Oreo Samajis here + countering ancient dharm avaidic channel + other Oreo channels
(आर्य ) आजादी वालें 😉😉 हम वही Oreo samaji है Check #expose
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मूर्तिपूजा के प्रमाण
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देखो आर्य समाजियों को
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Repost from श्रीवैदिक स्मार्त्त
///////-(प्रश्न) जातिभेद ईश्वरकृत है वा मनुष्यकृत?
(उत्तर) ईश्वरकृत और मनुष्यकृत भी जातिभेद है।
(प्रश्न) कौन से ईश्वरकृत और कौन से मनुष्यकृत?
(उत्तर) मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष, जलजन्तु आदि जातियां परमेश्वरकृत हैं। जैसे पशुओं में गौ, अश्व, हस्ति आदि जातियां, वृक्षों में पीपल, वट, आम्र आदि; पक्षियों में हंस, काक, वकादि; जलजन्तुओं में मत्स्य, मकरादि जातिभेद हैं । वैसे मनुष्यों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अन्त्यज जातिभेद हैं; ईश्वरकृत हैं परन्तु
मनुष्यों में ब्राह्मणादि को सामान्य जाति में नहीं किन्तु सामान्य विशेषात्मक जाति में गिनते हैं। जैसे पूर्व वर्णाश्रमव्यवस्था में लिख आये वैसे ही गुण, कर्म, स्वभाव से वर्णव्यवस्था माननी अवश्य हैं। /////
वाह स्वामी जी ! आप ने तो ब्राह्मण आदि को यहाँ पर न केवल जाति बोल दिया है अपितु उन्हें ईश्वर कृत तक बता डाला है , और फिर आप कह रहे हैं कि पर मैं गुण कर्म अनुसार मानता हूँ , कितनी चालाकी से आपने जातिवाद को स्थापित किया है , वाह ! धन्य है आपकी चतुराई ! पहले आपने सिद्धांत बनाया कि ब्राह्मण आदि जातियां ईश्वर कृत जातियां हैं , फिर उसके बाद आप कह रहे हैं कि मैं गुण कर्म से मानता हूँ ! इससे स्पष्ट है कि आप मानते ही नही हो कि जाति व्यवस्था नहीं होती , यदि आप मानते होते तो ब्राह्मण आदि को जातिभेद बोलकर उसे ईश्वरकृत कभी न कहते ! धन्य है आपकी जातिवादी मानसिकता !
१६ - सत्यार्थ प्रकाश , एकादश समुल्लास , पृष्ठ २२९ में आप लिखते हैं -,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
/////////////(प्रश्न) हम तो ब्राह्मण और साधु हैं क्योंकि हमारा पिता ब्राह्मण और माता ब्राह्मणी तथा हम अमुक साधु के चेले हैं।
(उत्तर) यह सत्य है परन्तु सुनो भाई! माँ बाप ब्राह्मण होने से और किसी साधु के शिष्य होने पर ब्राह्मण वा साधु नहीं हो सकते किन्तु ब्राह्मण और साधु अपने उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव से होते हैं जो कि परोपकारी हों। //////////
देखो स्वामी दयानन्द को पहले प्रश्न के रूप में जातिवादी पूर्वपक्ष बनाया कि /////हम तो ब्राह्मण और साधु हैं क्योंकि हमारा पिता ब्राह्मण और माता ब्राह्मणी तथा हम अमुक साधु के चेले हैं/// फिर उत्तर पक्ष में इस जातिवाद को समर्थन दिया कि तुम्हारा यह सत्य कथन भले ही सत्य है किन्तु ब्राह्मण और साधु के लिए तुमको अपने गुण कर्म आदि भी ठीक करने पड़ेंगे ! अर्थात् स्पष्ट सिद्ध है कि यथार्थता ये है कि स्वामी दयानन्द स्वयं जातिवादी थे , बस इतना था कि वे चार वर्णों में उनके वर्ण के अनुरूप कर्म भी देखना चाहते थे , इसीलिये उन्होंने कर्मणा वर्णवाद को प्रोत्साहन दिया ।
अब आर्यसमाजी विचारक या तो इस वक्तव्य का खण्डन करें अथवा स्वयं जन्मना जातिवाद व जात्यनुरूप कर्मवाद को स्वीकार करें ।
Credit :- सन्मार्ग ji
।। जय श्री राम ।।
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