Anoop surelia geography
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🏞️ पनामा नहर🔸 पनामा नहर प्रशांत महासागर को अटलांटिक महासागर से जोड़ती है..!! 🔸अटलांटिक महासागर की ओर कोलोन से प्रशांत महासागर की ओर गल्फ ऑफ पनामा को आपस में जोड़ती है.. 🔸 इसका निर्माण कार्य 1904 में शुरू हुआ जो 1914 में जाकर पूरा हुआ..!! 🔸इसकी लंबाई 82 KM हैं..वर्तमान में इसका स्वामित्व पनामा देश के पास है...!! 🔸 यह नहर गातून झील से होकर गुजरती हैं..!! 🔸इस नहर से 42 जलपोत प्रतिदिन गुजरते हैं..!! 🔸इस नहर में कुल छह जलबंधक सिस्टम (इंटरलॉकिंग सिस्टम) है जो आप वीडियो में देख सकते है..!!
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🔸क्या है आद्रभूमिं:-
नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड (Wetland) कहा जाता है। दरअसल, वेटलैंड्स वैसे क्षेत्र हैं जहाँ भरपूर नमी पाई जाती है...आर्द्रभूमि वह क्षेत्र है जो वर्ष भर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है।
🔸कब मनाया जाता है आद्रभूमि दिवस:-
हर वर्ष की 2 फरवरी को आद्रभूमि दिवस मनाया जाता है..!!
वर्ष 1971 में ईरान के शहर रामसर में कैस्पियन सागर के तट पर आर्द्रभूमि पर एक अभिसमय (Convention on Wetlands) को अपनाया गया था।
विश्व आर्द्रभूमि दिवस पहली बार 2 फरवरी, 1997 को रामसर सम्मलेन के 16 वर्ष पूरे होने पर मनाया गया था।
🔸वर्ष 2024 के लिये विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम 'आर्द्रभूमि और मानव कल्याण’ है।
🔸भारत में 80 रामसर साईट्स हैं....तथा सबसे ज्यादा तमिलनाडु में 16 रामसर साईट्स हैं। तथा दुसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है।
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जल / मृदा अपरदन
छप अपरदन (Splash Erosion):-
तेज बारिश के दौरान जिस ऊर्जा के साथ बारिश भूभाग पर गिरती है, उसके कारण भूभाग से मिट्टी के टुकड़े अलग हो जाते हैं, एवं तलछट (sediment) नीचे ढलान की तरफ खिसकने लगते हैं।
शीट अपरदन (Sheet Erosion):-
इस प्रकार का अपरदन बाकी प्रकारों के अनुसार जल्दी पहचान में नहीं आता लेकिन इससे काफी हानि होती है। इसके कारण जमीन पर किसी भी प्रकार का निशान नहीं मिलता।
मिट्टी की जो ऊपरी परत होती है, जो सबसे उपजाऊ मानी जाती है, इस प्रकार के प्रक्रिया के दौरान वह बह जाता है।
Rill Erosion:-
इस प्रकार के अपरदन में बहुत सारे छोटे छोटे नाले बन जाते हैं। शीट अपरदन होने के बाद जब पानी अधिक मात्रा में बहने लगता है, तो इस प्रकार के होने का कारण बनता है। अगर यह खेती वाले भाग में हो तो काफी मात्रा में उपजाऊ मिट्टी का कटाव होता है।
अवनालिका अपरदन (Gully Erosion):-
इसके कारण जमीन पर छोटे बड़े नाले बन जाते हैं। कभी कभी ऐसे बने हुए नाले कई फिट गहरे होते हैं। इस प्रकार के अपरदन के कारण जमीन के ऊपरी सतह की मिट्टी यानि ऊपरी परत तो जाती ही है साथ ही नीचे भाग की मिट्टी भी बह जाती है।
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☁️बादलों के प्रकार
📌सामान्यतः रुप से ऊंचाई, विस्तार, घनत्व तथा पारदर्शिता व अपारदर्शिता के आधार पर बादलों को चार रूपों में वर्गीकृत किया जाता हैं।
1 पक्षाभ मेघ (cirrus clouds)
2 कपासी मेघ (cumulus clouds)
3 स्तरी मेघ (stratus clouds)
4 वर्षा मेघ (nimbus clouds)
📍अंतरराष्ट्रीय ऋतुविज्ञान परिषद के द्वारा बादलों को 10 वर्गों में विभक्त किया गया है।
(A) अत्यधिक ऊँचाई वाले बादल (6000-20000 मीटर):-
(1) पक्षाभ बादल (Cirrus Clouds)
(2) पक्षाभ स्तरी बादल( Cirrostratus)
(3) पक्षाभ कपासी (Cirrocumulus)
( B) मध्यम ऊँचाई वाले बादल (2500-6000 मीटर):-
(4) उच्च स्तरी बादल( Altostratus)
(5) उच्च कपासी ( Altocumulus)
(C) निचले बादल (2500 मीटर से नीचे):-
(6) स्तरी कपासी (Stratocumulus)
(7) स्तरी बादल( Stratus clouds)
(8) वर्षा स्तरी ( Nimbostratus)
(9) कपासी (Cumulus)
(10) कपासी वर्षा ( Nimbo cumulus)
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📍बांसवाड़ा के घाटोल तहसील के भूकिया-जगपुरा के 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सोने के विपुल भण्डार हैं भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के भू-वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र में तांबें की खोज के लिए किये जा रहे एक्सप्लोरेशन के दौरान यहां पहली बार स्वर्ण के संकेत देखे गये। इस क्षेत्र में व्यापक एक्सप्लोरेशन के बाद 113.52 मिलियन टन स्वर्ण अयस्क का आरंभिक आकलन किया गया है जिसमें सोने के धातु की मात्रा 222.39 टन आंकी गई है।
भूकिया जगपुरा में गोल्ड की इन खानों से सोने के साथ ही प्रचुर मात्रा मेंं कॉपर, निकल और कोबाल्ट खनिज प्राप्त होगा।
वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में कर्नाटक में हुट्टी गोल्ड माइंस कंपनी द्वारा गोल्ड का खनन किया जा रहा है व कर्नाटक के ही कोलार गोल्ड फिल्ड में काम हो रहा है। निजी क्षेत्र में मुन्द्रा गु्रप की रामा माइंस द्वारा इस क्षेत्र में एक्सप्लोरेशन और माइनिंग का कार्य किया जा रहा है आंध्र प्रदेश में डेक्कनगोल्ड माइंस द्वारा गोल्ड प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है।
देश में सर्वाधिक स्वर्ण भण्डार बिहार में हैं वहीं राजस्थान में देश के करीब 25 प्रतिशत स्वर्ण भण्डार माने जा रहे हैं।
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🌧️वर्षण/वृष्टि
📍उत्पत्ति के आधार पर वर्षा को तीन भागों में बाँटा गया है- संवहनीय वर्षा, पर्वतीय वर्षा और चक्रवातीय वर्षा/फ्रंटल।
1.संवहनीय वर्षा:- संवहनीय वर्षा जब गर्म हवा हल्की होकर संवहनीय धाराओं के रूप में ऊपर की ओर उठती है। परिणामस्वरूप संघनन की क्रिया होती है तथा कपासी मेघों का निर्माण होता है। यह न्युनतम समय के लिये बिजली कड़कने तथा गरज के साथ मूसलाधार वर्षा होती है। यह वर्षा प्रायः विषुवतरेखिय भागों में 2 बजे से 4 बजे (सांय) तक होती है।
2.पर्वतीय वर्षा:- संतृप्त वायुराशि जब पर्वतीय ढलानों पर पहुँचती है तो यह ऊपर उठने के लिये बाध्य हो जाती है। जैसे ही यह ऊपर उठती है तो फैलने लगती है जिससे तापमान गिर जाता है। यह वर्षा मुख्यतः पर्वतों के पवनाभिमुख भागों में होती है। वर्षा के बाद वायु जब पवनाविमुख ढालों पर पहुँचती है जिससे तापमान में वृद्धि होती है। फलतः उनकी आर्द्रता धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है, इस प्रकार यह हिस्सा वर्षाविहीन हो जाता है। यही क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र कहलाता है।
3.चक्रवातीय वर्षा:- चक्रवातीय वर्षा के दो रूप हैं- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।
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राष्ट्रीय भूगोल दिवस की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं भूगोल अपने ऊंचे पर्वतों की तरह आपको समाज में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएं ईश्वर से यही कामना करता हूं🙏🌹🌹🌹🌹
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🔆समप्राय मैदान के अलग अलग नाम दिए गए है
1️⃣पेनीप्लेन- डेविस 1899
2️⃣पेनप्लेन- किक्रमे 1933
3️⃣पेडिप्लेन- एल.सी. किंग 1948
4️⃣पैनफैन- लाॅसन
5️⃣एच प्लेन- पुश एवं थाॅमस
6️⃣इन्ड्रम्प- पेंक
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