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Ancient India | प्राचीन भारत

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सूर्य देव को अर्घ्य वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय लाभ 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा है, परन्तु किसी ने यह जानने का प्रयास किया की क्यूँ दिया जाता है सूर्य को जल? और क्या प्रभाव होता है इससे मानव शरीर पर? पूरी जानकारी के लिए कृपया अंत तक पढ़े, थोडा समय लग सकता है, परन्तु जानकारी महत्वपूर्ण है। सूर्य देव अलग अलग रंग अलग अलग आवर्तियाँ उत्पन्न करते हैं, अंत में इसका उल्लेख करूँगा, मानव शरीर रासायनिक तत्वों का बना है, रंग एक रासायनिक मिश्रण है। जिस अंग में जिस प्रकार के रंग की अधिकता होती है शरीर का रंग उसी तरह का होता है, जैसे त्वचा का रंग गेहुंआ, केश का रंग काला और नेत्रों के गोलक का रंग सफेद होता है। शरीर में रंग विशेष के घटने-बढने से रोग के लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे खून की कमी होना शरीर में लाल रंग की कमी का लक्षण है। सूर्य स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का भण्डार है| मनुष्य सूर्य के जितने अधिक सम्पर्क में रहेगा उतना ही अधिक स्वस्थ रहेगा। जो लोग अपने घर को चारों तरफ से खिडकियों से बन्द करके रखते हैं और सूर्य के प्रकाश को घर में घुसने नहीं देते वे लोग सदा रोगी बने रहते हैं। जहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं, वहां रोग के कीटाणु स्वत: मर जाते हैं और रोगों का जन्म ही नहीं हो पाता। सूर्य अपनी किरणों द्वारा अनेक प्रकार के आवश्यक तत्वों की वर्षा करता है और उन तत्वों को शरीर में ग्रहण करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं। सूर्य पृथ्वी पर स्थित रोगाणुओं 'कृमियों' को नष्ट करके प्रतिदिन रश्मियों का सेवन करने वाले व्यक्ति को दीर्घायु भी प्रदान करता है। सूर्य की रोग नाशक शक्ति के बारे में अथर्ववेद के एक मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि सूर्य औषधि बनाता है, विश्व में प्राण रूप है तथा अपनी रश्मियों द्वारा जीवों का स्वास्थ्य ठीक रखता है। अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की लाल किरणों के प्रकाश में खुले शरीर बैठने से हृदय रोगों तथा पीलिया के रोग में लाभ होता है।प्राकृतिक चिकित्सा में आन्तरिक रोगों को ठीक करने के लिए भी नंगे बदन सूर्य स्नान कराया जाता है। आजकल जो बच्चे पैदा होते ही पीलिया रोग के शिकार हो जाते हैं उन्हें सूर्योदय के समय सूर्य किरणों में लिटाया जाता है जिससे अल्ट्रा वायलेट किरणों के सम्पर्क में आने से उनके शरीर के पिगमेन्ट सेल्स पर रासायनिक प्रतिक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। और बीमारी में लाभ होता है, डाक्टर भी नर्सरी में कृत्रिम अल्ट्रावायलेट किरणों की व्यवस्था लैम्प आदि जला कर भी करते हैं। सूर्य को कभी हल्दी या अन्य रंग डाल कर जल दिया जाता है, जल को हमेशा अपने सर के ऊपर से सूर्य और अपने हिर्दय के बीच से छोड़ना चाहिए। ध्यान रहे की सुर्य चिकित्सा दिखता तो आसान है पर विशेषज्ञ से सलाह लिये बिना ना ही शुरू करें। जैसा की हम जानते हैं कि सूर्य की रोशनी में सात रंग शामिल हैं .. और इन सब रंगो के अपने अपने गुण और लाभ है ... 1. लाल रंग👉 यह ज्वार, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभ कारक है। 2. हरा रंग👉 यह स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है। 3. पीला रंग👉 चोट ,घाव रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है 4. नील रंग👉 दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है। 5. बैंगनी रंग👉 श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर् गी ..दाँतो के रोग में सहायक है। 6. नारंगी रंग👉 वात रोग . अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है। 7. आसमानी रंग👉 स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दी- जुकाम आदि में सहायक है। सुरज का प्रकाश रोगी के कपड़ो और कमरे के रंग के साथ मिलकर रोगी को प्रभावित करता है।अतः दैनिक जीवन मे हम अपने जरूरत के अनुसार अपने परिवेश एवम् कपड़ो के रंग इत्यादि मे फेरबदल करके बहुत सारे फायदे उठा सकते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य ज्योतिषीय दृष्टिकोण 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ इस संसार में भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा जाता है क्योंकि हर व्यक्ति इनके साक्षात दर्शन कर सकता है। रविवार भगवान सूर्य का दिन माना जाता है और सप्तमी तिथि के देवता भी भगवान सूर्य है। अगर सप्तमी तिथि रविवार के दिन पड़े तो उसका अति विशेष महत्व होता है इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व है। रविवारीय सप्तमी भानु सप्तमी या सूर्य सप्तमी कहलाती है। रविवार तथा सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है। भगवान सूर्य कि कृपा पाने के लिए तांबे के पात्र में लाल चन्दन,लाल पुष्प, अक्षत डालकर प्रसन्न मन से सूर्य मंत्र का जाप करते हुए उन्हें जल अर्पण करना चाहिए।
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श्री सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करना चाहिए। इस अर्घ्य से भगवान ‍सूर्य प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर संकटो से रक्षा करते हुए उन्हें आरोग्य, आयु, धन, धान्य, पुत्र, मित्र, तेज, यश, कान्ति, विद्या, वैभव और सौभाग्य को प्रदान करते हैं । भगवान सूर्य देव कि कृपा प्राप्त करने के लिए जातक को प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व ही शैया त्याग कर शुद्ध, पवित्र जल से स्नान के पश्चात उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। भगवान सूर्य सबसे तेजस्वी और कांतिमय माने गए हैं। अतएवं सूर्य आराधना से ही व्यक्ति को सुंदरता और तेज कि प्राप्ति भी होती है । ह्रदय रोगियों को भगवान सूर्य की उपासना करने से विशेष लाभ होता है। उन्हें आदित्य ह्रदय स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए। इससे सूर्य भगवान प्रसन्न होकर अपने भक्तों को निरोगी और दीर्घ आयु का वरदान देते है। सूर्य भगवान की कृपा पाने के लिए जातक को प्रत्येक रविवार अथवा माह के किसी भी शुक्ल पक्ष के रविवार को गुड़ और चावल को नदी अथवा बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए । तांबे के सिक्के को भी नदी में प्रवाहित करने से भी सूर्य भगवान की कृपा बनी रहती है। रविवार के दिन स्वयं भी मीठा भोजन करें एवं घर के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए प्रेरित करें। हाँ भगवान सूर्यदेव को उस दिन गुड़ का भोग लगाना कतई न भूलें । ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को राजपक्ष अर्थात सरकारी क्षेत्र एवं अधिकारियों का कारक ग्रह बताया गया है। व्यक्ति कि कुंडली में सूर्य बलवान होने से उसे सरकारी क्षेत्र में सफलता एवं अधिकारियों से सहयोग मिलता है। कैरियर एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में उन्नति के लिए भी सूर्य की अनुकूलता अनिवार्य मानी गयी है। यह ध्यान रहे कि सूर्य भगवान की आराधना का सर्वोत्तम समय सुबह सूर्योदय का ही होता है। आदित्य हृदय का नियमित पाठ करने एवं रविवार को तेल, नमक नहीं खाने तथा एक समय ही भोजन करने से भी सूर्य भगवान कि हमेशा कृपा बनी रहती है। यदि किसी व्यक्ति के पास आपका पैसा फँसा हो तो आप नित्य उगते हुए सूर्य को ताम्बे के पात्र में गुड, अक्षत, लाल चन्दन लाल फूल और लाल मिर्च के 11 दाने डालकर अर्ध्य दें और सूर्यदेव से मन ही मन अपने फंसे हुए धन को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें, इस उपाय से तेज और यश की प्राप्ति होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और फँसा हुआ धन में अड़चने समाप्त होने लगती है। मनोवांछित फल पाने के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें। ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। भगवान सूर्य के किसी भी आसान और सिद्ध मंत्र का जाप श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करें। ॐ घृणि सूर्याय नम:।। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।। ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ओम्। ॐ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्न सूर्य: प्रचोदयात्। ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य: ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:। ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ। ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः। निम्न मंत्रो का किसी भी कृष्ण पक्ष के प्रथम रविवार से आरम्भ करे सूर्योदय काल इसके लिये सर्वोत्तम है लाल ऊनि आसान पर सूर्याभिमुख बैठ कर मानसिक जप करना सर्वोत्तम है इसके प्रभाव से व्यक्ति में सूर्य जैसे गुण आते है, चेहरे पर कांति आती है।आकर्षण बढ़ता है नेत्र रोगों में में लाभकारी है तथा कुंडली मे सूर्य के अशुभ फलों में कमी आती है। डॉ0 विजय शंकर मिश्र:! 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ @ancientindia1
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ज्वार की रोटी । """"""""""""""""""""" बाजरा जहां सर्दियों का मोटा अनाज हैं वहीं ज्वार गर्मियों का खाने योग्य मोटा अनाज है भले ही हरियाणा पंजाब पश्चिम उत्तर प्रदेश आदि उत्तर भारत में ज्वार की रोटी प्रचलित ना हो लेकिन महाराष्ट्र तेलंगाना आंध्र प्रदेश गुजरात मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से में ज्वार की रोटी घर से लेकर होटल ढाबा आदि पर मिलती है। ज्वार एक सुपरफूड है दुनिया के 30 से अधिक देशों के चार अरब से अधिक लोग इसका सेवन करते हैं। उत्तर भारत में जहां ज्वार को पशुओं को खिलायी जाती है ,पशुओं को उच्च क्वालिटी का पोषण मिलता है पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ती है तो वहीं महाराष्ट्र आदि पश्चिम दक्षिण भारत में ज्वार मनुष्यों के खाने के प्रयोग में लाई जाती है मुख्य खाद्यान्न है नतीजा वहां भी स्वास्थ्य का उत्तम लाभ मिलता है। मोटे अनाजों में सर्वाधिक स्वादिष्ट ज्वार की रोटी मानी गई है ।इसका लो ग्लिसमिक इंडेक्स, त्रिदोष नाशक होना ,उच्च विटामिन व मिनरल फाइबर से युक्त होना इसे गुणकारी बनाता है। मोटापा, डायबिटीज ,उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल ,जीर्ण कब्ज, चर्म रोग में बेहद लाभकारी है ज्वार।यहां तक की अनेक स्टडी में विविध प्रकार के कैंसर रोधी गुण भी इसमें पाए गए हैं । ज्वार स्वास्थ्य व बलवर्धक अनाज है। ज्वार पुरी तरह हानिकारक ग्लूटेन प्रोटीन से मुक्त अनाज है यह आंतों को स्वस्थ रखता है। जिनको गेहूं जो या चावल आदि से एलर्जी है उनके लिए भी है निरापद अन्न है ज्वार। लोक में एक किंवदंती है वीर महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई थी । उल्लेखनीय होगा गेहूं से लेकर सभी खाए जाने योग्य अनाज वनस्पतियों के घास वर्ग में ही आते हैं तो महाराणा प्रताप ने किसी जंगली अन्न का ही सेवन किया था जो ज्वार के समान ही गुणकारी रहा होगा वैसे ऐतिहासिक तौर पर पुष्ट तथ्य है वीर शिवाजी ज्वार की ही रोटी ही खाते थे। आयुर्वेद की मान्यता है ऋतु अनुसार बदल-बदल कर अन्न खाना चाहिए आहार में विविधता होनी चाहिए एक ही जैसे अनाज का प्रयोग लंबे समय तक नहीं करना चाहिए यह भी रोगों का कारण बन जाता है। आहार ही औषध है। इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ रही है। गर्मीयों में ज्वार का दलिया या रोटी के रूप में सेवन किया जाए तो खान-पान दिनचर्या मौसम से जुड़ी बहुत सी बीमारियों डिसऑर्डर्स से निजात पाई जा सकती है। डॉ0 विजय शंकर मिश्र:! @ancientindia1
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He the mantrin shall visualize the Great Lord SHarabHa adorned with many jewels, wearing a golden crown adorned with various gems, Takshaka and other mahAnAgas as his earrings. He the great sAluva with three eyes and five faces bearing a fierce form resembling a conch, with a terrifying frown similar to the crescent moon. Mantrin shall then visualize Durga and BhadrakAli adorning his two wings, He the great PaksHirAja is holding ten weapons, shining brightly, with ten arms and three eyes. Mantrin shall then visualize SharabHEsHana the lord of the universe, the captivator of the world, and inexhaustible with blue throated Lord as his heart, adorned with a serpent as a sacred thread, having a broad chest, the destroyer of the Tripura, bearing a trident, wearing a deer skin, with a tiger skin as a garment, sHarabha is adorned with the fierce Agni VaDavAnala. SharabHA is then visualized by the mantrin having mrtyu and vyAdhi as his feets, his lotus feet is sharp like thunderbolt with anklets that jingle melodiously, his feet adorned with bells, shining brightly like a thunderbolt. Thus ends the dhAyana of the compassionate Lord. 🌺🔱 @ancientindia1
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"Dasopadesam" or "The Ten Commandments" of Sri Maha Periyava Jagadguru Pujya Sri Chandrasekharendra Saraswathi Swamigal 1. One of our duties as human beings is to avail ourselves of every opportunity to do good to others. The poor can serve others by their loyal work to the country and the rich by their wealth to help the poor. Those who are influential can use their influence to better the condition of the lowly. That way we can keep alive in our hearts a sense of social service. 2. Man by himself cannot create even a blade of grass. We will be guilty of gross ingratitude if we do not offer first to God what we eat or wear - only the best and choicest should be offered to Him. 3. Life without love is a waste. Everyone should cultivate "Prema" or love towards all human beings, bird and beast. 4. Wealth amassed by a person whose heart is closed to charity, is generally dissipated by the inheritors: but the family of philanthropists will always be blessed with happiness. 5. A person who has done a meritorious deed will lose the resulting merit if he listens to the praise of others or himself boasts of his deeds. 6. It will not do good to grieve over what has happened. If we learn to discriminate between good and evil, that will guard us from falling into the evil again. 7. We should utilise to good purpose, the days of our life time. We should engage ourselves in acts which will contribute to the welfare of others rather than to our selfish desires. 8. We should perform duties that have been prescribed for our daily life and also be filled with devotion to God. 9. One attains one's goal by performance of one's duties. 10. Jnana is the only solvent of our troubles and sufferings. Jaya Jaya Shankara Hara Hara Shankara!!! @ancientindia1
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