cookie

Utilizamos cookies para mejorar tu experiencia de navegación. Al hacer clic en "Aceptar todo", aceptas el uso de cookies.

avatar

✍ धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

ॐ, धर्म ही जीवन है और स्वधर्म की खोज करने के लिए ही मानव के रूप में हम सब का जन्म हुआ है। जिस दिन आपको आपका धर्म मिल जाएगा उस दिन आपका मानव जन्म सफल हुआ तो आओ हम सब मिलकर समूह में स्वधर्म की खोज करें। ॐ शान्तिः शान्तिंः शान्तिंः

Mostrar más
Publicaciones publicitarias
5 157
Suscriptores
+1724 horas
+1377 días
+60730 días

Carga de datos en curso...

Tasa de crecimiento de suscriptores

Carga de datos en curso...

जानिये शरीर से जुड़े ज्योतिष के कुछ रोचक तथ्य ******* फलित ज्योतिष की भारत में अनेक विधियां प्रचलित हैं, उन्ही में से एक सामुद्रिक शास्त्र प्रसिद्ध है जिसके द्वारा शरीर की रचना, अंग लक्षण, वर्ण तिल आदि के आधार पर भविष्य वाणी की जाती है। 1- जिन लोगों के हाथ लम्बे होते हैं, वे अधिक कल्पनाशील एवं कर्मठ होते हैं। ऐसे लोग अपने परिवार या जाती से हटकर कार्य करने वाले होते हैं। अधिकतर सफल जीवन जीते हैं। 2- हंसते वक्त जिन जातक-जातिकाओं के गाल पर गड्ढे बनते हैं वे धनी होते हैं, लेकिन चालाक होते हैं एवं राजनीति करने में प्रवीण होते हैं। 3- जिस स्त्री के शरीर पर पुरुषों के समान अधिक बाल होते हैं या मूंछे आती हो, उसके जीवन में दाम्पत्य सुख कम होता है। 4- जिन लोगों के हाथ के अगूंठे के पीछे बाल होते हैं वे अधिक बुद्धिमान होते हैं। 5- दांतों के मध्य छिद्र हो तो ऐसे लोग बहुत बोलते हैं एवं कुटिल होते हैं। 6- लम्बी जीभ व्यक्ति के जीवन में सुखों की अधिकता दर्शाती है। जिन जातकों की जीभ नाक को छूती है, वे सत्य बोलने वाले होते हैं। 7- जिन लोगों की नाक तोते के समान होती हैं वे धनवान अवश्य बनते हैं। 8- जो लोग पलके अधिक झपकाते हैं वे प्राय: कम विश्वनीय होते हैं। 9- जो लोग बात करते समय अपने मुहं को ढकने का प्रयास करते हैं वे अधिकतर झूठ बोलने के आदि होते हैं। 10 पेट पर तिल हो तो व्यक्ति चटोरा होता है। ऐसे लोग खाने पीने के बडे शौकिन होते हैं। 11- जिनके माथे पर चंद्र, पुंडरीक, त्रिशूल या धनुष जैसा चिन्ह बना हो वे अधिक मान सम्मान प्राप्त करने वाले तथा ऐश्वर्य से युक्त जीवन जीते हैं। 12- जो व्यक्ति अपने अंगूठे को दबाकर रखते हैं या मुट्ठी बंद करते समय अगूंठा भी बंद होता हो उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है।
Mostrar todo...
👍 18
*आने वाले व्रत त्यौहार* 19 मई मोहिनी एकादशी 20 मई प्रदोष व्रत, 21 मई नरसिंघ जयंती, 22 मई श्रीछिन्नमस्तिका जयंती 23 मई बैशाख पूर्णिया, श्रीबुद्ध जयंती, बैशाख स्नान समाप्त, 24 मई नारद जयंती, इष्टि, 26 मई एकदन्त संकष्टी चतुर्थी
Mostrar todo...
👍 8🙏 2
*श्रद्धा का बल सबसे बड़ा बल होता है* , जनबल धनबल के सामने श्रधाबल का जब जागरण हो जाता है सारे बल उस बल के सामने निस्तेज नजर आने प्रारंभ हो जाते हैं जिस व्यक्ति के भीतर में श्रद्धा का बल जग गया मान लेना चाहिए वह व्यक्ति अपने आप ही वीर बजरंगबली हनुमान की तरह बलवान बन गया है हनुमान के पास में सबसे बड़ा जो बल था वह बल उस के श्रद्धा का ही बल था श्रद्धा के कारण ही वह राम के प्रिय बन सके शक्ति भक्ति दोनों का प्रतीक पुरुष कहलाते हैं हनुमान , हम भी हमारे जीवन में जब हनुमान जैसी श्रद्धा भक्ति का जागरण करना प्रारंभ करेंगे तब हमारे भीतर में बैठा हुआ हमारा राम है वह अपने आप ही जागृत होना प्रारंभ हो जाएगा ,राम हमारे को अपने आप ही नयी शक्ति प्रदान करना प्रारंभ कर देंगे इसलिए हम अपने आप को श्रद्धाबान बनाते हुए आगे बढ़ने का संकल्प करेंगे तब ही हमारा जीवन सार्थक दिशा की ओर अग्रसर होता हुआ नजर आएगा
Mostrar todo...
👍 7🔥 4
राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?” मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया” राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?” ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया” राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें” राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर उस के आश्चर्य की सीमा न रही ‘ ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?” ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं” श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते ब्राह्मण ने आगे कहाः ‘राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है” अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ? तुलसीदाज जी ने कहा हैः बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है 🪷जय श्री राम
Mostrar todo...
👍 10 3
कहानी का समय एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक न मिला ? इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली वे बड़े पहुँचे हुए संत थे उन्होंने कहाः “ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?” ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है” संतः “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता. ‘दूसरे में भी मेरा ही दिलबर ही है’ यह ज्ञान नहीं होता तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है” ब्राह्मण का चेहरा दुःख रहा था ब्राह्मण का चेहरा इन्कार की खबरें दे रहा था सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है” ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः ‘ओहोऽऽऽऽ…. वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है. तो कोई बघेरा है आकृति तो मनुष्य की है लेकिन संस्कार पशुओं के हैं मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’ घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ मुझे बड़ी भूख लगी है लेकिन तेरे हाथ का नहीं खाऊँगा फिर भी मैं तुझसे माँगता हूँ क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है” उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु आप भूखे हैं ? हे मेरे रब आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?” यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर ( रेज़गारी ) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हे हलवाई मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ” यह कहकर मोची भागा घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः “अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा” दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ किस मोची ने बनाई है यह जूती ?” मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है” मोची को बुलाया गया उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली राजा ने कहाः “जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं, पाँच सौ रूपयों वाली जूती है जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो” मोची बोलाः “राजा साहिब तनिक ठहरिये यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ” मोची जाकर विनयपूर्वक ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा साहब यह जूती इन्हीं की है” राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?” राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ यात्रा करने निकला हूँ”
Mostrar todo...
👍 8 1
भैरवनाथ के रहस्य एवं साधना भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। भैरव उत्पत्ति👉 उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है। लोक देवता👉 लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है। कई समाज के ये कुल देवता हैं और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है। यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान भैरव किसी के शरीर में नहीं आते। पालिया महाराज👉 सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बना रखे हैं दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है। ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं। उक्त स्थान पर मत्था टेकना मान्य नहीं है। भैरव मंदिर👉 भैरव का प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है। काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। काल भैरव👉 काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है। काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।। ॐ भैरवाय नम:।। बटुक भैरव👉 'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।' अर्थात्👉 ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। उक्त आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।। भैरव तंत्र(जिसे कुछ विद्वानजन विज्ञान भैरव तंत्र भी कहते हैं)👉 योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है। भैरव आराधना से शनि शांत👉 एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है। आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है। उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दांत और आंत साफ रखें। पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें। अपवि‍त्रता वर्जित है। भैरव चरित्र👉 भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।
Mostrar todo...
👍 5👏 1
उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है। श्री भैरव के आठ रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं- 1. असितांग भैरव, 2. चंड भैरव, 3. रूरू भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाल भैरव, 7. भीषण भैरव 8. संहार भैरव। क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं। दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (१०८ बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से ४१ दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी। भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में १२ से ३ बजे का माना जाता है। भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं। जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है। खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे। भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है। एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है। !! भैरव साधना !! मंत्र संग्रह पूर्व-पीठिका मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से !! पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से ! जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ !!
Mostrar todo...
तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं ! विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं !! जय प्रभु संहारक सुनन्द जय ! जय उन्नत हर उमानन्द जय !! भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय ! बैजनाथ श्री जगतनाथ जय !! महाभीम भीषण शरीर जय ! रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय !! अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय ! श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय !! निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय ! गहत अनाथन नाथ हाथ जय !! त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय ! क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय !! श्री वामन नकुलेश चण्ड जय ! कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय !! रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर ! चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर !! करि मद पान शम्भु गुणगावत ! चौंसठ योगिन संग नचावत !! करत कृपा जन पर बहु ढंगा ! काशी कोतवाल अड़बंगा !! देयं काल भैरव जब सोटा ! नसै पाप मोटा से मोटा !! जाकर निर्मल होय शरीरा ! मिटै सकल संकट भव पीरा !! श्री भैरव भूतों के राजा ! बाधा हरत करत शुभ काजा !! ऐलादी के दुःख निवारयो ! सदा कृपा करि काज सम्हारयो !! सुन्दरदास सहित अनुरागा ! श्री दुर्वासा निकट प्रयागा !! श्री भैरव जी की जय लेख्यो ! सकल कामना पूरण देख्यो !! !! दोहा !! जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ! कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार !! जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ! उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार !! !! आरती श्री भैरव जी की !! 〰〰〰〰〰〰〰〰 जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ! जय काली और गौरा देवी कृत सेवा !! जय !! तुम्हीं पाप उद्घारक दुःख सिन्धु तारक ! भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक !! जय !! वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ! महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी !! जय !! तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ! चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे !! जय !! तेल चटकि दधि मिश्रित भाषा वलि तेरी ! कृपा करिये भैरव करिए नहीं देरी !! जय !! पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु जमकावत ! बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत !! जय !! बटकुनाथ की आरती जो कोई नर गावे ! कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे !! जय !! !! साधना यंत्र !! 〰〰〰〰〰 श्री बटुक भैरव का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरव जी के चित्र के समीप रखें ! दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें ! चित्र या यंत्र के सामने माला, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं !! !! साधना का समय !! 〰〰〰〰〰〰 इस साधना को किसी भी मंगलवार या मंगल विशेष भैरवाष्टमी के दिन आरम्भ करना चाहिए शाम ७ से १० बजे के बीच नित्य ४१ दिन करने से अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है !! !! साधना की चेतावनी !! 〰〰〰〰〰〰〰 साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें !! सहवास से दूर रहें ! वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें !! यह साधना किसी गुरु से अच्छे से जानकर ही करें !! !! साधना नियम व सावधानी !! 〰〰〰〰〰〰〰〰〰 १ :- यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें !! २ :- यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है !! ३ :- रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है !! ४ :- भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें !! ५ :- भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए !! ६ :- साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें !! ७ :- हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन- साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें।
Mostrar todo...
👍 5
अब दोनो हाथ जोड़कर ध्यान करे !! (ध्यान मंत्र का उच्चारण करें !! जिसका हिन्दी में सरलार्थ नीचे दिया गया है ! वैसा ही आप भाव करें ) ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम् ! अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम् !! अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम् ! सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम् !! मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः ! भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा !! हिन्दी भावार्थ :- श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार (सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं ! उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं ! उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं ! उनके तीन नेत्र हैं ! चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण - माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है ! वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं ! आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें। मानसोपचार पुजन के मंत्रो को मन मे बोलना है ! !! मानसोपचार पूजन !! 〰〰〰〰〰〰〰 लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: ! हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: ! यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: ! रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: ! वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: ! सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !! !! मंत्र !! 〰〰 ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम: !! मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का एक पाठ अवश्य करे !! !! श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्त्रोत् !! 〰〰〰〰〰〰〰〰〰 !! श्री मार्कण्डेय उवाच !! भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम ! पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः !! इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ! तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् !! तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !! !! श्री नन्दिकेश्वर उवाच !! इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक ! स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये !! सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ! दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् !! अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ! महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् !! महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ! न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा !! शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ! महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च !! निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ! स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः !! श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् !! !! विनियोग !! ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः !! !! ध्यान !! मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ! दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः !! भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ! स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः !! !! स्त्रोत् -पाठ !! 〰〰〰〰〰 ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने ! नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने !! रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ! नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ! नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः !! नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ! नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे !! अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ! अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः !! नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ! श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः !! दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ! नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः !!
Mostrar todo...
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ! अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ! नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ! नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः !! नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ! नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः !! नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ! गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे !! नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ! नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः !! दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ! सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने !! रुद्र- लोकेश- पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ! नमोऽजामल- बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते !! नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ! उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः !! नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ! नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने !! नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ! धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः !! नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ! नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे !! नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ! नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः !! नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ! नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः !! नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ! नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने !! नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ! नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः !! द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ! नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः !! पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ! नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने !! नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ! नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे !! स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ! नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने !! नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ! नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे !! चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ! कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने !! भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ! नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः !! स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव ! पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल ! श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ! प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा !! !! फल-श्रुति !! 〰〰〰〰 श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ! मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् !! यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ! लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् !! चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ! स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः !! संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ! स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ! स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ! सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !! लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ! न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव !! म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ! अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः !! अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ! दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण- कारकः !! य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ! महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं !! !! श्री भैरव चालीसा !! !! दोहा !! 〰〰〰〰〰〰〰 श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ! चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ !! श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ! श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल !! जय जय श्री काली के लाला ! जयति जयति काशी- कुतवाला !! जयति बटुक भैरव जय हारी ! जयति काल भैरव बलकारी !! जयति सर्व भैरव विख्याता ! जयति नाथ भैरव सुखदाता !! भैरव रुप कियो शिव धारण ! भव के भार उतारण कारण !! भैरव रव सुन है भय दूरी ! सब विधि होय कामना पूरी !! शेष महेश आदि गुण गायो ! काशी-कोतवाल कहलायो !! जटाजूट सिर चन्द्र विराजत ! बाला, मुकुट, बिजायठ साजत !! कटि करधनी घुंघरु बाजत ! दर्शन करत सकल भय भाजत !! जीवन दान दास को दीन्हो ! कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो !! वसि रसना बनि सारद-काली ! दीन्यो वर राख्यो मम लाली !! धन्य धन्य भैरव भय भंजन ! जय मनरंजन खल दल भंजन !! कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा ! कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा !! जो भैरव निर्भय गुण गावत ! अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत !! रुप विशाल कठिन दुख मोचन ! क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन !! अगणित भूत प्रेत संग डोलत ! बं बं बं शिव बं बं बोतल !! रुद्रकाय काली के लाला ! महा कालहू के हो काला !! बटुक नाथ हो काल गंभीरा ! श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा !! करत तीनहू रुप प्रकाशा ! भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा !! रत्न जड़ित कंचन सिंहासन ! व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन !!
Mostrar todo...
1
Elige un Plan Diferente

Tu plan actual sólo permite el análisis de 5 canales. Para obtener más, elige otro plan.