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आज कल सोशल मीडिया का दुरुपयोग बढ़ रहा है।इंस्टाग्राम इस मामले में आग में घी डाल रहा है।हालांकि हर सोशल मीडिया प्लाटफॉर्म की अपनी अहमियत है पर यहां पश्चिमी राजस्थान के अर्धशिक्षित लोगों द्वारा इनका उपयोग ठीक वैसे ही किया जा रहा है जैसे "गेली के हाथ में अटेरणी पड़ी हो"।यहां इंस्टाग्राम रील्स व मैसेंजर से लोग संदेशों के आदान प्रदान व क्षणिक आकर्षण को प्रेम संबंध मान बैठते है।अब कल परसों ही न्यूज़ में देखा कि इंस्टाग्राम पर उपजे प्यार से एक 5 बच्चों की मां भी किसी से प्यार कर बैठी।आज वह पति व 5 बच्चों को छोड़कर चली गई।कहते है कि माता कुमाता नहीं होती पर ऐसे उदाहरण उस कहावत को झुठलाते दिख रहे हैं।इससे समाज में बहुत गलत मैसेज जा रहा है पर अफ़सोस!कि उन्हें समझाएं कौन?यहां इन मामलों में अर्धशिक्षित लोग दैहिक आकर्षण को प्यार मान बैठते है जो कि बाद में पछताते हैं।उपरोक्त वाकये में उन्हें यह समझ नहीं आया कि सच्चा प्यार वो होता है जहां इन बच्चों को वात्सल्य मिलता,बच्चों को माता-पिता का अपनत्व भाव व मातृत्व सुख मिलता व बच्चों का लाड़-प्यार मां को मिलता तो वह प्यार कहलाता न कि यह इंस्टाग्राम पर उपजा क्षणिक दैहिक आकर्षण यह मात्र वासना है।इस प्रकार के अनेकों उदाहरण आज सामने आ रहें जो कि प्रेम व प्यार जैसे पवित्र शब्दों व रिश्तों को ही दिग्भर्मित कर रहे है।प्यार व प्रेम वह होता है जो मां-बाप व बच्चों के बीच अपनत्व,वात्सल्य का भाव पैदा करता हों या बच्चों द्वारा माता-पिता के प्रति एक अपनापन व आदर प्रकट होता हो।एक तरफ जहां पति-पत्नी के मध्य रिश्तों की कद्र होती है एक दूसरे की केयर करने का भाव होता है जिसे प्यार की संज्ञा दी जाती है जो कि होना चाहिए।जबकि आज जो परिवेश में होता दिख रहा है वह वास्तव में एक जिम्मेदार नागरिक के नाते किसी को भी झकझोरने के लिए पर्याप्त है।
आज जरूरत इस बात की है कि आज सरकार को भी एक कानून लाना चाहिए कि चाहे मां हो या बाप बच्चों को छोड़कर वे नये रिश्ते स्थापित करने से पहले उन बच्चों को समुचित देखभाल व मां बाप का प्यार पाने का जो नैसर्गिक अधिकार है उससे वंचित नहीं किया जा सकता।बाल अधिकारों की जहां बात होती है वहां यह बिंदु भी जोड़ा जाना चाहिए कि बच्चों को माता-पिता के वात्सल्य से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह बालविकास का महत्वपूर्ण आयाम है।जब कभी माता या पिता में से किसी एक सोशल मीडिया के दुरुपयोग वश या अन्य कारण से अन्यत्र विवाह करने चल पड़ते है तो न्यायालय को उस विवाह को मान्यता ही नहीं देनी चाहिए।प्रार्थी की अर्जी इस दलील के साथ खारिज कर देनी चाहिए कि आपके पहले जो बच्चे हैं उन्हें माता-पिता का वात्सल्य पाने का नैसर्गिक अधिकार है उससे वंचित नहीं किया जा सकता।उम्मीद है पुलिस व न्यायालय इस संदर्भ में सोचेंगे ताकि भविष्य में इस प्रकार के मामले कम हों।
#Copid
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Discuss wale group me bas important baat hi karna ya koi doubts hai to okk good morning good night ye wo nahi okk
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Pawan , Hi and welcome to "MV CLASSES NOTES"! Thank you for being a part of our community