस्था पर आधारित था, जहाँ राजा सर्वोच्च होता था और उसके नीचे विभिन्न सामंत होते थे। ये सामंत राजाओं के अधीनस्थ होते थे और उन्हें सैन्य सेवाएं प्रदान करते थे। 2. जाति व्यवस्था: - समाज में जाति व्यवस्था का गहरा प्रभाव था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार प्रमुख वर्ण थे, जिनके आधार पर सामाजिक एवं आर्थिक भूमिकाएँ निर्धारित होती थीं। 3. क्षत्रिय (राजपूत) वर्ग: - क्षत्रिय वर्ग, विशेषकर राजपूत, योद्धा और शासक के रूप में प्रमुख भूमिका निभाता था। वे सामरिक शक्ति, वीरता और सम्मान के प्रतीक माने जाते थे। 4. ब्राह्मण वर्ग: - ब्राह्मण वर्ग को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। वे धार्मिक अनुष्ठान, शिक्षा और संस्कारों के प्रमुख संरक्षक थे। राजा और अन्य सामंत ब्राह्मणों को दान देते थे और उनकी सलाह पर चलते थे। 5. वैश्य और शूद्र वर्ग: - वैश्य वर्ग व्यापार और कृषि में संलग्न था, जबकि शूद्र वर्ग समाज के निम्नतम श्रेणी का प्रतिनिधित्व करता था और विभिन्न प्रकार के श्रम कार्यों में संलग्न रहता था। 6. महिला स्थिति: - इस काल में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत निम्न थी। उन्हें पुरुषों के अधीन समझा जाता था और उनके पास स्वतंत्र अधिकारों की कमी थी। सती प्रथा जैसी कुप्रथाएँ भी प्रचलित थीं। 7. धार्मिक प्रभाव: - समाज में हिंदू धर्म का प्रभाव व्यापक था। मंदिरों का निर्माण, धार्मिक अनुष्ठान और त्योहारों का आयोजन महत्वपूर्ण सामाजिक गतिविधियाँ थीं। इस काल में भक्ति आंदोलन भी प्रारंभ हुआ जिसने समाज पर गहरा प्रभाव डाला। 8. सांस्कृतिक जीवन: - राजपूत कालीन समाज में कला, संगीत और साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान था। मंदिर वास्तुकला, मूर्तिकला और राजपूत चित्रकला में उच्च स्तर की कला देखने को मिलती है। राजपूत कालीन सामाजिक संरचना ने भारतीय इतिहास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला, जो आज भी विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। #pyq_yuvaan_institute @mppscsynopsis
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सांस्कृतिक उपलब्धियां के आधार पर गुप्त काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहना कहां तक उचित होगा? (MPPSC PYQ 2017)
गुप्त काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहना कई सांस्कृतिक उपलब्धियों के आधार पर उचित है। इस अवधि में कला, साहित्य, विज्ञान, और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो इस युग को स्वर्ण युग के रूप में परिभाषित करते हैं: 1. कला और स्थापत्य: - गुप्त काल में मूर्तिकला और चित्रकला में उत्कृष्टता प्राप्त की गई। - अजंता और एलोरा की गुफाओं में बनीं चित्रकृतियाँ और मूर्तियाँ इस युग की कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। - मंदिर निर्माण कला का भी इस काल में विकास हुआ, जिसमें प्रमुख उदाहरण महाबलीपुरम और देवगढ़ का दशावतार मंदिर हैं। 2. साहित्य: - गुप्त काल में संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। - कालिदास, विशाखदत्त, और भास जैसे महान साहित्यकार इस काल में हुए। - कालिदास के 'शाकुंतलम्' और 'मेघदूत' जैसी कृतियाँ आज भी विश्व साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। 3. विज्ञान और गणित: - आर्यभट और वराहमिहिर जैसे महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ इस काल में हुए। - आर्यभट ने 'आर्यभटीय' नामक ग्रंथ लिखा जिसमें खगोलशास्त्र और गणित के महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल हैं। - गुप्त काल में दशमलव प्रणाली का विकास हुआ और शून्य का उपयोग गणना में किया जाने लगा। 4. शिक्षा: - इस काल में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई, जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने आते थे। - शिक्षा के क्षेत्र में भी गुप्त काल ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 5. धर्म और दर्शन: - बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच समन्वय और सहअस्तित्व देखा गया। - इस काल में वैष्णव, शैव, और शाक्त संप्रदायों का भी विकास हुआ। 6. संगीत और नृत्य: - संगीत और नृत्य के क्षेत्र में भी इस काल में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। - भरतमुनि का 'नाट्यशास्त्र' इस युग की महत्वपूर्ण कृति है जो नाट्य और संगीत के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन करती है। इन सभी सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्त काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहना उचित है। इस काल में हुई प्रगति ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को एक नई दिशा दी और इसे उच्चतम शिखर पर पहुंचाया। #Pyq_yuvaan_institute @mppscsynopsis
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