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📖 کلمات ربی 📖

اس چینل میں قرآنی آیات ترجمہ و تفسیر کے ساتھ ارسال کی جاتی ہیں۔ اس چینل میں اپنے دوست و احباب کو شامل کرنے کے لئے یہ لنک شیئر کریں۔ https://t.me/kalimaturabbi ایڈمن @Hifzurrahmn

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*Bismillahirrahmanirrahim* *فَإِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۚ* ---- *"Aur jab irada karlo to ALLAH Subhanahu par bharosa karo"* --- *اور جب ارادہ کرلو تو اللہ پر بھروسہ کرو* --- *"And when you make a decision, put your trust in ALLAH"* --- *Surah Ale Imran (03:159)*
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।।।। सूरह आल इमरान ।।।। ....... पारा नंबर 4 ...... सिलसिला नंबर 75 आयत नंबर 187 तो 193 और जब अल्लाह ने उन लोगों से जिनको किताब दी गई यह वचन लिया था कि तुम उसको ज़रूर लोगों के सामने खोल-खोल कर बयान कर दोगे और उसको छिपाओगे नहीं तो उन्होंने उसको पीठ पीछे डाल दिया और उसके बदले थोड़े दाम ले लिए तो कैसा बुरा सौदा वे कर रहे हैं (187) आप हरगिज़ न सोचें जो लोग अपने किए पर ख़ुश होते हैं और बिना किए प्रशंसा चाहते हैं आप उनके बारे में बिल्कुल यह न समझें कि वे अज़ाब से बच जाएंगे और उनके लिए तो खुद अज़ाब है¹ (188) आसमानों और ज़मीन पर बादशाही तो अल्लाह ही की है और अल्लाह को हर चीज़ की सामथ्र्य (कु़दरत) प्राप्त है (189) बेशक आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात व दिन की चक्र में बुद्धि वालों के लिए (बड़ी) निशनियाँ हैं² (190) जो खड़े और बैठे और अपनी करवटों पर (लेटे) अल्लाह को याद करते रहते हैं और आसमानों और ज़मीन की पैदाईश के बारे में विचार विमर्श करते हैं कि ऐ हमारे पालनहार! तूने इनको यूँ हीं नहीं पैदा किया, तू पवित्र है³ बस तू हमें दोज़ख़ की आग से बचा ले (191) ऐ हमारे पालनहार! तूने जिसको भी दोज़ख़ में दाख़िल कर दिया बस तूने उसको अपमानित ही कर दिया और अत्याचारियों का कोई मददगार नहीं (192) ऐ हमारे पालनहार! बेशक हमने एक पुकारने वाले को ईमान की आवाज़ लगाते सुना कि अपने पालनहार पर ईमान ले आओ तो हम ईमान ले आए, ऐ हमारे पालनहार! बस तू हमारे पापों को माफ़ कर दे और हमारी बुराईयों को धो दे और नेकियों के साथ हमें मौत दे (193) ।।।।।। हाशिया ।।।।। (1) वही यहूदी गलत मसले बताते, रिश्वतें खाते और अंतिम पैग़म्बर के गुणों का जो उल्लेख था वह छिपाते फिर खुश होते कि हमें कोई पकड़ नहीं सकता और अपनी प्रशंसा के इच्छुक रहते । (2) चमत्कार की मांग क्या ज़रूरी है, पैग़म्बर जिसकी ओर बुलाता है यानी तौहीद की, उस की निशानियाँ सारे संसार में फैली हुई हैं । (3) आयत से मालूम हुआ कि अल्लाह की सृष्टियों मे विचार विमर्श करना वही प्रशंसनीय है जिसका परिणाम अल्लाह की पहचान और आख़िरत की चिन्ता हो, बाकी जो भौतिकवादी इन सृष्टियों के तारों में उलझ जाएं और स्रष्टा तक न पहुँचें वे चाहे कैसे ही शोधकर्ता और वैज्ञानिक कहलाएं वे कु़रआन की भाषा में “उलुल अल्बात” (बुद्धि वाले) नहीं हो सकते। .........(जारी) ..........
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।।।। सूरह आल इमरान ।।।। ....... पारा नंबर 4 ...... सिलसिला नंबर 74 आयत नंबर 181 तो 186 अल्लाह ने उन लोगों की बात सुन रखी है जिन्होंने कहा कि अल्लाह फ़क़ीर है और हम धनी हैं और उन्होंने जो भी कहा और पैग़म्बरों के जो अनुचित हत्याएं की हम सब लिख रहे हैं और हम कहेंगे कि आग के अज़ाब का मज़ा चखो¹ (181) यह सब तुम्हारी करतूतों की सज़ा है और अल्लाह बन्दों के लिए ज़रा भी अन्याय करने वाला नहीं है (182) जिन्होंने कहा कि अल्लाह ने हम को ताकीद कर रखी है कि हम किसी पैग़म्बर को उस समय तक न मानें जब तक वह हमारे सामने ऐसी कु़र्बानी न पेश कर दे जिसको आग खा ले, आप कह दीजिए कि मुझ से पहले कितने ही पैग़म्बर खुली निशानियाँ और उस चीज़ को लेकर आ चुके हैं जो तुम कह रहे हो तो अगर तुम अपनी बात में सच्चे हो तो तुमने उनको क्यों क़त्ल किया² (183) फिर अगर उन्होंने आपको झुठलाया तो आपसे पहले भी पैग़म्बर झुठलाए जा चुके हैं जो खुली निशानियाँ और सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए³ (184) हर जान को मौत का मज़ा चख़ना है और क़यामत के दिन तुम्हें पूरे के पूरे बदले दे दिए जाएंगे तो जो भी दोज़ख़ से बचा लिया गया और जन्नत में पहुंचा दिया गया तो उसका तो काम बन गया और दुनिया की ज़िन्दगी तो धोखा के सामान के सिवा कुछ भी नहीं (185) तुम्हें अपने मालों और जानों में ज़रूर आज़माया जाएगा और तुम उन लोगों से जिन को तुम से पहले किताब मिली और मुश्रिकों से बहुत कुछ दुखदायी बातें सुनोगे फिर अगर तुम सब्र करो और परह़ेज़गारी के साथ रहो तो बेशक यह बड़ी हिम्मत के काम हैं⁴ (186) ।।।।।। हाशिया ।।।।। (1) जब आदेश आया कि अल्लाह को अच्छा कर्ज़ दो उस पर उन यहूदियों ने मज़ाक उड़ाया कि अल्लाह फ़कीर है हम धनी हैं इसलिए हमसे क़र्ज़ मांगा जा रहा है और इससे पहले कितने पैग़म्बरों का वे क़त्ल कर चुके थे, आसमानी किताबों के संदर्भ से इसका कुछ विवरण इसी सूरह की आयत 112 में गुज़र चुका है । (2) पहली उम्मतों में माले ग़नीमत (युद्ध में शत्रुधन) को आग खा जाती थी और यही उसके कबूल होने की पहचान थी, इसी प्रकार वह जो अल्लाह के लिए कु़र्बानी पेश करता उसके भी कुबूल होने की पहचान यही होती थी, यहूदियों ने इसको बहाना बनाया और आ कर कहा कि जब तक आप यह चीज़ नहीं दिखाएंगे हम नहीं मानेंगे, उनसे कहा गया कि जिन पैग़म्बरों ने ये चतम्कार दिखाए उनको फिर तुमने क्यों क़त्ल किया । (3) यह हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तसल्ली दी जा रही है कि उनके झुठलाने पर आप दुखी न हों हर पैग़म्बर के साथ यह हुआ है । (4) यह सब मुसलमानों से कहा जा रहा है, बुख़ारी शरीफ़ की एक हदीस से मालूम होता है कि यह आयत बद्र युद्ध से पहले उतरी थी और आगे जो परेशानियाँ व कठिनाइयाँ सामने आने वाली थीं उनकी ओर इसमें इशारा है, उनका इलाज सब्र व तकवा से बताया गया है और यह क़यामत तक मुसलमानों के लिए सबसे अच्छा नुस्ख़ा है। .........(जारी) ..........
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।।।। सूरह आल इमरान ।।।। ....... पारा नंबर 4 ...... सिलसिला नंबर 73 आयत नंबर 174 तो 180 तो वे अल्लाह की कृपा और इनअ़ाम के साथ वापस हुए उनका बाल भी बांका नहीं हुआ और वे अल्लाह की मर्ज़ी पर चले और अल्लाह बड़ा करम वाला है¹ (174) यह तो शैतान है जो तुम को अपने भाई-बंधुओं से डराता है तो तुम उनसे डरो मत और मुझ ही से डरो अगर तुम ईमान रखते हो² (175) और आप उन लोगों के ग़म में न पड़ें जो कुफ्ऱ में तेज़ी से बढ़ते जाते हैं वे अल्लाह को हरगिज़ कुछ भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकते, अल्लाह की चाहत यही है कि उनके लिए आख़िरत में कुछ भी हिस्सा बाक़ी न रखे और उनके लिए बड़ा अज़ाब है³ (176) बेशक जिन्होंने ईमान के बदले कुफ्ऱ का सौदा किया वे हरगिज़ अल्लाह को ज़रा भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकते और उनके लिए दुखद अज़ाब है (177) और जिन्होंने कुफ्ऱ किया वे हरगिज़ यह न सोचें कि हम उनको जो मुहलत दे रहे हैं वह उनके लिए बेहतर है हम तो उनको ढील इसलिए दे रहे हैं ताकि वे गुनाह (पाप) में बढ़ते चले जाएं और उनके लिए अपमानजनक अज़ाब है (178) तुम जिस हाल में हो अल्लाह तआला उस हाल में ईमान वालों को उस समय तक छोड़ने वाला नहीं है जब तक पवित्र को अपवित्र से अलग न कर दे और अल्लाह तअ़ाला तुम्हें गै़ब से अवगत भी नहीं कराएगा हाँ वह अपने पैग़म्बरों में जिस को चाहता है चुन लेता है तो तुम अल्लाह और उसके पैग़म्बरों पर ईमान लाओ और अगर तुम ईमान लाते हो और परहेज़गारी अपनाते हो तो तुम्हारे लिए बड़ा बदला है⁴ (179) और वे लोग जो उस माल में कंजूसी करते हैं जो अल्लाह ने उनको अपनी कृपा से प्रदान किया है वे उसको अपने लिए ज़्यादा अच्छा न समझें बल्कि यह तो उनके लिए सरा सर बुरा है जिस चीज़ में भी उन्होंने कंजूसी से काम लिया क़यामत के दिन उसका पट्टा उनको पहनाया जाएगा और आसमानों और ज़मीन का वारिस अल्लाह ही है और अल्लाह (तअ़ाला) तुम्हारे कामों की पूरी ख़बर रखने वाला है⁵ (180) ............ हाशिया ...... (1) ‘हमराउल असद’ में मुसलमानों ने व्यापारिक लाभ भी हासिल किया और बिना लड़ाई के वापस हुए, उसकी ओर भी इशारा है और उह्द ही में अबू सुफ़ियान ने अगले साल बद्र नामक स्थान पर लड़ाई का ऐलान किया था, मुसलमान समय पर सेना ले कर वहाँ पहुँचे लेकिन दुश्मन पर धाक जम गयी और वे वहाँ नहीं आए, मुसलमानों ने वहाँ भी व्यापार इत्यादि किया और लाभ कमाया और सकुशल वापस आए उसकी ओर भी इशारा है । (2) जो शैतान के कहने पर चले वह खुद शैतान हैं । (3) मुनाफ़िकों (कपटियों) का काम था कि मुसलमानों को कुछ तकलीफ़ें पहुंचती तो फौरन कुफ्ऱ की बातें करने लगते । (4) अल्लाह इसी तरह मोमिनों और मुनाफिक़ों (कपटियों) को अलग अलग कर देता है, वह ग़ैब की बातें नहीं बताता, हाँ जितनी बातें चाहता है अपने पैग़म्बर को बताता है। (5) जो कोई ज़कात न देगा उसका माल कोबरा साँप बन कर उसके गले में पड़ जाएगा और उसके कल्ले चीरेगा और वारिस तो अल्लाह ही है, आख़िर तुम मर जाओगे और माल उसी का होकर रहेगा, बस अपने हाथ से दो तो सवाब पाओगे। .........(जारी) ..........
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।।।। सूरह आल इमरान ।।।। ....... पारा नंबर 4 ...... सिलसिला नंबर 72 आयत नंबर 166 तो 173 और दो सेनाओं की मुठभेड़ के दिन तुम्हें जिस मुसीबत का सामना करना पड़ा वह अल्लाह ही के आदेश से हुआ ताकि वह ईमान वालों को भी परख ले (166) और उनको भी जान ले जिन्होंने निफ़ाक़ (कपटाचार) किया और उनसे कहा गया कि आओ अल्लाह के रास्ते में लड़ो या (दुश्मन को) हटाओ, वे बोले कि लड़ाई हमको मालूम होती तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते¹, उस दिन वे ईमान की तुलना कुफ्ऱ (इनकार) से अधिक निकट हैं, वे अपनी ज़बानों से वह बात कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं है और जो कुछ भी वे छिपाते हैं अल्लाह उसको खूब जानता है (167) जिन्होंने अपने भाइयों से कहा और ख़ुद बैठ रहे कि अगर वे भी हमारा साथ देते तो मारे न जाते, आप कह दीजिए बस अपने ऊपर से मौत को टाल कर दिखाओ अगर तुम सच्चे हो (168) और जो अल्लाह के रास्ते में मारे गए उनको हरगिज़ मुर्दा मत समझो बल्कि वे अपने पालनहार के पास ज़िन्दा हैं सम्मानित किये जा रहे हैं (169) अल्लाह ने अपनी कृपा से जो कुछ उनको दे रखा है उसमें मज़े कर रहे हैं और ख़ुषख़बरी देना चाहते हैं अपने बाद वालों को जो अभी तक उनसे नहीं मिले कि उन पर न कुछ भय होगा और न वे दुखी होंगे (170) वे अल्लाह की नेमत और उसकी मेहरबानी से बहुत खुश हो रहे हैं और अल्लाह ईमान वालों के बदले को बेकार नहीं करता² (171) वे लोग जिन्होंने चोट खाने के बाद भी अल्लाह और पैग़म्बर की बात मानी ऐसे बेहतर काम करने वालों और परहेज़गारों के लिए बड़ा बदला है³ (172) वे लोग कि जिनसे कहने वालों ने कहा कि (मक्का के) लोगों ने तुम्हारे खिलाफ़ बड़ा जत्था इकट्ठा कर रखा है तो उनसे डरो तो इस चीज़ ने उनके ईमान में और बढ़ोत्तरी कर दी और वे बोले हमारे लिए तो अल्लाह काफ़ी है वह बहुत अच्छा काम बनाने वाला है⁴ (173) ............ हाशिया ...... (1) यह मुनाफ़िकों (कपटियों) की बात है, इसका मतलब तो यह मालूम नहीं होता कि हम जंग के तरीक़ों से अवगत होते तो हम शरीक होते, वे जंग के तरीक़ों को ख्ूाब जानते थे, बल्कि इसका मतलब यह मालूम होता है कि अगर जंग हमारे बताए हुए नियमों और मुनासिब स्थान और उचित अवसर पर होती तो हम ज़रूर चलते, अतः हीले-बहाने करके चले गए और दिल में यह था कि मुसलमान पराजित हों तो वे खुश हों । (2) शहीदों को मरने के बाद एक ख़ास जीवन प्राप्त होता है जो अन्य मुर्दों को नहीं होता, वे खाने-पीने और हर्ष व उल्लास में रहते हैं, अल्लाह के पुरस्कार पर खुशियां मनाते हैं और उन लोगों पर भी खुश होते हैं जिनको वे दुनिया में अपने पीछे जिहाद में और अन्य भले कार्यों में छोड़ कर आए हैं । (3) उह्द युद्ध से वापस हुए काफ़िरों के सेनाध्यक्ष अबू सुफ़ियान को ख़्याल आया कि दोबारा हमला करके मुसलमानों को समाप्त कर देना चाहिए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पता चला तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि जो लोग लड़ाई में मौजूद थे वे दुश्मनों का पीछा करने के लिए तैयार हो जाएं, सख़्त थकान और चोटों से चूर होने के बावजूद मुसलमानों ने “हमराउल असद” स्थान तक पीछा किया, उसकी ऐसी धाक बैठी कि दुश्मन हमले का इरादा छोड़ कर मक्के की ओर भागे । (4) मक्का पहुंच कर अबू सुफ़ियान ने फ़िर खबर उड़ाई की हम लोग मदीने पर एक बड़ी सेना के साथ हमले की तैयारी कर रहे हैं मुसलमानों को ख़बर मिली तो उनके ईमान में और वृद्धि हुई और उन्होंने कहा “हसबुनल्लाहि व नेअ्मल वकील”। .........(जारी) ..........
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