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UPSC GS & ECONOMICS™©

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🖊इस प्रकार दोनो वर्गों में संघर्ष होता है। केन्द्रीय नियोजन का अभाव (Absence of Central Planning)- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था है, अत: इसमें केन्द्रीय नियोजन का अभाव रहता है। 🖊दूसरे शब्दों में, पूँजीवादी प्रणाली की विभिन्न आर्थिक इकाइयाँ किसी केन्द्रीय योजना से निर्देशित समन्वित अथवा नियंत्रित नहीं होती हैं। 🖊इसमें समस्त कार्य स्वतंत्रतापूर्वक मूल्य-यंत्र की सहायता द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं। यह एक स्वत:शासित अर्थव्यवस्था है। 🖊सरकार की सीमित भूमिका (Limited Role of Government)- केन्द्रीय नियोजन के अभाव से यह तात्पर्य नहीं है कि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार की बिल्कुल भूमिका नहीं होती है। 🖊पूँजीवादी प्रणाली को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करने हेतु कहीं-कहीं सरकारी हस्तक्षेप की नितान्त आवश्यकता पड़ती है। 🖊उदाहरणार्थ-सम्पत्ति के अधिकारों को परिभाषित करना, समुदाय विशेष की आवश्यकताओं की संतुष्टि को सुनिश्चित करना, इत्यादि। इसके बावजूद सरकारी हस्तक्षेप अत्यन्त सीमित होता है। 🖊व्यवहार में विशुद्ध पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का कोई उदाहरण नहीं मिलता है। वर्तमान में पायी जाने वाली पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पर्याप्त मात्रा में सरकारी हस्तक्षेप होता है। 🖊संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्टे्रलिया, कनाडा, स्विटजरलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, स्वीडन, डेन्मार्क, बेल्जियम, इत्यादि ऐसे राष्ट्र हैं जहां आधुनिक पूँजीवाद अथवा मिश्रित प्रणाली पायी जाती है। 🖊अनियमित अथवा विशुद्ध पूँजीवाद में निम्नलिखित महत्वपूर्ण दोष हैं जिनकी वजह से पूँजीवाद का आधुनिक स्वरूप सामने आया है। 🖊विनियोग सदैव लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है। उच्च वर्ग हेतु उत्पादित वस्तुओं में लाभ का मार्जिन अधिक होता है। 🖊अत: उद्योगपति उन्हीं वस्तुओं का उत्पान करेंगे। इस प्रकार विशुद्ध पूँजीवाद में उत्पादन के संसाधनों का आवंटन सर्वश्रेष्ठ विधि से नहीं हो पाता है। 🖊स्वतंत्र प्रतियोगिता होने के कारण बड़ी फर्मों द्वारा एकाधिकार प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार एकाधिकार के समस्त दोष इसमें आ जाते हैं। 🖊सम्पत्ति रखने के अधिकार तथा व्यवसाय की स्वतंत्रता से आय तथा धन के केन्द्रीयकरण का संकट उत्पन्न हो जाता है तथा अमीरों तथा श्रमिकों के बीच की खाई और चौड़ी हो जाती है।
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🎁पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली 💎लूक्स एवं हूट- “पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें प्राकृतिक एवं मनुष्यगत पूँजी पर व्यक्तियों का निजी अधिकार होता है तथा इनका उपयोग वे अपने लाभ के लिए करते हैं।” 💎ए सी पीगू : ‘‘पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अथवा पूँजीवादी व्यवस्था वह है जिसमें उत्पत्ति के संसाधनों का मुख्य भाग पूँजीवादी उद्योगों में लगा होता है- एक पूँजीवादी उद्योग वह है जिसमें उत्पादन के भौतिक साधन निजी व्यक्ति के अधिकार में होते हैं अथवा वे उनको किराये के रूप में ले लेते हैं तथा उनका उपयोग उनकी आज्ञानुसार इस भाँति होता है कि उनकी सहायता से उत्पन्न वस्तुयें या सेवायें लाभ पर बेची जायें। 💎पूँजीवादी के दो प्रकार हो सकते हैं- 🖊प्राचीन, स्वतंत्र पूँजीवाद जिसमें सरकार का हस्तक्षेप नगण्य होता है अथवा अनुपस्थित रहता है, तथा 🖊नवीन नियमित या मिश्रित पूँजीवाद जिसमें सरकारी हस्तक्षेप पर्याप्त मात्रा में होता है। 💎पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली की महत्वपूर्ण विशेषताएं 🎁निजी स्वामित्व (Private ownership)- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्यके व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का स्वयं मालिक होता है। उसे उत्पादन के विभिन्न साधनों को अपने पास रखने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। प्रत्येक व्यक्ति सम्पत्ति रख सकता है, बेच सकता है या अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है। 🎁उपभोक्ता की प्रभुसत्ता (Consumers' Sovereignty)-पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। उत्पादक उपभोक्ता की माँग व रूचि के अनुसार उत्पादन करता है। उपभोक्ता की स्वतंत्रता में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है, इसीलिए बेन्हम ने पूँजीवाद अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता की तुलना राजा से की है। 🎁उत्तराधिकार (Inheritance)- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की एक महत्वपण्ूर् ा विशेषता इसमें उत्तराधिकार के अधिकार का पाया जाना है। इस अर्थव्यवस्था में पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति का स्वामी उसका पुत्र हो जाता है। पूँजीवाद को जीवित रखने हेतु उत्तराधिकार का अत्तिाकार बनाये रखना आवश्यक होता है। 🎁बचत एवं विनियोग की स्वतंत्रता (Freedom to save and invest)- उत्तराधिकार का अधिकार लोगों में बचत करने तथा पूँजी संचय को प्रोत्साहन देता है। अपने परिवार की सुख-सुविधा के लिए लोग बचत करते हैं तथा यही बचत पूँजी संचय में वृद्धि करती है। इस पूँजी को अपनी इच्छानुसार विनियोग करने की स्वतंत्रता होती है। 🎁मूल्य यंत्र (Price Mechanism)- मूल्य-यत्रं सम्पूर्ण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन करता है। इसकी सहायता से ही एक उत्पादक यह निध्र्थारित करता है कि किस वस्तु का कितना उत्पादन किया जाय। दूसरी ओर उपभोक्ता भी इस यंत्र को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लेता है कि किस वस्तु के कहाँ से और कितनी मात्रा में खरीदा जाय। 🎁प्रतियोगिता (Competition)- प्रतियोगिता पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषता है। जो उत्पादक अन्य उत्पादकों की तुलना में अद्धिाक कुशल, अनुभवी एवं शक्तिशाली होता है, वह प्रतियोगिता में सफल होता है। अकुशल उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक होती है। कुशल उत्पादकों द्वारा निर्मित वस्तुओं की लागत कम आती है। अत: वे सस्ते मूल्य पर उपभोक्ताओं को वस्तुएं उपलब्ध करा पाने में सफल रहते हैं जिससे उनकी मांग बढ़ती है। 🎁आर्थिक कार्य की स्वतंत्रता (Freedom of Economic Activities)- पूँजीवाद में प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है। वह अपनी इच्छानुसार उत्पादन प्रारम्भ एवं बंद कर सकता है। अपना लाभ बढ़ाने के लिए वह उत्पादन प्रणाली में भी परिवर्तन कर सकता है। 🎁साहसी की महत्वपूर्ण भूमिका (Important Role of Entrepreneur)- पूँजीवाद में साहसी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। साहसी द्वारा उत्पादन के साधनों को संगठित करके वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन को सम्भव बनाया जाता है। वह सदैव ऐसा निर्णय लेने की कोशिश करता है ताकि उसके लाभ में वृद्धि हो सके। 🎁व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता (Freedom of Choice of Occupation)- एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार व्यवसाय चुनने के लिए स्वतंत्र होता है। इस स्वतंत्रता से कर्मचारी अपने श्रम के लिए सौदेबाजी करने योग्य बनता है। 🎁आय की असमानता (Inequality of Income)- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सदैव आय की असमानता पायी जाती है। इस अर्थव्यवस्था में समाज दो वर्गों-पूँजीपति तथा श्रमिक में बँट जाता है जिनमें सदैव आपसी संघर्ष चलता रहता है। नियोक्ता अपने श्रमिकों को न्यूनतम भुगतान करके अपने लाभ को अधिकतम करना चाहते हैं। दूसरी ओर, श्रमिक अधिक से अधिक मजदूरी प्राप्त करने की चेष्टा करता है।
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🎁आर्थिक प्रणाली के प्रकार 😍स्वामित्व के आधार पर आर्थिक प्रणालियों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- 🐒पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली 🐒समाजवादी आर्थिक प्रणाली 🐒मिश्रित आर्थिक प्रणाली
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🎁आर्थिक प्रणाली के महत्वपूर्ण कार्य 🎉किसी भी राष्ट्र की आर्थिक प्रणाली द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय या कार्य के माध्यम से मानवीय एवं प्राकृतिक संसाधनों का राष्ट्रहित में प्रयोग किया जाता है। 🎉इनके द्वारा राष्ट्र की उत्पादन एवं उपभोग की क्रियाओं से सम्बन्धित निर्णय लिये जाते हैं- 😍कौन सी वस्तु उत्पादित की जाय तथा उत्पादन कितनी मात्रा में हो - 🎉किसी देश का सर्वप्रथम कार्य इस बात का निर्धारण करना है कि कौन सी वस्तु का उत्पादन किया जाय ताकि समाज में व्यक्तियों की आवश्यकताएँ पूरी हो सकें, अर्थात प्रत्येक अर्थव्यवस्था को उत्पादन की संरचना का निर्धारण करना पड़ता है। 🎉जिन वस्तुओं के उत्पादन का निर्णय लिया जाता है, उसके अनुसार ही अर्थव्यवस्था में सीमित साधनों का वितरण करना होता है, तत्पश्चात् यह निश्चित करना होता है कि उपभोक्ता या पूँजीगत वस्तुओं की कितनी मात्राओं का उत्पादन किया जाय, ताकि माँग एवं पूर्ति में उचित सामंजस्य बना रहे। 😍वस्तु का उत्पादन कैसे किया जाय - 🎉आर्थिक प्रणाली का दूसरा प्रमुख कार्य है कि, “निर्धारित वस्तुओं का उत्पादन कैसे किया जाय? अर्थात् किन विधियों द्वारा उत्पादन किया जाय? 🎉दूसरे शब्दों में, उत्पादन का संगठन कैसे किया जाय? इस कार्य से अभिप्राय है कि विभिन्न उद्योगों में किन फर्मों को उत्पादन करना है तथा वे आवश्यक साधनों को कैसे प्राप्त करेंगी। 🎉उत्पादन के लिए सर्वोत्तम तकनीक कौन सी है? आदि का निर्धारण किया जाता है।” 😍वस्तुओं का वितरण कैसे किया जाय - 🎉उत्पादन प्राप्त कर लेने के पश्चात यह प्रश्न उठता है कि उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पादकों तथा व्यापारियों, उत्पादकों, सरकार, उपभोक्ताओं तथा परिवारों में किस प्रकार वितरित किया जाय। 🎉अर्थात उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का समाज के विभिन्न जरूरतमन्द वर्गों में वितरण कैसे किया जाय। 🎉उपरोक्त तीनों प्रश्नों का हल निकालने के लिए आर्थिक प्रणाली महत्वपूर्ण निर्णय लेती है तथा इस सम्बन्ध में आवश्यक कार्य करती हैं।
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🎁आर्थिक प्रणाली के मूल तत्व 🙊किसी भी देश की आर्थिक प्रणाली देश के सम्पूर्ण घटकों द्वारा निर्धारित होती है, जिसमें तत्त्व शामिल होते हैं- 🙊व्यक्ति - इसमें देश के भीतर लोगो की विभिन्न भूि मकाओं जैसे- ऋणदाता, ग्राहक, नियोक्ता, कर्मचारी, स्वामी, पूर्तिकर्ता आदि के सहयोग एवं सम्बन्धों से आर्थिक प्रणाली का निर्माण होता है, परन्तु यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि कौन-कौन से व्यक्ति विद्यमान आर्थिक प्रणाली में शामिल हैं। 🙊संसाधन - आर्थिक प्रणाली का संचालन उत्पादन एवं वितरण के विभिन्न साधनों जैसे- भूमि, श्रम, पूँजी, साहस, संगठन तथा बाजार आदि से होता है। 🙊ये साधन किसी देश की दशा एवं दिशानिर्धारित करने में महत्वपूर्ण तत्व के रूप में शामिल होते हैं। 🙊प्रतिफल - उत्पादन एवं वितरण के साधन किस प्रेरणा से कार्य करते हैं? साहसी इन्हें कार्य पर क्यों लगाता है? 🙊प्रतिफल प्राप्त करने की आशा में ही उत्पादन के समस्त साधन अपने प्रयासों का योगदान करते हैं। 🙊इस प्रकार लाभ एवं सामाजिक कल्याण समस्त आर्थिक प्रणालियों का प्रमुख आधार है। 🙊नियमन - समस्त आर्थिक प्रणाली कुछ व्यक्तियों, संस्थाओं अथवा घटकों से नियमित एवं नियन्त्रित होती है। 🙊व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्रियाओं का नियमन करने वाले प्रमुख घटक प्रतिस्पध्र्ाी , माँग एवं पूर्ति सरकार आदि हैं।
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🎁आर्थिक प्रणाली 😍आर्थिक प्रणाली किसी भी देश में आर्थिक क्रियाओं के संगठन पर प्रकाश डालती है। उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के हाथों में, सरकार के पास या फिर दोनों के हाथों में होता है। 😍अब स्वामित्व अधिकतर निजी 62 व्यक्तियों के हाथों में हो तो ऐसी आर्थिक व्यवस्था को पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था कहते है। 😍यदि सरकार के हाथ में हो तो इसे समाजवादी अर्थव्यवस्था कहते हे। इंग्लैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी फ्रांस पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदाहरण कहे जा सकते है। 😍चीन, दक्षिणकोरिया आदि समाजवादी अर्थव्यवस्था के उदाहरण कहे जाते है। जब निजी व्यक्तियों और सरकार दोनो बड़ी मात्रा में साधनों के स्वामी हो तो इसे मिश्रित आर्थिक प्रणाली कहते है। 😍वास्तव में, एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों का अनुपात अधिकतर निजी क्षेत्र के पास रहता है जबकि कम लेकिन काफी महत्वपूर्ण, भाग सरकार के हाथ में रहता है। 😍इसीलिये मिश्रित अर्थव्यवस्था को मिश्रित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था भी कहते है। एशिया के अधिकतर देश एवं विश्व के अन्य देश भी इसी वर्ग में आते है। भारत ने भी मिश्रित आर्थिक प्रणाली अपनाई है। 😍आर्थिक प्रणाली समाज की आर्थिक क्रियाओं के संगठन पर प्रकाश डालती है तथा इसमें उपभोग, उत्पादन, वितरण एवं विनिमय के तरीकों का अध्ययन किया जाता है। 😍निजी व्यवसाय का क्षेत्र तथा आर्थिक क्रियाओं में सरकार के हस्तक्षेप की सीमा प्रमुख रूप से आर्थिक प्रणाली की प्रकृति पर निर्भर करती है। 😍आर्थिक प्रणाली के अन्तर्गत वे संस्थाएँ सम्मिलित की जा सकती है, जिन्हें देश या देश का समूह, अपने निवासियों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विभिन्न साधनों के प्रयोग हेतु अपनाता है। 😍दूसरे शब्दों में, आर्थिक प्रणाली का अर्थ वैधानिक तथा संस्थागत ढांचे से हैं, जिसके अन्तर्गत आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती है। 😍प्रत्येक देश में मानव के आर्थिक जीवन में कम या अधिक राज्य हस्तक्षेप भी पाया जाता है। इसलिए आर्थिक प्रणाली का रूप राज्य के हस्तक्षेप की मात्रा या सीमा पर निर्भर करता है। 😍आर्थिक प्रणाली की एक उचित परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है- “आर्थिक प्रणाली संस्थाओं का एक ढाँचा है, जिसके द्वारा उत्पत्ति के साधनों तथा उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के प्रयोग पर सामाजिक नियन्त्रण किया जाता है।”
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🎁Monetary Policy 🖊The rules that are made to run the economy of any country regularly are called monetary policy or the policy of money supply is monetary policy. 🖊Monetary policy is prepared by the Monetary Policy Committee (MPC). 🖊Through which the money flow in the country's economy is controlled. 🖊Through these rules, the entire banking system of the economy is controlled. 🖊In simple language, monetary policies are prepared to control the supply, cost and use of money and loans and to promote development with low and stable inflation. 🖊Now if we talk about India, then the central bank of India, Reserve Bank of India (RBI) acts as the monetary authority in India and operates the monetary policies prepared by the MPC and through which money supply and interest rates etc. are controlled. 🖊On the basis of these economic policies, the government fulfills macroeconomic objectives like inflation, consumption, growth and liquidity.
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🎁मौद्रिक नीति 🖊किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को नियमित रूप से चलाने के लिए जो नियम बनाये जाते हैं, उन्हें मौद्रिक नीति कहा जाता है या मुद्रा आपूर्ति की नीति मौद्रिक नीति है. 🖊मौद्रिक नीति Monetary policy committee (MPC) द्वारा तैयार की जाती हैं. 🖊जिनके माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह (Money flow) को नियंत्रित किया जाता है. 🖊इन नियमों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की सम्पूर्ण बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित किया जाता है. 🖊सरल भाषा में समझें तो मुद्रा और ऋण की आपूर्ति, लागत और उपयोग का नियंत्रण और कम और स्थिर मुद्रास्फीति के साथ विकास को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीतियाँ तैयार की जाती हैं. 🖊अब अगर भारत की बात करें तो भारत में मौद्रिक प्राधिकरण ( monetary authority) के रूप में भारत का केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) कार्य करता है और MPC द्वारा तैयार मौद्रिक नीतियों को संचालित करता है और जिनके माध्यम से मुद्रा आपूर्ति व ब्याज दर आदि का नियंत्रण किया जाता है. 🖊इन्हीं आर्थिक नीतियों के आधार पर मुद्रा स्फीति, खपत, विकास और तरलता(Inflation, consumption, growth aur liquidity) जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्य सरकार पूरा करती है.
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🎁Flaws of India's fiscal policy 🎁Lack of flexibility - Fiscal policy is not flexible because the tax system of our country is not as flexible as it should have been. Many committees were formed to improve the tax system, but these too did not yield much benefit. The Indian government has not been able to get the income it should have received from taxes. 🎁Impractical tax system - India's tax system is traditional. Changes have been made in it, but we have still not been able to give it a scientific form. 🎁Deficit financing - Deficit financing has been adopted in every budget of the country. Lack of control in this is a sign of financial mismanagement. Due to the continuous preparation of deficit budgets, the problem of price rise and currency expansion persists. 🎁Reduction in savings - Today's savings rate in India is 23.4 percent of GDP, while in Singapore it is 49.9 percent, in Malaysia it is 4.7 percent, and in China it is 39 percent. Due to reduction in savings, there is also a decrease in capital formation. The fiscal policy of our country has not been successful in encouraging savings. 🎁Increase in administrative expenses - There has been a huge increase in administrative expenses in the country. Expenses related to internal and external security have to be made, they cannot be stopped, but there are some expenses in administrative expenses which we can call wasteful. Many efforts have been made to control expenses, but wasteful expenses could not be stopped. Unproductive expenses are having a bad effect on the country's economy. 🎁 Increase in foreign debt - Due to continuous increase in public expenditure and decrease in internal resources, the country has had to depend on foreign debt. Even today, the country is badly trapped in the liability of foreign debt. Every year a huge amount has to be spent on payment of interest. Hence, the fiscal policy has not been successful in this also. Due to the above mentioned flaws, India's fiscal policy is not able to succeed in its objectives.
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🎁भारत की राजकोषीय नीति के दोष 🎁लोचता का अभाव - राजकोषीय नीति का लोचपूर्ण न होना इस बात के लिए कहा जाता है कि हमारे देश की कर प्रणाली को जितना लोचदार होना चाहिए था वह इतनी लोचदार नहीं है। बार-बार कर प्रणाली में सुधार के लिए अनेक समितियों का गठन भी किया गया, परन्तु इनसे भी बहुत बड़ा फायदा नहीं हुआ। भारत सरकार को करों से जितनी आय प्राप्त होनी चाहिए थी वह उसे प्राप्त नहीं हो सकी है। 🎁अव्यावहारिक कर प्रणाली - भारत की कर प्रणाली परम्परागत है। इसमें परिवर्तन तो किये जाते रहे हैं, परन्तु अभी भी हम इसे वैज्ञानिक स्वरूप नहीं दे पाये हैं। 🎁घाटे की वित्त व्यवस्था - देश के प्रत्येक बजट मे घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाया जाता रहा है। इसमें नियन्त्रण का न लगाया जाना वित्त्ाीय कुप्रबन्ध का द्योतक है। लगातार घाटे के बजटों के बनाये जाने के कारण कीमतों में वृद्धि व मुद्रा प्रसार की समस्या बनी हुई है। 🎁बचतों का कम होना - भारत में आज की बचत दर जीडीपी की 23.4 प्रतिशत है जबकि सिंगापुर में 49.9 प्रतिशत, मलेशिया में 4.7 प्रतिशत, व चीन में 39 प्रतिशत है। बचतों के कम होने के कारण पूँजी के निर्माण में भी कमी होती है। हमारे देश की राजकोषीय नीति बचतों को प्रोत्साहित करने में सफल नहीं हो पायी है। 🎁प्रशासनिक व्ययों में वृद्धि - देश मे प्रशासनिक व्यया ें में भारी वृद्धि होती आयी है। आन्तरिक एवं बाह्म सुरक्षा सम्बन्धी व्यय तो करने ही होते हैं, उन्हें रोका नहीं जा सकता हैं परन्तु प्रशासनिक व्ययों में कुछ व्यय ऐसे हैं जिन्हें हम अपव्यय कह सकते हैं। व्ययों को नियन्त्रित करने के अनेक प्रयत्न किये जाते रहे हैं, परन्तु अपव्ययों को रोका नहीं जा सका है। अनुत्पादक व्ययों का देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। 🎁विदेशी ऋणों में वृद्धि - सार्वजनिक व्ययों में लगातार वृद्धि और आन्तरिक साधनों में कमी के कारण देश को विदेशी ऋणों पर निर्भर रहना पड़ा है। आज भी देश, विदेशी ऋणों की देनदारी में बुरी तरह से फँस चुका है। प्रतिवर्ष बहुत बड़ी राशि ब्याज के भुगतान में व्यय करनी पड़ती है। अत: राजकोषीय नीति को इसमें भी सफलता नहीं मिली है। उपर्यक्त दोषों के कारण भारत की राजकोषीय नीति अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पा रही है।
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