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Oreo Samajis here + countering ancient dharm avaidic channel + other Oreo channels

(आर्य ) आजादी वालें 😉😉 हम वही Oreo samaji है Check #expose

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मूर्तिपूजा के प्रमाण
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देखो आर्य समाजियों को
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पौराणिको के विरुद्ध महागठबंधन 🤣🤣
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//////मैं औदीच्य ब्राह्मण हूँ , औदीच्य ब्राह्मण सामवेदी होते हैं । /// वाह ! जातिवादियों की तरह क्या परिचय दिया अपना स्वामी जी ! इस प्रकार घोर जातिवादी पौराणिक औदीच्य ब्राह्मणों से स्वयं को जोड़कर स्वयं को भी ब्राह्मण कहना ये स्पष्ट जातिवादी परम्परा को बढ़ावा देना है , इस कथन से न केवल स्वामी दयानन्द का ब्राह्मणवाद झलकता है अपितु ये भी ध्वनित होता है कि सामवेद की शाखा परम्परा गुजरात के घोर पौराणिक जातिवादी औदीच्य ब्राह्मणों द्वारा ही संरक्षित है ! स्वामी दयानंद यदि जातिवाद की मानसिकता को कहीं न कहीं अपने मन में सत्य स्वीकारने वाले न होते तो तो ऐसा कभी न कहते कि ////मैं औदीच्य ब्राह्मण हूँ , औदीच्य ब्राह्मण सामवेदी होते हैं । /// अपितु ये कहते कि मैं ब्राह्मण हूँ और सामवेद के नाम पर पाखंड फैलाने वालों के यहाँ दुर्भाग्य से मैं पैदा हुआ //// वाह स्वामी जी ! १० - सत्यार्थ प्रकाश के दशम समुल्लास , पृष्ठ २१३ में लिखते हैं जो मनुष्य वेद और वेदानुकूल आप्त ग्रंथों का अपमान करे उसको श्रेष्ठ लोग जातिबाह्य कर दें ! क्योकि जो वेद की निन्दा करता है , वह नास्तिक है ! देखो ! कितना स्पष्ट जातिवाद है , आपके मत में मनुष्यों में जब अवान्तर जातियां हैं ही नहीं तो जातिबाह्य कौन किसे करेगा भला ? किन्तु क्योंकि वास्तव में आप स्वयं जातिवादी हो , इसीलिये आपने ये स्पष्ट लिखा कि जो आप्त ग्रन्थों का अपमान करे , उसे जातिबाह्य किया जाय ! ११- सत्यार्थ प्रकाश के षष्ठ समुल्लास पृष्ठ १२९ में आप लिखते हैं कि - ///// जो नित्य घूमनेवाला सभापति हो उसके आधीन सब गुप्तचर अर्थात् दूतों को रक्खे। जो राजपुरुष और प्रजापुरुषों के साथ नित्य सम्बन्ध रखते हों और वे भिन्न-भिन्न जाति के रहैं, उन से सब राज और राजपुरुषों के सब दोष और गुण गुप्तरीति से जाना करे।////// ......................वाह स्वामी जी ! गुप्तचर भी भिन्न- भिन्न जाति के रखवा रहे हो आप तो ! हमें आप पर कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि ये आपके जातिवाद के अनुकूल ही है ! १२ - सत्यार्थ प्रकाश के एकादश समुल्लास पृष्ठ २५० में आप लिखते हैं कि - /////विक्रीय शूर्पं विचचार योगी।। इत्यादि वचन चक्रांकितों के ग्रन्थों में लिखे हैं। शठकोप योगी सूप को बना, बेच कर, विचरता था अर्थात् कंजर जाति में उत्पन्न हुआ था। ///// ....................धन्य है स्वामी जी आपका इतना कट्टर जातिवाद ! चक्रांकित के ग्रन्थ ने तो विक्रीय शूर्पं विचचार योगी अर्थात् शठकोप योगी सूप को बना, बेच कर, विचरता था इतना ही कहा पर आपने अपनी ओर से जोड़ा है कि /////अर्थात् कंजर जाति में उत्पन्न हुआ था।/// अर्थात् आप शूप बेचने वालों को कंजर जाति वाले समझते हैं तभी तो आपने ये अर्थ किया है ! धन्य है आपकी इतनी दृढ जातिवादी सोच ! १३ - सत्यार्थ प्रकाश , पंचम समुल्लास पृष्ठ १२८ में दयानंद ने लिखा है कि केवल ब्राह्मण को ही सन्यास का अधिकार है , शेष को नहीं , और फिर लोगों को बहलाने के लिए हेतु दे दिया कि ऐसा क्यों है ? उसी को क्यों है तो बोला क्योंकि जो सब वर्णों में पूर्ण विद्वान , धार्मिक , परोपकार प्रिय मनुष्य है , उसी का नाम ब्राह्मण है ! इसीलिये आगे मनु स्मृति का छठे अध्याय का ९७ वां श्लोक उद्धृत करते हुए स्पष्ट कर दिया कि -चार प्रकार के आश्रम ब्राह्मण का ही धर्म है , इसके आगे राजधर्म सुनो (जिनका इन चार आश्रमों में अधिकार नहीं ) इस प्रकार दयानंद ने ब्राह्मण से अन्य वर्णों के मनुष्यों को सन्यास लेने से रोक लगाकर परोक्ष रूप में कट्टर जातिवाद को बढ़ावा देने का काम किया है ! १४ - सत्यार्थ प्रकाश , एकादश समुल्लास , पृष्ठ २८१ में आप लिखते हैं - //////उस तुम्हारे स्वर्ग से यही लोक अच्छा है जिस में धर्मशाला हैं, लोग दान देते हैं, इष्ट मित्र और जाति में खूब निमन्त्रण होते हैं, अच्छे-अच्छे वस्त्र मिलते हैं, तुम्हारे कहने प्रमाणे स्वर्ग में कुछ भी नहीं मिलता।////// वाह स्वामी जी ! आप को ये लोक इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि यहां लोग अपनी जाति में निंन्त्रण देते है ! , वाह ! कितना घोर जातिवाद आप में विद्यमान है ! १५ - सत्यार्थ प्रकाश , एकादश समुल्लास , पृष्ठ ३०८ में आप लिखते हैं -
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