꧁𝐅𝐔𝐓𝐔𝐑𝐄 𝐎𝐅𝐅𝐈𝐂𝐄𝐑𝐒 𝐆𝐑𝐎𝐔𝐏꧂
कोई हम सा मिले तो बताना , हम खुद आएंगे उसे सलाम करने... - Paarth Shridhar @Paarth6266
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💥💐बिहार दारोगा के कल जारी किये गये परिणाम में बिहार की मानवी मधु कश्यप देश की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बनीं है.
#bihar
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*ईरान के राष्ट्रपति - मसूद पेजेशकियन*
✅ईरान के सुधारवादी और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मसूद पेजेशकियन ने दूसरे दौर में अपने प्रतिद्वंद्वी कट्टरपंथी इस्लामवादी विचारक सईद जलीली को हराकर राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की।
✅69 वर्षीय हृदय शल्य चिकित्सक पेज़ेशकियन ने अति रूढ़िवादी सईद जलीली के खिलाफ़ दूसरे दौर के चुनाव में लगभग 53.6 प्रतिशत वोट जीते।
✅69 वर्षीय हृदय शल्य चिकित्सक पेजेशकियन ने "ईरान को उसके अलगाव से बाहर निकालने" के लिए परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए पश्चिमी देशों के साथ "रचनात्मक संबंधों" का आह्वान किया है।
✅पहले दौर के ईरान में 28 जून को मतदान हुआ था, जिसमें पेजेशकियन को कुल मतों का 42.6 प्रतिशत वोट मिला था, जबकि जलीली को 38.8 प्रतिशत वोट मिले थे।
✅ईरान के राष्ट्रपति चुनाव, जो शुरू में 2025 के लिए निर्धारित किए गए थे, को इस साल 19 मई को हेलीकॉप्टर दुर्घटना में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की अप्रत्याशित मृत्यु के बाद पुनर्निर्धारित किया गया था।
*_PM मोदी को रूस का सर्वोच्च सम्मान… पुतिन ने अपने हाथों से पहनाया ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल’_*
नई दिल्ली। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल' से सम्मानित किया।रूस का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार मिलने पर प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि मैं आपका (राष्ट्रपति पुतिन) हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। यह सम्मान मेरा नहीं है, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों का सम्मान है। यह भारत और रूस के बीच सदियों पुरानी गहरी मित्रता और आपसी विश्वास का सम्मान है।
उन्होंने कहा, 'यह हमारी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त राजनीतिक साझेदारी का सम्मान है। पिछले 2.5 दशक में आपके नेतृत्व में भारत-रूस संबंध सभी दिशाओं में मजबूत हुए हैं।'पीएम मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों की जो नींव रखी गई थी, वह समय बीतने के साथ और मजबूत हुई है। हमारा आपसी सहयोगी लोगों के बेहतर भविष्य की आशा और गारंटी बना रहा है।
दोनों देशों के संबंध महत्वपूर्ण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत और रूस के संबंध पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। आज के वैश्विक माहौल के संदर्भ में दोनों देशों की साझेदारी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा, वैश्विक स्थिरता और शांति के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए। आने वाले समय में इस दिशा में हम मिलकर काम करते रहेंगे।
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*_🛕🚩मध्यप्रदेश का धार्मिक मुख्यालय उज्जैन होगा_*
_📌 सिंहस्थ से पहले मोहन सरकार का बड़ा फैसला। अब भोपाल से संचालित नहीं होगा धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग।धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग का मुख्यालय भोपाल से उज्जैन होगा शिफ़्ट। उज्जैन में स्थित सिंहस्थ मेला प्राधिकरण उज्जैन के भवन में संचालित किया जाएगा अब धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना संचालक भी उज्जैन में स्थानांतरित। वर्तमान में धार्मिक न्यास विभाग संचालनालय सतपुड़ा भवन से हो रहा था संचालित। मुख्यालय के संचालक सहित पूरा स्टाफ़ उज्जैन में बैठेगा। धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग ने प्रकाशित की अधिसूचना!_
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वैशाली कहने को तो गणतंत्र था लेकिन उसमे भी चुनाव का अधिकार सिर्फ लिच्छवियों को था। अन्य सभी लोग इस अधिकार से वंचित थे। लेखक ने कहानी के पात्रों के माध्यम से दिखाना चाहा है कि गणतंत्र की हालत एक सामान्य राज्य से अधिक भिन्न नहीं थी। वहां भी राजधानी के किलों से बाहर की जनता पीड़ित और असहाय थी। ऐसा सोचा जा सकता है कि गणतंत्र में राजाओं की जगह चुने हुए गणपतियों ने ले ली थी। दास-दासियों का क्रय-विक्रय धनी और सामर्थ्यवान लोगों के लिए सामान्य बात थी।
उपन्यास में 500 ईसा पूर्व के काल, जिसे उत्तर वैदिक काल के बाद का महाजनपद काल भी कहा जाता है, की जीवन शैली का चित्रण किया है। दिखाया गया है कि आर्य जो कि मूलतः कृषक और पशुपालक थे, किस प्रकार राजकाज में उच्चपदों पर आरूढ़ हो रहे थे। व्यापार मार्गों की सुरक्षा किसी भी राज्य के सुचारू रूप से चलने में उतनी ही महत्वपूर्ण थी जितनी कि आज है। व्यापारी तरह-तरह की वस्तुएं बेंचने के लिए हजारो कोस की यात्रा करके आते थे। राजा लोग अपना साम्राज्य बढ़ने के लिए राजसूय यज्ञ करते थे। ब्राह्मणों और पंडितों का समाज में सम्मान और भय दोनों ही था। इस उपन्यास में मूलतया श्रोत्रीय ब्राह्मणों का ज़िक्र किया गया है। राजकुमारों में राजा से राज्य हथियाने की इच्छा रहा करती थी जैसा कि श्रावस्ती में देखा गया था। इस पुस्तक में उस समय के युद्धों का सजीव चित्रण हुआ है और प्रचलित हथियारों जैसे खड्ग, तीर इत्यादि का प्रयोग करते हुए रणनीतियाँ बनाई गई हैं।
इस उपन्यास में पौराणिक कथाओं और धार्मिक घटनाओं का वर्णन ऐसे हुआ है जैसे वह ऐतिहासिक घटनाएं हों। महाभारत का उल्लेख दो पात्रों के संवाद के बीच आता है और उसमें उसे पहले की हुई घटना के रूप में दिखाया गया है। जरासंध का मगध साम्राज्य के पूर्व राजा के रूप में चित्रण है। कहानी के बीच बीच में देवासुर संग्राम का ज़िक्र आता है जिसमें कई बुद्धिमान और निपुण मनुष्यों ने देवों की ओर से असुरों के विरुद्ध भाग लिया था। इन सब घटनाओं के माध्यम से लेखक ने इस धारणा को बलवती करने का प्रयास किया है कि आज के धार्मिक प्रसंग कभी ऐतिहासिक घटनाएं हुआ करतीं थी, जिन्हें सदियों के अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन ने धार्मिक घटनाओं के रूप में स्थापित कर दिया। ऐसे ही कुछ विचार पुरातत्वविद प्रोफेसर बी. बी. लाल के भी थे जिन्होंने ऐसा ही कुछ महाभारत के सन्दर्भ में कहा था।
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किया। इससे गर्विणी अंबपाली ने उन राजपुत्रों को लज्जित करते हुए अपने रथ को उनके रथ के बराबर हाँका। उसने संघ को आमों का अपना बगीचा भी दान कर दिया था जिससे वह अपना चौमासा वहाँ बिता सके।
इसमें संदेह नहीं कि अंबपाली ऐतिहासिक व्यक्ति थी, यद्यपि कथा के चमत्कारों ने उसे असाधारण बना दिया है। संभवत वह अभिजात कुलीना थी और इतनी सुंदर थी कि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके पिता को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा। संभवत उसने गणिका जीवन भी बिताया था और उसके कृपापात्रों में शायद मगध का राजा बिंबिसार भी था। बिंबिसार का उससे एक पुत्र होना भी बताया जाता है। जो भी हो, बाद में बुद्ध के उपदेश से प्रभवित हो आम्रपाली ने बुद्ध और उनके संघ की अनन्य उपासिका हो गई थी और उसने अपने पाप के जीवन से मुख मोड़कर अर्हत् का जीवन बिताना स्वीकार किया।
आम्रपाली को नायिका के रूप में प्रस्तुत कर आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने एक उपन्यास की रचना की! इस उपन्यास के विवरण के आधार पर आम्रपाली के जीवन का चित्रण किया गया है! #वैशाली #की #नगरवधू आचार्य चतुरसेन शास्त्री (1891-1960 ई.) की सर्वश्रेष्ठ औपन्यासिक रचना है। यह उपन्यास दो भागों में हैं, जिसके प्रथम संस्करण दिल्ली से क्रमश: 1948 तथा 1949 ई. में प्रकाशित हुए। इस उपन्यास का कथात्मक परिवेश ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक है। इसकी कहानी बौद्ध काल से सम्बद्ध है और इसमें तत्कालीन लिच्छिवि संघ की राजधानी वैशाली की पुरावधू 'आम्रपाली' को प्रधान चरित्र के रूप में अवतरित करते हुए उस युग के हास-विलासपूर्ण सांस्कृतिक वातावरण को अंकित करने हुए चेष्टा की गयी है।
उपन्यास का कथानक हर्यक वंश के राजा बिम्बसार के समय मगध राज्य और वज्जि गणतंत्र की राजधानी वैशाली के इर्दगिर्द घूमता है। बीच बीच में उस समय के अन्य महाजनपद जैसे कौशाम्बी, श्रावस्ती, विदेह, अंग, कलिंग, गांधार आदि का भी उल्लेख होता रहता है। वैशाली की नगरवधू आम्रपाली को वज्जि गणतंत्र द्वारा जनपदकल्याणी घोषित कर दिया गया है। वैशाली में उस समय यह कानून था कि गणतंत्र की जो सबसे सुन्दर बालिका होगी उस पर पूरे गणतंत्र का समान अधिकार होगा, वह किसी एक व्यक्ति की होकर नहीं रह सकती है। इस कानून को आम्रपाली ने धिक्कृत कानून कहा था। कथानक भगवान बुद्ध और महावीर जैन की तरफ भी जाता है और उन्होंने जो समाजोत्थान के लिए कार्य किया था उसका भी वर्णन है। इतिहास पढ़ने वाले लोग जानते होंगे कि मगध सम्राट बिम्बसार आम्रपाली पर आसक्त होकर वैशाली पर आधिपत्य करना चाहता था और जिसके लिए उसने वैशाली पर आक्रमण किया था।
इस उपन्यास में उस समय के नए धार्मिक आंदोलनों का जनमानस पर असर दिखाया गया है। यद्यपि उस समय बुद्ध और महावीर के विचारों को अत्यंत प्रशंसा मिली थी और उन्हें उस समय अलग धर्म के रूप में नहीं देखा गया था और न ही इतना विरोध हुआ था जैसा कि आज के समय में एक धर्म में दूसरे धर्म के प्रति देखा जाता है। राजाओं के द्वारा तब इन नए धर्मों को संरक्षण भी मिला था जो कि बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक के समय में और ज्यादा बढ़ गया था जिससे बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायियों की संख्या बढ़ गयी थी। भगवान बुद्ध की विचारधारा को उस समय के समाज ने अपनाया था क्योंकि उन्होंने जो कहा था वह हर एक मनुष्य के लिए संभव था और उसके लिए महंगे अनुष्ठानों की आवश्यकता भी नहीं थी। आर्यों की धार्मिक प्रगति को भी लेखक ने दर्शाया है कि किस प्रकार उस समय के श्रोत्रीय ब्राह्मणों ने चौथे वेद अथर्ववेद की रचना की थी और उसमें जो नए नियम प्रतिपादित किये गए उनकी संकल्पना कैसे की गई थी और उस पर वाद-विवाद से क्या निष्कर्ष निकला था। याज्ञवल्क्य जैसे विचारकों के नए विचारों से समाज में क्या हलचल हुई थी यह भी दिखाया गया है।
लेखक ने उस समय के जातीय संघर्ष को भी दिखाया गया है। सही मायने में उसे संघर्ष तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि निचले वर्णक्रम के लोगों के पास कोई अधिकार और कोई शक्ति-संसाधन तो थे नहीं संघर्ष करने के लिए। उपन्यास में दिखाया गया है कि भोग-विलास का जीवन जीने के लिए किस प्रकार विवाह के नियम बनाये गए थे और किस प्रकार शूद्रों आदि को राजप्रासादों से दूर रखा गया था। उपन्यास में इसके लिए आर्यों को उत्तरदायी ठहराया गया है। वर्णसंकर अथवा मिश्रित जातियों के लोगों तथा साम्राज्यों को हेयदृष्टि से देखा जाता था। बुद्ध और महावीर ने समाज में इसके विरुद्ध उपदेश दिया तथा उनके समागमों में सब लोग बराबर थे, इसके कारण से समाज में उनकी स्वीकार्यता भी बढ़ी।
राजाओं की सत्ता लोलुपता कितने पहले से है इसका अंदाज़ा उपन्यास पढ़कर ही लगता है। किसानों को अपनी उपज का एक बड़ा भाग राजाओं को देना पड़ता था। राजमहालय हर एक भौतिक सुख-सुविधा से संपन्न थे। गंगा नदी में बाढ़ के समय जनता की सहायता का बीड़ा भी एक बूढ़े संत ने उठाया था। मगध राज्य और वज्जि गणतंत्र बेफिक्र थे। यद्यपि
#आम्रपाली : #प्राचीन #भारत #की #ऐतिहासिक #नायिका
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आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी। इनका एक नाम 'अम्बपाली' या 'अम्बपालिका' भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था। अजातशत्रु उसके प्रेमियों में था और उस समय के उपलब्ध सहित्य में अजातशत्रु के पिता बिंबसार को भी गुप्त रूप से उसका प्रणयार्थी बताया गया है। आम्रपाली को लेकर भारतीय भाषाओं में बहुत से काव्य, नाटक और उपन्यास लिखे गए हैं।
#आम्रपाली
जन्म:- *600-500 BCE, वैशाली*
मृत्यु:- वैशाली, व्यवसाय:- नृत्यांगना
प्रसिद्धि कारण:- #नगरवधू (राजनृत्यांगना) of the Republic of वैशाली
नगरवधू का अर्थ होता है संपूर्ण नगरवासियों की पत्नी की तरह। नगर के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा चुनी गई वह सुन्दर स्त्री जो नृत्य- गान द्वारा लोगों को आनन्दित करती थी। इसका मुख्य काम राजाओं, मंत्रियों और बड़े लोगों को खुश रखना होता था। हालांकि नगरवधू बनने के बाद ही किसी महिला को यह पता चलता था किस यह काम कितना मुश्किल और खतरे भरा है। यह खतरा ही उसे साहसी और राजनतिज्ञ बनाता था। उक्त काल में राज नर्तकी, नगरवधू, गणिका, रूपाजीवा, देवदासी हुआ करती थी। सभी के कार्य अलग-अलग हुआ करते थे।
मान्यता है कि प्राचीन काल में नगर की सभी सुन्दर महिलाओं को एक प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा जाता था, जो महिला इस प्रतियोगिता में विजयी होती थी, उसे नगरवधू का पद दिया जाता था। इसके बाद उसे फूलों से भरा बहुत बड़ा बगीचा और सभी तरह की सुविधाओं से युक्त महल मिलता था।
अंबपाली बुद्ध के प्रभाव से उनकी शिष्या हुई और उसने अनेक प्रकार के दान से बौद्ध संघ का महत् उपकार किया। उस युग में राजनर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे "आर्या अंबा" कहकर संबोधित किया था तथा उसका आतिथ्य ग्रहण किया था। धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से मना कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर उसे उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया।
#प्रारंभिक #जीवन
आम्रपाली को इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला कहा जाता है. आम्रपाली की खूबसूरती की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती है. लेकिन आम्रपाली की खूबसूरती ही उसके दुर्भाग्य की सबसे बड़ी वजह बनी. आम्रपाली को बहुत ही कम उम्र में राज्य के आदेश से 'वेश्या' बनना पड़ा. वह शायद इतिहास की इकलौती ऐसी महिला थी जिसे ऐसी बदनसीबी झेलनी पड़ी. एक खूबसूरत लड़की से नगरवधु बनने और उसके बाद भिक्षुणी बन जाने की यात्रा में उस युग के कई प्रसिद्ध लोगों के नाम आते हैं.
प्राचीन भारत में 500 ईसा पूर्व लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली में एक गरीब दंपती को एक आम के पेड़ के नीचे एक लड़की पड़ी मिली थी. आम्रपाली के माता-पिता का नाम ज्ञात नहीं है. वह आम के पड़े के नीचे पड़ी मिली थी इसलिए उसका आम्रपाली रख दिया गया.
आम्रपाली अपने समय की सबसे खूबसूरत महिला थी. पाली ग्रन्थों में उसके सौंदर्य का विवरण मिलता है. आम्रपाली इतनी खूबसूरत थी कि नगर का हर पुरुष उससे विवाह करने के लिए लालायित था. पाली ग्रन्थों के मुताबिक, राजा से लेकर व्यापारी हर कोई आम्रपाली को पाना चाहता था. आम्रपाली के लिए शादी के प्रस्तावों के ढेर लग गए. इतने सारे विवाह प्रस्तावों की वजह से आम्रपाली के माता-पिता बड़ी दुविधा में फंस गए थे.
अगर आम्रपाली के लिए किसी एक को उसके माता-पिता चुनते तो नगर के बाकी पुरुष खफा हो जाते. नगर में अशांति तक फैल सकती थी.
पाली ग्रन्थों के मुताबिक, वैशाली एक लोकतांत्रिक राज्य था जिसकी अपनी एक संसद भी थी. जब आम्रपाली की खबर वैशाली संसद के सदस्यों तक पहुंची तो उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा करने का फैसला किया. उन्होंने तय किया कि वैशाली राज्य की एकता और शांति के लिए सभी की खुशी को जरूरी है इसलिए आम्रपाली को नगरवधू बना दिया गया. आम्रपाली पूरे नगर की दुल्हन समान बन गई जिसे अब हर किसी से प्यार था!
#परिचय
भगवान बुद्ध राजगृह जाते या लौटते समय वैशाली में रुकते थे जहाँ एक बार उन्होंने अंबपाली का भी आतिथ्य ग्रहण किया था। बौद्ध ग्रंथों में बुद्ध के जीवनचरित पर प्रकाश डालने वाली घटनाओं का जो वर्णन मिलता है उन्हीं में से अंबपाली के संबंध की एक प्रसिद्ध और रूचिकर घटना है। कहते हैं, जब तथागत एक बार वैशाली में ठहरे थे तब जहाँ उन्होंने देवताओं की तरह दीप्यमान लिच्छवि राजपुत्रों की भोजन के लिए प्रार्थना अस्वीकार कर दी, वहीं उन्होंने गणिका अंबपाली की निष्ठा से प्रसन्न होकर उसका आतिथ्य स्वीकार
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