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🎁राष्ट्रीय आय में वृद्धि - 🎉पूंजी निर्माण के अलावा राजकोषीय नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है। 🎉यद्यपि राष्ट्रीय आय वृद्धि और राजकोषीय नीति का केाई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है तथा राजकोषीय नीति परोक्ष रूप से, राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए सहायक सिद्ध हो सकती है। 🎉इस दृष्टि से राजकोषीय नीति के अन्तर्गत सदैव इस बात का प्रयत्न किया जाना चाहिए कि- 🖊करारापेण द्वारा प्राप्त बचतो का तत्काल विनियागे किया जाएगा 🖊सावर्ज निक व्यय आरै सावर्ज निक ऋणों की अधिकांश मात्रा नव-निमार्ण व विकास कायोर्ं की ओर गतिशील की जाए, 🖊देश में निजी उद्यमकर्ताओं को कर छूट द्वारा अथवा वित्त्ाीय सहायता प्रदान करके, विनियोग करने के लिए प्रेरित किया जाए। 🖊यह ठीक है कि अल्प-विकसित देशों में नव-प्रवर्तन और उद्यमियों का अभाव होता है। 🖊परन्तु प्रो. स्पैंगलर का मत है कि- यह नीति ‘‘ऐसे बहुत से साहसियों की कमी को पूरा कर सकती है।’’ यदि राजकोषीय नीति का निर्धारण उपर्युक्त उपायों की दृष्टि में रखकर किया जाए तो निश्चित है कि, 🖊इसमें विनियोजन कार्य को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
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🎁पूंजी निर्माण - 🎉अल्प विकसित देशों में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय के कम होने के कारण बचतें बहुत कम होती हैं जिसके फलस्वरूप विनियोग हेतु आवश्यक पूंजी का अभाव बना रहता है। 🎉निम्न आय, अल्प बचतें, कम विनियोग और निम्न उत्पादकता के कारण निध्र्मानता के दुष्चक्र (Vicious Circle of Poverty) जन्म लेने लगते है, जिनको तोड़ना राजकोषीय नीति का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। 🎉चूंकि इन देशों में आय के स्तर को देखते हुए, उपभोग की प्रवृित्त (Propensity to Consume) अधिक होती है. 🎉इसलिए राजकोषीय नीति के अन्तर्गत करारोपण द्वारा चालू उपभोग को कम करके, बचत में वृद्धि करने के प्रयत्न किए जाते हैं, ताकि पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक धनराशि प्राप्त हो सके। 🎉प्रो. रागनर नर्कसे का मत है कि-’’अल्प-विकसित देशों मे करारोपण नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में उसी अनुपात में वृद्धि करना है जो पूंजी निर्माण में लगाया जाता है।’’ 🎉यदि अल्प-विकसित देशों में अनावश्यक उपभोग पर करारोपण द्वारा वांछित रोक न लगायी जाए तो इसके कुछ घातक परिणाम हो सकते है. 🎉जैसे- देश में पूंजी निर्माण का कार्य या तो अवरुद्ध बना रहेगा अथवा अत्यन्त मन्द गति से होगा 🎉आर्थिक विकास के फलस्वरूप होने वाली आय वृद्धि पूर्णतया उपभोग कर ली जायेगी 🎉देश की मुद्रा स्फीतिक दशाएँ उत्पन्न होने लगेंगी।
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🎁राजकोषीय नीति के उद्देश्य 🎉किसी भी देश की राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य सैद्धान्तिक रूप से, क्रियात्मक वित्त प्रबन्धन (Functional Finance Managemnat) तथा कार्यशील वित्त प्रबन्धन की व्यवस्था करना है। 🎉दूसरे शब्दों में आर्थिक विकास के लिए आवश्यक एवं पर्याप्त मात्रा में धन की व्यवस्था करना राजकोषीय नीति का मुख्य कार्य है। 🎉यद्यपि राजकोषीय नीति के उद्देश्य किसी राष्ट्र विकास के लिए उसकी परिस्थितियों, विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं और विकास की अवस्था के आधार पर निर्धारित किये जाते है. 🎉फिर भी सामान्य दृष्टि से अल्प-विकसित एवं विकासशील देशों की राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित कहे जा सकते हैं -
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🎁राजकोषीय नीति 🎉राजकोषीय नीति के अभिप्राय, साधारणतया, सरकार की आय, व्यय तथा ऋण से सम्बन्धित नीतियों से लगाया जाता है। 🎉प्रो0 आर्थर स्मिथीज ने राजकोषीय नीति को परिभाषित करते हुए लिखा है कि- ‘‘राजकोषीय नीति वह नीति है जिसमें सरकार अपने व्यय तथा आगम के कार्यक्रम को राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार पर वांछित प्रभाव डालने और अवांछित प्रभावों को रोकने के लिए प्रयुक्त करती है। 🎉इस सम्बन्ध में श्रीमती हिक्स (Mrs. Hicks) का कहना है कि ‘‘राजकोषीय नीति का सम्बन्ध उस पद्धति से है जिसमें लोक-वित्त के विभिन्न अंग अपने प्राथमिक कत्त्व्यों को पूरा करने के लिए सामूहिक रूप से आर्थिक नीति के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं।’’ 🎉उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार, अर्थव्यवस्था में सर्वोच्च उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राजकोषीय नीति व्यय, ऋण, कर, आय, हीनार्थ प्रबन्धन आदि की समुचित व्यवस्था बनाये रखती है, जैसे-आर्थिक विकास, कीमत में स्थिरता, रोजगार, करारोपण, सार्वजनिक आय-व्यय, सार्वजनिक ऋण आदि। इन सबकी व्यवस्था राजकोषीय नीति में की जाती है। 🎉राजकोषीय नीति के आधार पर सरकार करारोपण करती है। वह यह देखती है कि देश में लोगों की करदान क्षमता बढ़ रही है अथवा घट रही है। 🎉इन सब बातों का अनुमान लगाकर ही सरकार करों का निर्धारण करती है। व्यय नीति में भी वे निर्णय शामिल किये जाते हैं जिनका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। 🎉ऋण नीति का सम्बन्ध व्यक्तियों के ऋणों के माध्यम से क्रय शक्ति को प्राप्त करने से होता है। सरकारी ऋण-प्रबन्ध नीति का सम्बन्ध ब्याज चुकाने तथा ऋणों का भुगतान करने से होता है। 🎉राजकोषीय नीति आय, व्यय व ऋण के द्वारा सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करती है। स्मरण रहे, राजकोषीय नीति और वित्त्ाीय नीति में अन्तर होता है। 🎉राजकोषीय नीति के अन्तर्गत मुख्य रूप से चार बातों को सम्मिलित किया जाता है - 🔥सरकार की करारोपण नीति (Taxation Policy), 🔥सरकार की व्यय नीति (Expenditure Policy), 🔥सरकार की ऋण नीति (Public Debt Policy), 🔥सरकार की बजट नीति (Budgetary Policy),
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🎁बारहवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 तक चलनी थी। 🎉परन्तु 2014 में योजना आयोग को बंद करके 2015 से नीति आयोग शुरू किया गया। 🎉प्राथमिकता – तीव्रतम एवं समावेशी विकास।
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🎁ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 2007 से 31 मार्च 2012 तक चली। 🎉प्राथमिकता – तीव्रतम एवं समावेशी विकास। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 9% 💎प्राप्ति 7.9% 🎉सबसे उच्चतम विकास दर इसी पंचवर्षीय योजना में प्राप्त की गयी। 🎉प्रमुख कार्य – 💎आम आदमी बीमा योजना। 💎राजीव आवासीय योजना। 💎प्रधान मंत्री आदर्श ग्राम योजना।
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🎁दसवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 2002 से 31 मार्च 2007 तक चली। 🎉प्राथमिकता – गरीबी को समाप्त करना एवं अगले 2 वर्ष में प्रति व्यक्ति आय को दुगना करना। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 8% 💎प्राप्ति 7.7%
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🎁नौवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1997 से 31 मार्च 2002 तक चली। 🎉प्राथमिकता – मानव विकास के साथ न्यायपूर्ण 🎉वितरण एवं समानता पर बल दिया गया। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 6.5% 💎प्राप्ति 5.5% 🎉यह योजना अंतर्राष्ट्रीय मंदी के कारण असफल रही।
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🎁आठवीं पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1992 से 31 मार्च 1997 तक चली थी। 🎉योजना आयोग के अध्यक्ष पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव थे। 🎉जॉन डब्ल्यू मिलर मॉडल पर आधारित थी। 🎉प्राथमिकता – रोजगार वृद्धि आधुनिकरण एवं आत्मनिर्भरता। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 5.6% 💎प्राप्ति 6.8% 🎉प्रधानमंत्री रोजगार योजना की शुरुआत इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान हुयी। 🎉आठवी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत ही LPG Reforms (Liberalisation, Privatisation and Globalisation) आये गये थे।
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🎁सातवी पंचवर्षीय योजना 🎉1 अप्रैल 1985 से 31 मार्च 1990 तक चली। 🎉प्राथमिकता – रोजगार, शिक्षा और जन स्वास्थ्य पर बल दिया गया। 🎉“भोजन, काम और उत्पादन” का नारा इसी योजना में दिया गया। 🎉विकास दर- 💎लक्ष्य 5% 💎प्राप्ति 6% 🎉“गरीबी की माप” सबसे पहले इसी योजना में लकड़वाल समिति द्वारा हुयी थी। 💎जवाहर रोजगार योजना भी इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू करी गयी। 💣योजना अवकाश (तृतीय) (1990-1992) 🎉वर्ष 1990 से 1992 तक भारत गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था। 🎉इस समय अवधि के दौरान पंचवर्षीय योजनाओं को नहीं बनाया गया था। 🎉इस समय काल को तृतीय योजना अवकाश के नाम से जाना जाता है।
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