FUTURE SOLUTION Mathematics & Reasoning By-Santosh kumar
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BPSC Music teacher के लिए -रागों को रागांग राग कहते है। इसी प्रकार से शिवमत भैरव, बंगाल भैरव, अहीर भैरव, आदि कई राग प्रचार में है।6
रागांग ही राग उत्पत्ति तथा राग वर्गीकरण का वैज्ञानिक तथा सैद्धान्तिक आधार है थाट नहीं किसी एक राग अथवा एकाधिक रागों के एक अथवा एकाधिक रागांग ही राग उत्पत्ति तथा राग वर्गीकरण का वैज्ञानिक तथा सैद्धान्तिक सहज सरल बोधगम्य आधार, है, जिसे जाने बिना कोई अच्छा विद्यार्थी, अच्छा शिक्षक अथवा अच्छा कलाकार कदापि नहीं बन सकता। जिन्हें किसी एक अथवा एकाधिक रागों के अंग अथवा अंगो की जानकारी जितनी अधिक होगी वे उतनी ही आत्मविश्वास के साथ राग गायन वादन प्रस्तुत कर सकते है। उन्हें यह ज्ञान होगा कि किसी मौलिक राग का मुख्य अंग कहाँ-कहाँ कैसे-कैसे प्रयोग करना है। मैलिक तथा मिश्र जाति के इन मुख्य अंगों के द्वारा ही हर कोई राग अपनी पहचान तथा प्रतिष्ठा स्थापित करता है, जिसे कहते है फलाना-फलाना अंग अर्थात् रागों के नाम से जैसे बिलावल अंग, भैरव अंग, तोड़ी अंग, सारंग अंग, मल्हार अंग आदि-आदि।
डाॅ0 जतिन्द्र सिंह खन्ना के अनुसार ‘’रागों को एक अंग हो सकता है किन्तु कुछ रागों का अंग एक प्रधान अंग के रूप में स्थापित हो चुका है और इस राग के साथ नाम तथा स्वरों की दृष्टि से कुद अन्य राग भी जुड़ गये है।’’ जैसे - एकराग मियाँ की तोड़ी है। इसके प्रधान अंग को तोड़ी अंग कहते है। यह राग की चलन तथा स्वर विस्तार से सम्बन्धित हैं। इसका प्रयोग जब भी कहीं होगा तो उसमें तोड़ी शब्द को प्रयोग होगा तोड़ी अंग लगाया जाएगा। जैसे गुर्जरी तोड़ी शब्द भी आया है तथा तोड़ी के स्वर भी सम्मिलित है। इसी प्रकार विलासखानी तोड़ी में स्वर तो भैरवी के है परन्तु इसकी चलन तोड़ी के समान है। इसलिए यह तोड़ी का प्रकार है।7
राग गायन-वादन के लिए हमें जानने की आवश्यकता है रागांगो की थाट की नहीं। तोड़ी अंग के बिना, तोड़ी अंग के राग भूपालतोड़ी, गुर्जरी तोड़ी, वैरागी तोड़ी आदि राग, तोड़ी थाट से, सारंग अंग के बिना, सारंग अंग के राग वृंदावनी, मधमाद, शुद्ध सारंग, सामंत सारंग, आदि राग काफी थाट से कान्हड़ा अंग के बिना, कान्हड़ा अंग के राग दरबारी, आड़ाना, नायकी, सुहा आदि राग आसावरी थाट से गाया बजाया जाना बिलकुल सम्भव नही। जौन पुर के सुल्तान हुसैन शर्की भी रागांग पद्धति को मानने वालों मे से थे। उन्होनें श्याम के बारह प्रकार बतायें है जिनका उल्लेख फकिरूल्ला के राग दर्पण के दूसरे अध्याय में मिलता हैं।8
अधिकतर या सभी विद्वानों की रागांग के बारे में राय जानकर यही पता चलता है कि थाट राग वर्गीकरण एक गणितीय वर्गीकरण है तथा संगीत को गणित की तरह बांटकर आसानी से वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। थाट अपने आप में जड़ है तथा उसे गाया बजाया नहीं जा सकता और राग अपने कुछ नियमों के अंतर्गत रहकर अपने अंगों के साथ सदा क्रियाशील है। जिस कारण एक ही राग हर किसी कलाकार द्वारा नये-नये अंदाज में अति सुन्दर रूप मंे पेश किये जाते है और उसका यह सौन्दर्य उस राग के मुख्य अंगों पर निर्भर करता है।
रागांग वर्गीकरण पद्धति कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है, राग इससे जुड़ाव भी महसूस करते है जबकि थाट एवं राग में कोई भी साम्यता एवं जुड़ाव महसूस नहीं होता बल्कि लगता है कि थाट को जबरदस्ती रागों के साथ जोड़ा गया है। थाट वर्गीकरण पद्धति प्रचारित होने के कारण भी लोग रागांग वर्गीकरण पद्धतिको भूल नहीं पाये हैं। यह इस पद्धति के उपयोगी होने का ही प्रमाण है।
संदर्भ ग्रन्थ
1- भारतीय संगीत शास्त्र पृष्ठ 291, 292 तुलसी राम देवांगन।
2- संगीत रत्नाकर (भाग-2) पृष्ठ 15, कल्लिनाथ
3- राग दर्पण (द्वितीय अध्याय) पृष्ठ 62,, फकिरूल्ला
4- ैंदहममज त्ंजंदंांत व िैींतंदह क्मअए डनदेीपतंउए डंदवींत स्ंस च्नइसपेीमतेण्
5- भारतीय संगीत शास्त्र- तुलसी राम देवांगन
6- भैरव के प्रकार प्रथम संस्करण 1991 जय सुखलाल त्रिभुवन शाह ‘विनय’
7- संगीत की पारिभाषिक शब्दावली पृष्ठ 12 डा0जतिन्द्र सिंह खन्ना
8- राग दर्पण (द्वितीय अध्याय) पृष्ठ 78, फकिरूल्ला
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