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Maths By Sunil Sir

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क्रय मूल्य की परिभाषा :- जो वस्तु जिस मूल्य पर खरीदी जाती हैं उस मूल्य को उस वस्तु का लागत मूल्य या क्रय मूल्य कहते हैं। विक्रय मूल्य की परिभाषा :- जिस मूल्य पर कोई वस्तु बेची जाए उस वस्तु को विक्रय मूल्य कहाँ जाता हैं। लाभ की परिभाषा कोई भी वस्तु जिस मूल्य पर बेची जाती हैं उस मूल्य को उस वस्तु का विक्रय मूल्य कहते हैं। लाभ के सूत्र लाभ = विक्रय मूल्य – क्रय मूल्य विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य + लाभ क्रय मूल्य = मूल्य विक्रय – लाभ प्रतिशत लाभ = लाभ/क्रय मूल्य × 100 हानि की परिभाषा यदि किसी वस्तु का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से कम हो तो उनके अंतर से प्राप्त धनराशि को हानि कहते हैं। हानि के सूत्र हानि = क्रय मूल्य – विक्रय मूल्य या विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य – हानि या क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य + हानि प्रतिशत हानि = हानि/क्रय मूल्य × 100 उपरिव्यय की परिभाषा :- खरीदी हुई वस्तु को बिक्री केंद्र तक लाने तथा उसके रख-रखाव में किए गए खर्च को उपरिव्यय कहते हैं। लागत मूल्य की परिभाषा :- क्रयमूल्य तथा उपरिव्यय के योगफल को लागत मूल्य कहा जाता हैं। Note :- लाभ या हानि हमेशा क्रय मूल्य पर होते हैं। बट्टा हमेशा अंकित मूल्य पर होता हैं। लाभ और हानि के सूत्र लाभ = विक्रय मूल्य – क्रय मूल्य हानि = क्रय मूल्य – विक्रय मूल्य विक्रय मूल्य = लाभ + क्रय मूल्य विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य – हानि क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य – लाभ क्रय मूल्य = हानि + विक्रय मूल्य लाभ% = लाभ/क्रय मूल्य × 100 लाभ = (लाभ %/100 + लाभ) × विक्रय मूल्य हानि% = हानि/क्रय मूल्य × 100 हानि = (हानि %/100 – हानि) × विक्रय मूल्य विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य (1 + लाभ/100) क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य / (1 + लाभ/100) विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य (1 – हानि/100) क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य/(1 – हानि/100) बट्टा = लिखित मूल्य – विक्रय मूल्य लिखित मूल्य = बट्टा + विक्रय मूल्य विक्रय मूल्य = लिखित मूल्य – बट्टा बट्टा % = (बट्टा/लिखित मूल्य) × 100 बट्टा = (बट्टा %/लिखित मूल्य) × 100 N वर्ष पश्चात जनसंख्या = वर्तमान जनसंख्या × (1 + दर/100) समय N वर्ष पूर्व जनसंख्या = वर्तमान जनसंख्या / (1 + दर/100 ) समय मिश्रधन = मूलधन + ब्याज सरल ब्याज = मूलधन × दर × समय/100 मूलधन =100 × ब्याज/दर × समय समय =100 × ब्याज/दर × मूलधन दर =100 × ब्याज/समय × मूलधन ब्याज = मिश्रधन – मूलधन चक्रवृद्धि मिश्रधन = मूलधन × (1 + दर/100) समय चक्रवृद्धि ब्याज = मूलधन × (1 + दर/100) समय – मूलधन Note :- ब्याज अर्धवार्षिक देय हो तो : दर = R/2, समय = T×2
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1. बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिकबर्टेंड रसेल के अनुसार – “गणित को एक ऐसे विषय के रूप मेंपरिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।” 2. हाॅग बेन के अनुसार – “गणित सभ्यता व संस्कृति का दर्पण है।” 3. नेपोलियन के अनुसार – “गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की सम्पन्नता से सम्बन्धित है।” 4. जे.डब्ल्यू.ए. यंग के अनुसार – “यदि विज्ञान का आधार स्तम्भ गणित हटा दिया जावें तो सम्पर्ण भौतिक सभ्यता निः सन्देह नष्ट हो जायेगी।” 5. लाॅक के अनुसार – “गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चों के मन या मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।” 6. रोजन बैंकन के अनुसार – “गणित की शिक्षा मुख्य रूप एवं कुंजी है।” 7. प्रोफेसर शूल्टने के अनुसार – “गणित की शिक्षा मुख्य रूप से मानसिक शक्तियों को विकसित करने के लिये दी जाती है। गणित के तथ्यों का ज्ञान देना इसके बाद ही आता है।” 8. आइन्सटाइन के अनुसार – “गणित क्या है? यह उसे मानव चिन्तन का प्रतिफल है जो अनुभवों से स्वतन्त्र है तथासत्य के अनुरूप है।” 9. वनार्डिशा के अनुसार -“तार्किक चिन्तन के लिये गणित एक शक्तिशालीसाधन है।” 10. मार्शल के अनुसार -“गणित ऐसी अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है जो कि अमूर्त तत्ववों से मिलकर बनी है इन तत्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया जाता है।” 11. गैलिलीयों के अनुसार -“गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत् या ब्रहाण्ड को लिखदिया है।” 12. वेदांग ज्योतिष के अनुसार- “जिस रूप में मयूरों के सिर, पर मुकुट शोभायान होते है तथा सर्पो के सिर पर मणियां वही सर्वोच्च स्थान वेदांग नाम से परिचित विज्ञानों में गणित का है।” 13. लिण्डपें के अनुसार -“गणित भौतिकविज्ञान की भाषा है ओर निश्चय की मानव मस्तिष्क होते है सर्पो अन्यकोई भाषा नही है।”
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