Hindi talks
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एक सितारा टूट कर बिखर गया आज,
एक घर का लड़का पंखे से लटक गया आज,
वजह वही की इम्तेहान पास करना था,
लोग वही की इम्तेहान पास क्यों न हुआ,
घर वही है कि जहां लोग आ जा रहे हैं
कोई बुजदिल कोई नाकाम बता रहे हैं,
बैठे हैं खाट पर दो बूढ़े औरत मर्द,
बस सुन रहे हैं कि लोग क्या कह रहे हैं,
तमाम उम्र सोचनें में गुजरेगी की क्या सही था, क्या ग़लत हो गया,
क्या इतना जरूरी था कोचना कि बेहिसाब क्षत हो गया,
कौन लेगा इस क़त्ल का इल्ज़ाम अपने सर,
कौन अब बताएगा बच्चे के न जीतनें का डर,
कोई नहीं है जो शुरआत कर सके,
कह सके कि जाओ करना जो मन करे
इम्तेहान ही तो है देना गर इच्छा हो,
मन ना करे तो करना वो जो मन करे...!!
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मैं सोच रहा हूं
शायद मैं सोच तो रहा था,
क्या अब नहीं हो सकता...?
पर अब वो पानें की इच्छा है भी और नहीं भी,
ख़ुद को भी जान पाने का नया चस्का है देखते हैं कब तक चलता है😀
ज्यादा तो नहीं टिकेगा मेरी खुशियों की तरह, या हो सकता है ये टिका रहे मेरे आत्मविश्वास की तरह।
हो तो सकता है।
पहले तो सबसे लडने को तैयार रहता था मैं, उसके लिए, वो चाहिए, वो चाहिए ही, ऐसा वाला दृश्य था। अब क्या हो गया?
लग रहा है मैं उसे जानने लग गया। शायद ज्यादा ही जानने लग गया। Philosophy में ऐसा कहते होंगे, मुझे तो नहीं पता, कि हद से ज्यादा जान जाना, आकर्षण कम करता होगा।
मुझे ऐसा लगता तो है पर हर मसअले के लिए नहीं, हर रिश्ते के लिए ये लागू कहां होता है।
किताबों को ही देख लें अगर तो ऐसा कई किताबों के साथ हुआ है की मैंने उन्हें कई बार पढ़ा, 5-6-7 और तड़प कम नहीं हुई।
हर दफा और बेहतर समझ में आई बात, कहानी और प्रखर हुई। पात्र बात करते नजर आए, आपस में नहीं, मुझसे।
बताते नजर आए अपनी वो भी कहानी जो किताब में शायद लेखक लिखना भूल गया हो, या वो जिसे मेरे अलावा कोई नहीं समझ सकता, लेखक भी नहीं।
असल जिंदगी के रिश्तों की एक खराबी है ये, की ज्यादा जान लेना समस्यात्क बन सकता है। पर वक्त की आदत है हर छोटे घाव भर देता है, ऐसा सुनने में आता है।
मेरे मम्मी पापा से भी कभी कभार बहस होती है, विचार अलग होते हैं, चिढ़ हो जाती है उस समय के छोटे हिस्से में, फिर ठीक हो जाता है सब। बिल्कुल पहले की तरह।
मैं नहीं मानता की रिश्ते में अगर गलतफहमी हो गई है तो वो रस्सी की गांठ को तरह हमेशा दिखाई या जनाई देगी। नहीं। कुछ ही वक्त बाद वो टूटे हिस्से आपस में मिलकर एक हो जाते हैं, पहले की तरह, या शायद पहले से ज्यादा मजबूत।
हो ही जाते होंगे, मैनें 10-15 बार प्रयास किया, शायद सफल रहा। हां, रहा तो।
शायद कुछ बार नहीं भी रहा, क्या फ़र्क पड़ता है, लेकिन कभी कभी चुभन, तड़प, पश्च्याताप नज़र आता है।
हां तो लगाव कुछ कम हो गया तो क्या, कुछ दिन बाद अपनें आप दिमाग़ ठिकाने आ जाता है, अपनी हालत, अपनी शक्ल, अपनी जिंदगी और अन्य रिश्ते देखकर।
लगाव कम हुआ होगा, होता है, होता रहेगा शायद उससे क्या। आगे जो होगा उम्मीद है अच्छा ही होगा... !!
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हज़ार गम रहे साथ में,
कुछ कहा न गया,
कुछ सुना न गया,
बहुत देर लगी,
ख़ुद समझने समझाने में,
लेकिन,
चंद कतरा आंसू
और बहुत कुछ साफ हो गया,
जैसे,
काले बादलों के बाद आसमान,
गाड़ी गुजरने के बहुत देर बाद स्टेशन,
हंसने के बाद दिल,
मरने के बाद देह,
वगैरह वगैरह वगैरह...
मगर इतनी ताक़त आसुओं में,
यकीनन रोने में बहुत ताक़त चाहिए,
अकेले में,
सबके सामने,
बिना मुंह छिपाए,
बिना खराब दिखनें के डर के,
काश पहले रो लेता,
काश....
काश....
मगर.........
काश ये सब हुआ ही न होता...
काश... !!
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पसंद की बात क्या करें, किससे करें और क्यों...
इत्तेफ़ाकन पसंदीदा चीज़ें मिलती ही नहीं है...!!
👍 2💯 2👏 1
तमाम दिन ख़ामोश रहकर...
मैं रातों में ढंग से रोता हूं...
जग जाता हूं कई कई रात अक्सर...
मन लग जाए तो दिन में सोता हूं...!!
👍 8💯 2🔥 1
मैं चुपचाप से रोनें वाला लड़का...
चिल्लाकर रोना चाहता हूं...
सिसकियों में सिमट जानें वाला...
गोदी में सोना चाहता हूं...
मैं सबको समझाने वाला...
खुद बुद्धू रहना चाहता हूं...
मैं महफिल का था आशिक लड़का...
कमरे में जीना चाहता हूं...
ये बड़ी बड़ी बातें क्या करूं...
अब खुद में खैमोशी चाहता हूं...!!
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