Springboard Family (Rajendra Choudhary)
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Q.भारत में संविधान के ' मूल ढांचे' का सिद्धांत कैसे विकसित हुआ ? (100 शब्द)
Ans.भारतीय संविधान में 'मूल ढांचे' के सिद्धांत का विकास भारतीय न्यायपालिका एवं संसद के मध्य लंबे संघर्ष के बाद न्यायपालिका के ऐतिहासिक निर्णय से हुआ है 👇👇
1.शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ वाद, 1951 तथा सज्जन सिंह बनाम राजस्थान वाद,1965 में संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इसने संविधान के भाग-3 मैं निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, अत: इसे अविधिमान्य घोषित किया जाना चाहिये। उपर्युक्त वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति है।
2.गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद, 1967- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में दिये गए अपने निर्णय को पलट दिया तथा यह माना कि संसद के पास संविधान के भाग-3 में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है I
3.केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद, 1973- इस वाद में सर्वोच न्यायलय ने ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि संसद संविधान के मूल ढांचे को बदल नहीं सकती है। इसमें यह निर्णय दिया गया कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति निरंकुश नहीं है अर्थात् संसद संविधान के मूल ढांचे को बदल नहीं सकती है क्योंकि संसद के पास संविधान में संशोधन की शक्ति है, न कि संविधान को फिर से लिखने की।
4.इंदिरा नेहरु गांधी बनाम राज नारायण वाद, 1975 और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ वाद,1980 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'मूलढांचे’ के सिद्धांत का उपयोग करते हुए क्रमश: 39वें संविधान संशोधन और 42वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर दिया
इस प्रकार मूल ढांचा हमारे संविधान का सुरक्षा कवच है जिसे बदला नहीं जा सकता I
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Q.भारत में संविधान के ' मूल ढांचे' का सिद्धांत कैसे विकसित हुआ ? (100 शब्द)
Ans.भारतीय संविधान में 'मूल ढांचे' के सिद्धांत का विकास भारतीय न्यायपालिका एवं संसद के मध्य लंबे संघर्ष के बाद न्यायपालिका के ऐतिहासिक निर्णय से हुआ है I
1.शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ वाद, 1951 तथा सज्जन सिंह बनाम राजस्थान वाद,1965 में संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इसने संविधान के भाग-3 मैं निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, अत: इसे अविधिमान्य घोषित किया जाना चाहिये। उपर्युक्त वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति है।
2.गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद, 1967- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में दिये गए अपने निर्णय को पलट दिया तथा यह माना कि संसद के पास संविधान के भाग-3 में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है I
3.केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद, 1973- इस वाद में सर्वोच न्यायलय ने ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि संसद संविधान के मूल ढांचे को बदल नहीं सकती है। इसमें यह निर्णय दिया गया कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति निरंकुश नहीं है अर्थात् संसद संविधान के मूल ढांचे को बदल नहीं सकती है क्योंकि संसद के पास संविधान में संशोधन की शक्ति है, न कि संविधान को फिर से लिखने की।
4.इंदिरा नेहरु गांधी बनाम राज नारायण वाद, 1975 और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ वाद,1980 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'मूलढांचे’ के सिद्धांत का उपयोग करते हुए क्रमश: 39वें संविधान संशोधन और 42वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर दिया I
इस प्रकार मूल ढांचा हमारे संविधान का सुरक्षा कवच है जिसे बदला नहीं जा सकता I
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सहजरासर गांव की रोही में 15 अप्रैल को जमीन धंसने से 110 फीट गहरा और 200 फीट व्यास का गड्ढा बन गया...
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मज़ा तो तब है कि हम हार के भी हंसते रहें,
हमेशा जीत ही जाना कमाल थोड़ी है!!
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RPF : अन्तिम तिथि आज
Railway RPF Constable & SI भर्ती का 4660 पदों पर नोटिफिकेशन जारी
Constable : 4208 पद (योग्यता - 10th)
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परिणाम मत सोचिए, अपना सर्वश्रेष्ठ परफॉर्म करिए, सब अच्छा ही होगा
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विनम्र निवेदन भाई के इंतजार में एक बहन का .....
Abhishek Dhaka
Village - juliyasar (sikar )
दिनाक 3 मई 2024 से घर से बिना बताए निकल गए जो अभी तक वापस नहीं लोटे है
अगर अपने आस पास कहीं दिखे तो plz जरूर इन नंबर पर सूचना दे
9413369555
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