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Helping others often brings several personal and societal benefits. Here are a few reasons why you might help:
1. Altruism: You may feel a natural desire to help others without expecting anything in return.
2. Empathy: Seeing others in need can evoke feelings of empathy, driving you to offer assistance.
3. Social Connection: Helping others can strengthen relationships and build a sense of community.
4. Personal Satisfaction: Acts of kindness often lead to a sense of fulfillment and happiness.
5. Reciprocity: Helping others can create a network of mutual support, where people are more likely to help you in return.
6. Moral or Ethical Beliefs: Your personal or cultural values may emphasize the importance of helping others.
7. Improving Society: By helping others, you contribute to creating a better, more supportive community or society.
These motivations can vary from person to person and situation to situation.
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_* अपने दुःख अप्रकट रखें *_
दुःख महापुरुषों ने तो उपदेश किया है कि
"रहिमन निज मन की व्यथा,
मन ही राखो गोय "
अर्थात अपने मन की व्यथा को मन में ही छुपा कर रखें क्योंकि उसका समाधान केवल आपसे ही निकलेगा। आप दुनिया को रो-रोकर अपना दुखड़ा सुनायेंगे लेकिन वही लोग हँस-हँसकर सबके सामने उसका बखान करेंगे। प्रभु पर विश्वास करें और धैर्य रखें सूर्यास्त हुआ है तो शीघ्र ही सूर्योदय भी अवश्य होगा। *🙏🙏
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एक बार 94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने के कारण उसे मकान से निकाल दिया। बूढ़े व्यक्ति के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई और सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी और उनके कहने पर मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए उस बूढ़े आदमी को कुछ दिनों की मोहलत देने के लिए मना लिया।
वह बूढ़ा आदमी अपना सामान अंदर ले गया। रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया,
”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है?
पत्रकार ने कहा, नहीं।
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था,
”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”।
खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पाने के कारण कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया।
टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं??
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को भी अस्वीकार कर दिया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। अतः वो इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।
अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार कोई और नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा जी हैं जो दो दो बार भारत के पूर्व प्रधान मंत्री रह चुके हैं।
मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा जी के चरणों में झुक गया। अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
और अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
पिछले 04 जुलाई को उनकी 26 वीं पुण्यतिथि थी,
पर शायद किसी व्यक्ति को स्मरण रहा हो।
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छोटी कहानी : सीख बड़ी
#पिज्जा_के_आठ_टुकड़े : आठ साल पहले लिखी गयी एक सशक्त लघुकथा
एक दिन मेरी पत्नी ने मुझसे कहा ," आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना"
" ऐसा क्यों?? "
" अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी।"
" वो क्यों??"
"वह बोल रही थी कि गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है।"
" ठीक है मैं अधिक कपड़े नहीं निकालूंग।" मैंने पत्नी को आश्वस्त किया।
पत्नी ने मुझसे पूछा , " और हाँ!!! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस.."
मैंने कहा कि क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगें न ?
" अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, कुछ अतिरिक्त पैसे साथ में होंगे तो उसे भी अच्छा लगेगा। इस महँगाई के दौर में अपनी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी?"
मैंने उसे समझाने की कोशिश की, "तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो…"
"अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…"
मैंंने कहा ,"वाह, क्या कहने!! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में??"
तीन दिन बाद पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से मैंने पूछा ," क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी?"
" बहुत बढ़िया रही साहब।दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना त्यौहार का बोनस इसलिए सब कुछ बहुत ही अच्छे से हो गया।"
"-तो जाकर हो आयी बेटी के यहाँ से ? मिल ली अपने नाती से…?
"हाँ साब… मिल लिया, बहुत मजा आया। मैंने दो दिन में ही 500 रूपए खर्च कर दिए।"
"अच्छा!! मतलब क्या किया 500 रूपए का??"
" नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी के लिए 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया बहुत अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए।" झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर रटा हुआ था
सुनकर मैं अवाक रह गया और सोचने लगा केवल 500 रूपए में कितना कुछ कर लिया इसने ??? मेरी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा। एक-एक टुकड़ा मेरे दिमाग में हथौड़ा मारने लगा। मैं अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा।
मेरा भी हिसाब बिलकुल दुरूस्त था। पिज्जे का पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवां टुकड़ा बेटी की चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का।
मैंने आज तक हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, कभी उसे पलटकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है? लेकिन आज कामवाली बाई ने मुझे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दिया था।पिज्जा के आठ टुकड़े मुझे जीवन का अर्थ समझा गए थे “जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में मुझे समझ में आ गया।🙏
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यदि कोई हमारे साथ सही व्यवहार नहीं कर रहा है तो
उनके पास कई कारण हो सकते हैं जैसे वे हमारे पिछले व्यवहार पर हर्ट, गुस्सा, किसी समस्या का सामना कर रहे हैं या परेशान हैं,उनके घर में लड़ाई चल रही हो ,तबीयत ठीक नहीं है आदि।
वे हमें परेशान करने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं ... वे खुद परेशान हैं।
याद रखें: परेशान व्यक्ति ही दूसरो को परेशान करते है ।
उन पर दया करे वो उस समय बीमार है।
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तरसे जो बरसो एक गुलाब की खातिर
कब्रो पर उनकी गुल्दस्ते हजार मिले...
जीते जी एक यार मिला नही...
सांसे थमी तो पूरे शहर मे दिलदार मिले
थोड़ा डुबूंगा...
मगर मैं फिर तैर आऊंगा
ऐ ज़िंदगी, तू देख...
मैं फिर जीत जाऊंगा
Boshqa reja tanlang
Joriy rejangiz faqat 5 ta kanal uchun analitika imkoniyatini beradi. Ko'proq olish uchun, iltimos, boshqa reja tanlang.