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श्री स्वामी ब्रह्ममुनि जी ब्रह्ममुनि जी परिव्राजक परिव्राजक अनेक शास्त्र-निष्णात गम्भीर विद्वान हैं। आपने अनेक गन्थों का निर्माण किया। दर्शन शास्त्रों में वेदांत, वैशेषिक, सांख्य और योग , सांख्य और योग दोनों समान सिद्धान्तवादी दर्शन हैं। दोनों ही मोक्ष-शास्त्र हैं। जहाँ महर्षि पतंजलि योगदर्शन में अष्टांग योग साधनों द्वारा समाधि और मोक्ष की प्राप्ति का वर्णन करते हैं वहाँ सांख्यदर्शन में भी पहले ही सूत्र में महर्षि कपिल ने त्रिविधदुःखनिवृति का ही अत्यन्त पुरुषार्थ माना है जो बिना मोक्ष के नहीं हो सकता। इन चारों भाष्यों में विशेष बात यह है कि उन्होंने प्रत्येक सूत्र और स्थान पर दर्शनकार के मत को आवश्यक श्रुति-स्मृति का प्रमाण उपस्थित करके सिद्ध किया है। इस लिए यह भाष्य उन पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है जो इन दर्शनों का ज्ञान भारतीय दर्शन–परम्परा की पृष्ठभूमि में प्राप्त करना चाहते हैं।
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